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- ऐसा दशहरा जिसमें रावण नहीं मारा जाता

नवमी के दिन जोगी उठाई की रस्म अदा कि जाती है और उसे इनाम इकराम से नवाजा जाता है. इसके पश्चात नवमी की रात दंतेवाड़ा से आई माई जी की डोली जिया डेरा से यात्रा करती हुई दंतेश्वरी मंदिर पहुचती हैं. इस बीच कुटरू बाड़ा के सामने उनकी भव्य अगवानी की जाती है. जिसमें राजपरिवार के सदस्य और राजगुरू उनकी डोली को कांधे पर उठाकर नंगे पांव दंतेश्वरी मंदिर तक ले जाते है. दरअसल देवी मावली कर्नाटक राज्य मलवन्य गांव की देवी है जो छिंदक नागवंशी राजाओं द्वारा उनके बस्तर के शासन काल में आई थीं. छिंदक राजाओं ने नवमी से चौदहवीं शताब्दी तक बस्तर में शासन किया. इसके बाद चालुक्य शासक अनमदेव ने बस्तर में अपना नया राज्य स्थापित किया और देवी मावली को अपनी कुल देवी के रूप मे मान्यता दी. मावली देवी को सम्मान देने के लिए मावली परघाव रस्म शुरू की गई. इस रस्म से पूरे बस्तर के लोगों को जनसौलाब जगदलपुर में उमड़ पड़ता है.