जानिए, श्राद्ध में कौए, श्वान और गाय का महत्व

पितृपक्ष: जानिए, श्राद्ध में कौए, श्वान और गाय का महत्व

पितृपक्ष अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता ज्ञापित करने का विशिष्ट अवसर होता है. श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धापूर्ण व्यवहार और तर्पण का अर्थ है तृप्त करना. इन दिनों में किये जाने वाले तर्पण से पितर घर-परिवार को आशीर्वाद देते हैं. श्राद्ध दिनों को कनागत भी कहते हैं. इस दौरान शुभ कार्य या नये कपड़ों की खरीदारी नहीं की जाती. शास्त्रों के अनुसार मनुष्य के लिए तीन ऋण कहे गये हैं. देव, ऋषि और पितृ ऋण. इनमें से पितृ ऋण को श्राद्ध करके उतारना आवश्यक होता है. वर्ष में केवल एक बार श्राद्ध सम्पन्न करने और कौवा, श्वान (कुत्ता), गाय और ब्राह्मण को भोजन कराने से यह ऋण कम हो जाता है. ज्योतिषाचार्य संतोष पाद्या बताते हैं कि पितृपक्ष में देवताओं के उपरांत मृतकों के नामों का उच्चारण कर उन्हें भी जल देना चाहिए. ब्राह्मणपुराण में लिखा है कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में यमराज यमपुरी से पितरों को मुक्त कर देते हैं और वे संतों और वंशजों से पिण्डदान लेने को धरती पर आ जाते हैं.

 
 
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