कहां खो गए वो सावन के झूले...

PICS: अब नहीं दिखाई देते सावन के झूले

सावन भादौं के महीने में लोकजीवन के रंजन के लिए सदियों से चली आ रही डाल-डाल पर झूला डालने की स्वस्थ परंपरा भी बदलते परिवेश में विलुप्त होती जा रही है. एक समय था जब गांव देहात से लेकर शहरों तक में सावन माह के आरंभ होते ही घर के आंगन में लगे पेड़ पर झूले पड़ जाते थे और महिलाएं गीतों के साथ उसका आनंद उठाती थीं. समय के साथ पेड़ गायब होते गए और मल्टीस्टोरी बिल्डिंगों के बनने से आंगन का अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया. ऐसे में सावन के झूले भी इतिहास बनकर हमारी परंपरा से गायब हो रहे हैं. अब सावन और भादौं माह में पेड़ों पर पड़ने वाले झूले अब कुछ जगहों पर ही दिखाई देते हैं. वैसे, मंदिरों में सावन की एकादशी और जन्माष्टमी पर भगवान को झूला झुलाने की परंपरा अभी निभाई जा रही है.

 
 
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