यश, धन की देवी मां कूष्माण्डा

यश की देवी मां कूष्माण्डा

नवरात्रि के चौथे दिन आदिशक्ति श्री दुर्गा के चौथे रूप मां कूष्माण्डा की पूजा-अर्चना का विधान है. सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।। मां दुर्गाजी के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है. अपनी मन्द, हलकी हंसी द्वारा ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है. जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अन्धकार-ही-अन्धकार परिव्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने अपने ‘ईषत्’ हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी. अत: यही सृष्टि- आदि की स्वरूपा, आदि शक्ति हैं. इनका निवास सूर्यमण्डल के भीतर के लोक में है. इनकी आठ भुजाएं हैं. अत: ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं. इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा है. आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है. इनका वाहन सिंह है.

 
 
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