जानिए, क्यों मनाते हैं बैसाखी का जश्न?

 जानिए, क्यों मनाते हैं बैसाखी का जश्न?

पूरे देश के साथ साथ पंजाब में बैसाखी की धूम है. पंजाब में किसान आज के दिन फसल पकने की खुशी तो मनाते ही हैं. सिख धर्म की स्थापना भी इसी दिन हुई थी. सिखों के दशम गुरु गुरु गोविंद जी ने इसी दिन 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी. लिहाजा पंजाब में इस त्यौहार का अपना खास महत्व है लोग बड़े उल्लास के साथ बैसाखी का त्योहार मनाते हैं. बैसाखी नाम वैशाख से बना है. पंजाब और हरियाणा के किसान सर्दियों की फसल काट लेने के बाद नए साल की खुशियाँ मनाते हैं. इसीलिए बैसाखी पंजाब और आसपास के प्रदेशों का सबसे बड़ा त्योहार है. यह खरईफ की फसल के पकने की खुशी का प्रतीक है. इसी दिन, 13 अप्रैल 1699 को दसवें गुरु गोविंदसिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. सिख इस त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं. प्रकृति का एक नियम है कि जब भी किसी जुल्म, अन्याय, अत्याचार की पराकाष्ठा होती है, तो उसे हल करने अथवा उसके उपाय के लिए कोई कारण भी बन जाता है. इसी नियमाधीन जब मुगल शासक औरंगजेब द्वारा जुल्म, अन्याय व अत्याचार की हर सीमा लाँघ, श्री गुरु तेग बहादुरजी को दिल्ली में चाँदनी चौक पर शहीद कर दिया गया, तभी गुरु गोविंदसिंहजी ने अपने अनुयायियों को संगठित कर खालसा पंथ की स्थापना की जिसका लक्ष्य था धर्म व नेकी (भलाई) के आदर्श के लिए सदैव तत्पर रहना. पुराने रीति-रिवाजों से ग्रसित निर्बल, कमजोर व साहसहीन हो चुके लोग, सदियों की राजनीतिक व मानसिक गुलामी के कारण कायर हो चुके थे. निम्न जाति के समझे जाने वाले लोगों को जिन्हें समाज तुच्छ समझता था, दशमेश पिता ने अमृत छकाकर सिंह बना दिया. इस तरह 13 अप्रैल,1699 को श्रीसगढ़ साहिब आनंदपुर में दसवें गुरु गोविंदसिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना कर अत्याचार को समाप्त किया.

 
 
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