जायसी की पद्मावत पर संजय भंसाली की फिल्मी 'लीला'

Last Updated 24 Jan 2018 08:42:49 PM IST

आन बान और शान का सवाल बनी फिल्म पद्मावत में एक किरदार अलाउद्दीन से कहता है – 'राजपूतों को सोचने का वक्त तो दिजीए.' शायद ये संवाद फिल्म और फिल्म को लेकर बाहर हो रहे हंगामे के लिए बहुत मौजू है.


फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण (फाइल फोटो)

फिल्म में संजय लीला भंसाली ये स्थापित करने में कामयाब रहे हैं कि अपने सिद्धांतों के प्रति समर्पित राजपूत बहुत कुछ सोचते नहीं. उन्हें हारना मंजूर है, लेकिन छल करना नहीं. खासियत ये कि इसे फिल्म में अलाउद्दीन ने भी समझ लिया है. राजपूतों की इस निश्छल वीरता ने उनकी शौर्य-गाथा को इतना ऊपर कर दिया कि आज भी लोग उसी शान की दुहाई दे रहे हैं. और राज्य व्यवस्था के लिए बहुत कुछ करने वाले अलाउद्दीन खिलजी को सिर्फ हमलावर और कामुक खलनायक के तौर पर देखा जा रहा है.

फिल्म के बारे में जानने से पहले ये ही जानने का सबका मन होता है कि क्या सचमुच संजय लीला भंसाली ने राजूपतों की शान और महारानी पद्मावती की शान में कुछ गड़बड़ किया है? क्या इस फिल्म में खिलजी का महिमा मंडन किया गया है? तो इन दोनों सवालों का जवाब है, बिल्कुल नहीं. हां, खिलजी का किरदार विलेन के तौर उभारा गया है. साथ ही रणवीर सिंह के अभिनय ने इसे और जमा दिया है. एक अहम बात ये भी कही जा रही है कि घूमर डांस में फिल्मकार ने दीपिका के शरीर के एक हिस्से को  ग्राफिक्स के जरिए छुपा दिया है.

मलिक मोहम्मद जायसी को हिंदी के कुछ पहले महाकाव्यकारों में माना जाता है और उनकी रचना पद्मावत को हिंदी के छात्र रहे लोग तो बाखूबी जानते ही हैं. चित्तौड़गढ़ की रानी को केंद्र में रख कर लिखी गई इस रचना से पहले पुरुषों को ही केंद्र में रख कर रचनाएं की जाती रही. इसी महाकाव्य को आधार बना कर संजय लीला भंसाली ने भव्यता के साथ ये फिल्मी महाकाव्य रचा. इसमें रणवीर सिंह और शाहिद कपूर जैसे दो बड़े पुरुष अभिनेताओं के होते हुए दीपिका पादुकोण ने महारानी पद्मावती के चरित्र को जीवंत कर दिया है. इस अभिनय के लिए दीपिका को लंबे समय तक याद किया जाएगा. उनके अभिवादन का अंदाज पूरी तरह से क्षत्रिय गरिमा वाला दिखता है. कहा ये भी जा रहा है कि उन्हें इस फिल्म के लिए जो पारिश्रमिक मिला वो तमाम बड़े पुरुष अभिनेताओं से ज्यादा है. इस तरह से संजय अच्छे और प्रभावी अभिनेताओं की मौजूदगी में महिला किरदार की प्रमुखता वाली ऐतिहासिक फिल्म देने में सफल कहे जा सकते हैं.

फिल्म के सेट को थ्री-डी स्क्रीन पर देखने से और भव्यतर अनुभूति होती है. फिल्म में तीन तरह के परिवेश के फिल्मांकन में संजय पूरी तरह सफल रहे हैं. एक ओर तो उन्होंने अफगानिस्तान और खिलजियों के रहन सहन उनके परिवेश को उकेरा है. दूसरी ओर राजपूताने के बारीक और बोलते महलों की सुसंस्कृति को फिल्माने में भी उन्हे सफल मान जा सकता है. इसके अलावा सिंहल द्वीप की बौद्ध संस्कृति को भी सेट के जरिए बहुत खूबसूरती से दिखाने की कोशिश की है.



हां, एक बात जरूर खटकती है कि अहिंसक सिंहल द्वीप की राजकुमारी हिरण का शिकार क्यों करती है.

पद्मावती और राजपूताने की पवित्रता और मर्यादा को ऊंचा करने के लिए खिलजी को वहशी, जुनूनी और कामुक दिखाने में भी भंसाली खासा सफल रहे है. बल्कि इतना अधिक दिखा दिया है कि मन में सवाल उठने लगता है कि ऐसे वहशी राजा के दरबार में अमीर खुसरो जैसा महान कलाकार क्या कर रहा था या फिर खिलजी को कैसे बर्दाश्त कर पाता था। 


युद्ध में तो राजपूताने की तलवार की झंकार दिखाने में संजय कामयाब हुए ही हैं, खुद ही आमंत्रण मांग कर किले में आने वाले खिलजी के प्रति रतन सिंह के व्यवहार की मर्यादा भी वे अच्छे से दिखा पाए हैं. फिर खिलजी जैसे शातिर की चतुराई का फिल्मांकन तो संजय के लिए बहुत ही सहज रहा है.

अगर पुरुष अभिनेताओं की बात की जाए तो रणवीर सिंह और शाहिद दोनों ने ही अपने किरदारों को पर्दे पर जिंदा कर दिया है. दोनों ने इस फिल्म में दिखा दिया है कि उनमें अभिनय की बहुत विविधता है. रणवीर और दीपिका को एक साथ सोच कर फिल्म बाजीराव की याद आ जाना सहज है लेकिन रणवीर ने दिखा दिया कि वे एंटी रोल में भी उतने ही सशक्त हैं.

कैमरे और एडिटिंग की बात की जाए तो संजय लीला भंसाली की दूसरी फिल्मों की तरह पद्मावत में भी जोरदार कैमरा वर्क है. ये भी लगता है कि कहानी की गतिशीलता के लिए उन्होंने पद्मावत के कई हिस्सों को छोड़ा है और सिर्फ उन्ही हिस्सों को रखा जिनसे पद्मावती का सरोकार है. फिर भी इंटरवल के पहले कहानी के बिल्डअप में वक्त लगता है. ये हिस्सा किसी-किसी को बोझिल करता भी दिखता है, लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म बहुत तेजी से चलती है. आखिर में जौहर के दृश्य को संजय लीला भंसाली ने बेहद जीवंत कर दिया है. साथ में जौहर या सती प्रथा के महिमा मंडन का दोषी बनने से भी खुद को बहुत सफाई से बचा लिया है.

राजकुमार पांडेय


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