शबाना आजमी ने कहा, 1992 बाबरी विध्वंस में पहली बार अहसास हुआ कि मैं मुसलमान हूं

Last Updated 29 Nov 2015 04:26:01 PM IST

प्रसिद्ध अभिनेत्री शबाना आजमी ने कहा कि देश में बढ़ती असहिष्णुता चिंता की बात है और लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है.


1992 बाबरी विध्वंस में पहली बार अहसास हुआ कि मैं मुसलमान हूं

असहिष्णुता और असुरक्षा की बहस में शाहरुख खान और आमिर खान सहित कई दूसरे कलाकारों के बाद प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री शबाना आजमी भी कूद पड़ी हैं.

लखनऊ लिटरेचर कार्निवाल में शनिवार को उन्होंने कहा कि कुछ लोग आपकी सारी दूसरी पहचान को भुलाकर आपको हिंदू, मुस्लिम, सिख या ईसाई की पहचान देना चाहते हैं. यहां एक प्रोग्राम के दौरान शबाना ने कहा कि 1992 में मुझे पहली बार इस बात का अहसास हुआ कि मैं मुसलमान हूं. हर कोई कहने लगा- 'ओह- आप तो मुस्लिम हैं.'

मशहूर गीतकार जावेद अख्तर की पत्नी शबाना ने ये भी कहा कि इस देश में मजहब को ही पहचान बनाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन ये इंडिया की पहचान नहीं है. शबाना ने कुछ दिन पहले भी कहा था कि देश में इन्टॉलरेंस बढ़ रहा है. इस प्रोग्राम में इन्टॉलरेंस के मुद्दे पर शबाना आजमी से सवाल किए गए थे.

शबाना आजमी से पूछा गया कि आपको 5 नेशनल अवाॅर्ड मिले हैं तो क्‍या आप भी अवॉर्ड वापसी की मुहिम में शामिल होंगी? इस पर शबाना ने कहा, 'मेरे पिता शायर कैफी आजमी ने बहुत साल पहले अवॉर्ड वापस कर दिया थे.

उन्‍होंने तो अपना पद्मश्री अवॉर्ड ही लौटा दिया था. जब उत्तर प्रदेश में उर्दू को दूसरी भाषा के तौर पर रखने की मांग हुई थी तो एक नेता ने कहा था कि ऐसी मांग रखने वालों को गधे पर उलटा बैठाकर मुंह काला कर घुमाना चाहिए. उन्‍होंने उसी बात के विरोध में अपना पद्मश्री अवॉर्ड लौटा दिया था.'

गौरतलब है कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में हिंदू कारसेवकों ने विवादित बाबरी ढांचा गिरा दिया था. इसके बाद देशभर में दंगे भड़के थे. मुंबई में दिसंबर 1992 से जनवरी 1993 के बीच दंगे हुए थे.

उन्होंने कहा कि जब तक इंसान हैं, तब तक इन्टॉलरेंस रहेगी. लेकिन जब यह लॉ एंड ऑर्डर की प्रॉब्लम बन जाती है तो सरकार को इससे निपटना चाहिए. सरकार की मैच्युरिटी इस बात से दिखती है कि उसने हालात को किस तरीके से संभाला.

इस देश में कई कल्चर और मजहब के लोग हैं. इन्टॉलरेंस पहले भी थी और आगे भी रहेगी. इससे निपटने के लिए हर तबके के लोगों को साथ आना पड़ेगा. इस बारे में बहस की नहीं, बल्कि काम करने की जरूरत है.



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