अभी मीलों सफर तय करना है

Last Updated 02 Dec 2012 01:53:49 AM IST

इसे गेम चेंजर कहा गया. दावे हुए कि इस स्कीम के आने के बाद जरूरतमंदों को समय पर सीधे सहायता मिल पाएगी.


अभी मीलों सफर तय करना है

 बिचौलिए खत्म हो जाएंगे, करप्शन में कमी आएगी और पूरी प्रक्रिया के लागू होने के बाद सरकारी खजाने को बचत भी होगी. मैं यहां बात कर रहा हूं कैश ट्रांसफर स्कीम की, जिसको एक जनवरी, 2013 से लागू कर दिया जाएगा. योजना के तहत सरकार की करीब 29 कल्याणकारी योजनाओं का फायदा देश के 51 जिलों में सीधे जरूरतमंदों के बैंक अकाउंट में पैसा ट्रांसफर करके पहुंचाया जाएगा.

इन जिलों को इस आधार पर चुना गया है कि वहां रहने वाले लोगों में से 80 फीसद आबादी को आधार कार्ड बांट दिए गए हैं या फिर एक जनवरी तक 80 परसेंट लोगों के पास आधार कार्ड होंगे. योजना के तहत 2013 के आखिर तक इस स्कीम को पूरे देश में लागू कर दिया जाएगा और इसमें सरकार की दूसरी कल्याणकारी योजनाओं को भी शामिल किया जाएगा. अब सवाल उठता है कि क्या यह स्कीम वाकई गेम चेंजर साबित होने वाली है? क्या इसके लागू होने से वाकई सरकारी खजाने पर बोझ कम होगा? क्या जरूरतमंदों तक सीधे फायदा पहुंच पाएगा? क्या बिचौलियों के खत्म होने से करप्शन में कमी आएगी?

हर साल हमारी सरकार करीब चार लाख करोड़ रुपए की सब्सिडी देती है. इसमें से पेट्रोलियम पदाथरे पर करीब दो लाख करोड़ रुपए की सब्सिडी दी जाती है. केरोसिन पर हर साल करीब 30 हजार करोड़ रुपए की सब्सिडी दी जाती है. और हमें पता है कि इसका बड़ा हिस्सा कालाबाजारी में चला जाता है. केरोसिन की स्मग्लिंग होती है, इसको डीजल और पेट्रोल के साथ मिलाकर बेचा जाता है.

अनुमान है कि केरोसिन की कालाबाजारी का बाजार करीब 20 हजार करोड़ रुपए का है. जिस किसी ने इसे रोकने की कोशिश की है, उसे मार दिया गया. 2010 में तो नासिक के एडिशनल कलेक्टर यशवंत सोनावने को इसकी कालाबाजारी रोकने की कोशिश करने पर जिंदा जला दिया गया. इसी तरह की घटना हाल में उत्तर प्रदेश में हुई है. केरोसिन पर सब्सिडी इसलिए दी जाती है ताकि इसका फायदा गरीबों को मिले, उनके घरों में स्टोव जले, अंधेरे में लालटेन जले. लेकिन इसका फायदा गुंडे उठा रहे हैं. क्या इस तरह से दी जाने वाली सब्सिडी को खत्म करने की जरूरत नहीं है?

उसी तरह डीजल पर दी जाने वाली सब्सिडी की बात करते हैं. यह सब्सिडी किसानों को फायदा पहुंचाने के नाम पर दी जाती रही है. लेकिन देश में खपत होने वाले डीजल का 10 परसेंट से कम ही किसानों के काम आता है. इसके बडेकंज्यूमर ट्रक, रेलवे, फैक्ट्रियां, हाउसिंग सोसायटी में चलने वाले जनरेटर और देश की महंगी गाड़ियां यानी एसयूवी हैं. कोई मर्सिडीज से चलता है या फिर पजेरो में, लेकिन सस्ते डीजल का फायदा उसे भी मिल रहा है. डीजल के नाम पर हर साल करीब 1.5 लाख करोड़ रुपए की सब्सिडी दी जाती है, लेकिन इसका फायदा उन्हें मिलता है जिनको सब्सिडी की कोई जरूरत नहीं है. क्या इस तरह की सब्सिडी प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए?

हर साल किसानों को फायदा पहुंचाने के नाम पर फर्टिलाइजर पर हजारों करोड़ रुपए की सब्सिडी दी जाती है. स्वाभाविक है कि यह उन किसानों के लिए होती है जिनके लिए बाजार भाव पर फर्टिलाइजर खरीदना मुश्किल होता है. इस सब्सिडी का फायदा भी बड़े और अमीर किसान ही उठाते हैं और गरीब किसानों को कुछ भी नहीं मिलता है. और यह प्रक्रिया इतनी जटिल है कि इसको लागू करने वाले बाबू इस सब्सिडी का बड़ा हिस्सा उड़ा ले जाते हैं.
कुल मिलाकर यह माना जा सकता है कि जिनको फायदा पहुंचाने के नाम पर हर साल चार लाख करोड़ रुपए की सब्सिडी दी जाती है, उनकी हालत जस की तस बनी हुई है; लेकिन सब्सिडी के बाजार में नौकरशाहों और दलालों को हर साल हजारों करोड़ रुपए की मोटी और काली कमाई होती रहती है. क्या इसे खत्म करने की जरूरत नहीं है?

सीधे कैश ट्रांसफर के जरिए इन्हीं गलतियों को सुधारने की कोशिश हो रही है. चूंकि सब्सिडी जरूरतमंदों के बैंक खाते में सीधे ट्रांसफर होगी, जिससे बिचौलिए अपने आप खत्म हो जाएंगे. चूंकि इन स्कीम में होने वाले लीकेज बंद हो जाएंगे तो इस बात का सही आकलन हो जाएगा कि जरूरतमंदों को वाकई कितनी सब्सिडी देने की जरूरत है. अनुमान है कि जरूरतमंदों को राहत पहुंचाने के लिए हर साल चार लाख करोड़ रुपए से कम पैसों की जरूरत होगी. अगर ऐसा होता है तो सरकारी खजाने पर सब्सिडी का बोझ कम पड़ेगा और बचे पैसे विकास के कामों में खर्च होंगे.

लेकिन इस स्कीम को लागू करना आसान नहीं होगा. देश की आबादी का महज 30 फीसद हिस्सा ही बैंकिंग सिस्टम से जुड़ा हुआ है. मतलब यह है कि देश के 70 फीसद से ज्यादा परिवार ऐसे हैं जिनके पास बैंक का अकाउंट है ही नहीं. ऐसे में उन तक सीधे कैश कैसे पहुंचाया जाएगा? और ऐसा करने के लिए फिर से अगर बिचौलिए की जरूरत होगी तो क्या गारंटी है कि नए बिचौलिए पैसा नहीं उड़ाएंगे?

दूसरी दिक्कत यह है कि फिलहाल जिन 29 स्कीमों को एक जनवरी से कैश सब्सिडी लागू करने के लिए चयनित किया गया है वे स्कॉलरशिप व ओल्ड एज पेंशन जैसी छोटी स्कीमें हैं. बड़ी सब्सिडी योजनाओं का फायदा कैसे सीधे पहुंचाया जाएगा, इस पर विचार ही नहीं हुआ है. फर्टिलाइजर सब्सिडी का फायदा सीधे छोटे किसानों तक कैसे पहुंचाया जाए, इस पर फॉमरूला बनाना काफी मुश्किल होगा. यह कैसे तय होगा कि किस किसान को हर साल कितनी खाद की जरूरत है? उसी तरह यह कैसे तय होगा कि किस किसान को हर साल कितने लीटर डीजल की जरूरत है? यह सब ऐसे सवाल हैं जिन पर व्यापक चर्चा करने की जरूरत है. और जब तक इनका समाधान नहीं निकलता है, सब्सिडी के दुरु पयोग को रोकना संभव नहीं होगा.

अब सवाल यह उठता है कि क्या यूपीए की ताजा घोषणा आगामी चुनाव में वोट बटोरने के नीयत से की गई है? मेरा मानना है कि राजनेता हर काम वोट के लिए ही करते हैं. लेकिन लोकतंत्र की खासियत यही है कि वोट पाने के जुगाड़ में भी नेताओं को ऐसे फैसले करने होते हैं जिनका दूरगामी परिणाम अच्छा होता है. सीधे कैश ट्रांसफर का फैसला भले ही वोट पाने की नीयत से किया गया हो, लेकिन इससे देश का भला होना है. हमें बस सरकार पर इस बात का दबाव डालना है कि सारी सब्सिडी योजनाओं को कैश ट्रांसफर स्कीम में जल्दी से शामिल किया जाए. जब तक ऐसा नहीं होता है तब तक यह स्कीम कागजी ही रहेगी.

उपेन्द्र राय


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