जेएनयू : दोतरफा थी हिंसा

Last Updated 14 Jan 2020 05:58:36 AM IST

दिल्ली पुलिस के विशेष जांच दल ने प्राथमिक जांच रिपोर्ट सार्वजनिक की है। इसके मुताबिक जेएनयू की भयावह हिंसा एकपक्षीय नहीं थी।


जेएनयू : दोतरफा थी हिंसा

पहली बार हिंसा की जो तस्वीरें आई, उनके पहले भी हिंसा हुई थी जिनका सच सामने आ चुका है। दिल्ली पुलिस ने इसकी पुष्टि की है। दिल्ली पुलिस ने हिंसा मामले में नौ आरोपितों की तस्वीरें जारी की हैं। इसमें जेएनयूएसयू की अध्यक्ष आइशी घोष भी शामिल हैं। पुलिस को कठघरे में खड़ा करने वाले कुछ भी कहें, लेकिन उसने यही कहा कि यह छात्रों का मामला है, इसलिए हम तत्काल गिरफ्तार नहीं कर रहे, उन्हें नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। प्रश्न है कि अगर जांच पूरी नहीं हुई तो फिर दिल्ली पुलिस ने पत्रकार वार्ता क्यों की? इसका उत्तर देते हुए सिट प्रमुख ने ही कहा कि छात्रों का भविष्य इससे जुड़ा हुआ है, उसको ध्यान में रखते हुए हम आपसे जानकारी साझा कर रहे हैं। जाहिर है, ज्यादा गलफहमी न फैले इसलिए यह जरूरी था। वैसे पुलिस का कहना है कि इन छात्रों से जब भी हम कनेक्ट करने की कोशिश करते हैं तो ये कानून का उल्लंघन करते हैं।
अब जरा घटनाक्रम को देखिए और जो माहौल बनाया गया उससे तुलना करिए। माहौल यह बनाने की कोशिश हुई कि भाजपा की सरकार होने के कारण उनसे जुड़े छात्र संगठन ने गुंडों की तरह वामपंथी छात्र संगठनों से जुड़े लोगों को मारा। क्यों मारा? इसका समाधानपरक जवाब नहीं। पुलिस ने बताया कि जेएनयू में विंटर रजिस्ट्रेशन चल रहा है, जिसका वामपंथी दलों से जुड़े छात्र संगठन एआईएसएफ, एसएफआई, आईसा और डीएसएफ विरोध कर रहे हैं।

ज्यादातर छात्र रजिस्ट्रेशन कराना चाहते हैं। पांच जनवरी की घटना का वीडियो आया लेकिन पुलिस ने एक जनवरी से ही विवरण दिया है। जांच में पता चला कि एक और दो जनवरी को रजिस्ट्रेशन की कोशिश करने वाले छात्रों को डराया-धमकाया गया, उनसे धक्का-मुक्की भी की गई। 3 जनवरी को एआईएसएफ, एसएफआई, आईसा और डीएसएफ के सदस्य सेंट्रलाइज रजिस्ट्रेशन सिस्टम को रोकने के लिए जबरदस्ती सर्वर रूम में घुसे, कर्मचारियों को बाहर निकाल दिया, सर्वर बंद कर दिया। 4 जनवरी को दोपहर में पीछे शीशे के दरवाजे से अंदर घुसे और सर्वर को बर्बाद कर दिया। रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया रु क गई। इन मामले में प्राथमिकी दर्ज कराई गई है जिसमें आइशी घोष का नाम है। पांच जनवरी को साढ़े 11 बजे रजिस्ट्रेशन न करने देने से परेशान चार छात्र स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज के सामने बैठे थे। एआईएसएफ, आईसा, एसएफआई और डीएसएफ का एक समूह उन छात्रों को पीटने लगा। बीच-बचाव के लिए गए गाडरे को भी पीटा गया। 20 छात्रों के खिलाफ गाडरे पर हमला करने की प्राथमिकी दर्ज हुई है। इसके बाद पांच जनवरी को इन्हीं 4 संगठनों के नकाबपोश हमलावरों ने पेरियार हॉस्टल में छात्रों को चुन-चुनकर मारा। पुलिस का कहना है। इसमें जेएनयूएसयू अध्यक्ष भी शामिल थीं। कुछ खास कमरों को निशाना बनाया गया। शाम को साबरमती हॉस्टल में नकाबपोश हमलावरों ने तोड़फोड़ और हिंसा की। इस समूह में शामिल कुछ छात्रों को चिह्नित किया गया है। नर्मदा हॉस्टल में भी हिंसा का केस दर्ज हुआ है।
अभी यह आधी जांच रिपोर्ट है। इससे इतना साफ होता है कि 5 जनवरी की शाम का जो दृश्य हमने देखा उसकी पृष्ठभूमि पहले बनाई जा चुकी थी। पांच जनवरी को आरंभ में पिटे गए ज्यादातर या तो विद्याथी परिषद के थे या फिर आम छात्र जो सेमेस्टर रजिस्ट्रेशन कराना चाहते थे। इन छात्रों की पिटाई एवं घायल होने के कारण निश्चय ही गुस्सा पैदा हुआ होगा। तभी ह्वाट्सऐप समूह बना अपनी रक्षा के लिए जिसमें कहा गया कि सभी अपनी रक्षा के लिए कुछ न कुछ पास रखें। इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि जिन लोगों के हाथों में कोई डंडा दिख रहा है, वे हमलावर ही थे। आखिर पेरियार हॉस्टल में उन्हीं कमरों में क्यों हमला हुआ जिसमें परिषद के छात्र थे? बहुत सारे छात्र-छात्राओं ने छिपकर अपने को बचाया। छात्राओं के गुप्तांगों पर चोट की गई। इसलिए यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि बाद में इसकी प्रतिक्रिया में हमला हुआ। जो लोग चेहरे ढंके हुए थे, वे परिषद के भी हो सकते हैं और सामान्य छात्रों का समूह या उनके साथ कुछ बाहरी समर्थक भी।  आइशी घोष उनको संदिग्ध बनाने को पुलिस का पक्षपातपूर्ण रवैया बता रही हैं। उनके सिर पर चोट आई तो किसी ने हमला किया। किंतु इससे यह साबित नहीं होता कि उनके नेतृत्व में इसके पहले हमले नहीं हुए थे। सीसीटीवी फुटेज पहचान का सबसे अच्छा स्रोत हो सकता था, लेकिन वाईफाई सर्वर ध्वस्त होने से सीसीटीवी फुटेज नहीं मिला। पुलिस को भी वायरल वीडियो और तस्वीरों की मदद से पहचानना पड़ रहा है। वीडियो में वे लाठी, डंडों से लैस समूह के साथ दिख रही हैं, जो हमलावर है। पेरियार हॉस्टल में हमले के शिकार हुए छात्र भी गवाही दे रहे हैं। आखिर उतने लोग पीटे गए तो कोई आकाश से आकर तो नहीं पीट गया।
सर्वर केन्द्र को ताला लगाकर बाहर कुछ नकाबपोशों के साथ जेएनयू की पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष गीता कुमारी दिख रही हैं। इन्हें यहां से हटने के लिए कहने पर वह पुलिस से बहस कर रही हैं। दो महीने से ज्यादा समय से ये छात्र समूह पूरे जेएनयू को अपने सिर उठाकर रखा हुआ है। उच्च न्यायालय के इस आदेश के बावजूद कि प्रशासनिक भवन ने 100 मीटर तक आप प्रदर्शन नहीं कर सकते उन्होंने प्रशासनिक भवन को नारों से पोत दिया गया। विवेकानंद की मूर्ति को नुकसान पहुंचाया।
भगवा, हिन्दुत्व, भाजपा, संघ के अंत के नारे लिखे गए। यह छात्र संगठन के नारे नहीं हो सकते। ये राजनीतिक नारे हैं। इनके पीछे राजनीतिक दलों और नेताओं की भूमिका है। पुलिस को इनके चेहरे से भी नकाब उतारना चाहिए। पुलिस भी जानती है कि इन छात्र नेताओं के पक्ष में राजनीतिक दलों के साथ बड़े-बड़े वकीलों का समूह खड़ा हो जाएगा। इसलिए वह इनके विरुद्ध ठोस साक्ष्य पर ही मामला बनाएगी। जेएनयू पर वर्चस्व रखने तथा अपने विचारों के लिए प्रशिक्षण केंद्र बनाने के वामपंथी दलों की नीति का अंत होना चाहिए। साथ ही छात्रों के बीच वैचारिक दुश्मनी और हिंसा के अंत के लिए भी मध्यस्थता एवं मेल-मिलाप की कोशिश जरूरी है। पुलिस ने किसी को गिरफ्तार न कर सही किया है। जो अपराधी प्रवृत्ति के हैं, उनको छोड़कर किसी छात्र का भविष्य खराब हो जाए, यह उचित नहीं होगा।

अवधेश कुमार


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