विकास दर : लुढ़कने के मायने

Last Updated 02 Dec 2019 12:08:46 AM IST

राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा जारी चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही का आंकड़ा निस्संदेह, अर्थव्यवस्था की सेहत को लेकर पहले से व्याप्त चिंता को और बढ़ाने वाला है।


विकास दर : लुढ़कने के मायने

जुलाई से सितम्बर 2019 की अवधि में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रह गई है। पिछली 26 तिमाहियों यानी साढ़े 6 साल में यह अर्थव्यवस्था की सबसे धीमी विकास दर है। इससे पहले जनवरी-मार्च 2012-13 की तिमाही में 4.3 प्रतिशत विकास दर दर्ज की गई थी। लगातार सात तिमाही से विकास दर में गिरावट आ रही है।
पहली तिमाही में 5 प्रतिशत विकास दर आते ही भारत से दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का तमगा छिन गया था। अप्रैल-जून तिमाही में चीन की आर्थिक वृद्धि दर 6.2 प्रतिशत रही। चीन की यह विकास दर भी उसके 27 साल के इतिहास में सबसे कम रही है। जनवरी-मार्च 2018 में विकास दर 8.1 प्रतिशत, अप्रैल-जून 2018 में 8 प्रतिशत, जुलाई-सितम्बर 2018 में 7 प्रतिशत, अक्टूबर-दिसम्बर 2018 में 6.6 प्रतिशत,जनवरी-मार्च 2019 में 5.8 प्रतिशत तथा अप्रैल-जून 2019 में 5 प्रतिशत रही थी। तो यह सतत गिरावट का क्रम है। स्थिति के समग्र मूल्यांकन के लिए यह जानने की जरूरत है कि किन-किन क्षेत्रों की दुरावस्था ने विकास के लुढ़कने में भूमिका निभाई है। विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में इस तिमाही में एक प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। जुलाई-सितम्बर की अवधि में यह -1.0 प्रतिशत रही है। पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में यह 6.9 प्रतिशत रही थी।

पिछले वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 4.9 प्रतिशत की दर से विकास करने वाले कृषि क्षेत्र की रफ्तार इस अवधि में 2.1 फीसद रही है। निर्माण क्षेत्र की वृद्धि पिछले वर्ष के 8.5 प्रतिशत से घटकर 3.3 प्रतिशत रह गई है। खनन क्षेत्र की 2.2 प्रतिशत से घटकर 0.1 प्रतिशत पर आ गई है। ये सभी रोजगार देने वाले क्षेत्र हैं। सेवाओं के क्षेत्र में बिजली, गैस, पानी और अन्य सामाजिक सेवाओं की वृद्धि दर 3.6 प्रतिशत रही है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इसने 8.7 प्रतिशत की दर से वृद्धि हासिल की थी। इसी तरह ट्रेड, होटल, ट्रांसपोर्ट, कम्यूनिकेशन और ब्रॉडकास्टिंग से जुड़ी अन्य सेवाओं की वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत से घटकर 4.8 प्रतिशत पर आ गई है। वित्तीय सेवाओं की वृद्धि दर 7 प्रतिशत के मुकाबले 5.8 प्रतिशत रही है। अगर बुनियादी क्षेत्र, जिन्हें कोर सेक्टर कहा जाता है, को देखें तो उसमें भी बड़ी गिरावट है। कोर सेक्टर के आठों उद्योगों का उत्पादन अक्टूबर में 5.8 प्रतिशत घटा है। इनमें कोयला उत्पादन अक्टूबर में 17.6 प्रतिशत, कच्चा तेल उत्पादन 5.1 प्रतिशत और प्राकृतिक गैस का उत्पादन 5.7 प्रतिशत गिरा है। इसी तरह सीमेंट उत्पाद में 7.7 प्रतिशत, स्टील उत्पादन में 1.6 प्रतिशत, बिजली उत्पादन 12.4 प्रतिशत गिर गया। अक्टूबर महीने में तो 8 कोर सेक्टरों का विकास दर -5.8 प्रतिशत रही है।
मोदी सरकार की सबसे बड़ी सफलता राजकोषीय घाटा को नियंत्रण में रखना था। 7 महीनों यानी अप्रैल से अक्टूबर के बीच ही राजकोषीय घाटा 7.2 ट्रिलियन रुपये (100.32 अरब डॉलर) रहा जो बजट लक्ष्य का 102.4 प्रतिशत है। अप्रैल-अक्टूबर में सरकार को 6.83 खरब रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ जबकि खर्च 16.55 खरब रुपये रहा। इसके बाद कोई नहीं मानेगा कि अर्थव्यवस्था को लेकर बहुत चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के सुब्रह्मणियन का बयान है कि अर्थव्यवस्था के मूलाधार या फंडामेंटल मजबूत हैं और तीसरी तिमाही से अर्थव्यवस्था सुस्ती से बाहर निकलना शुरू होगी। सोच यह है कि वित्त मंत्री ने कर कटौती से लेकर जो प्रोत्साहन पैकेज घोषित किए उनका असर शुरू हो गया होगा। वैसे ऐसा नहीं है कि पूरा परिदृश्य अंधकारमय है। इसी दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद का आकार 35.99 लाख करोड़ रुपये रहा है, जो बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में 34.43 लाख करोड़ रुपये था। लोक सेवा, रक्षा और अन्य सेवाओं की वृद्धि दर पिछले साल की दूसरी तिमाही के 8.6 प्रतिशत से बढ़कर 11.6 प्रतिशत हुआ है। अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए निजी एवं सरकारी व्यय बढ़ाने का नुस्खा दिया जाता है। सरकारी व्यय पिछले साल की दूसरी तिमाही के 11.9 प्रतिशत से बढ़कर 13.1 प्रतिशत है।
सरकार ने कमजोर बैंकों के विलय का कदम उठाया ताकि बैंकिंग व्यवस्था स्वस्थ हो। कर्ज मेले में बैंकों ने 2.5 लाख करोड़ रुपये कर्ज बांटे हैं। बैंकिंग प्रणाली में नकद प्रवाह के लिए बैंकों को 70 हजार करोड़ रुपये दिये गए हैं। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की दृष्टि से देखें तो वर्ष 2009-14 के दौरान 189.5 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया, जबकि मोदी सरकार के पांच वर्षो में विदेशी निवेश की राशि रही, 283.9 अरब डॉलर। यदि अर्थव्यवस्था को लेकर धारणा नकारात्मक हो तो विदेशी निवेश नहीं आ सकता। अर्थव्यवस्था में अच्छी संभावना नहीं हो तो शेयर बाजार से भी निवेशक भाग खड़े होते हैं। मुंबई शेयर बाजार ने 41 हजार अंक को तथा निफ्टी ने 12 हजार को पार कर रिकॉर्ड बनाया है। इसका मतलब है कि निवेशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था के बेहतर होने का विश्वास है। किंतु यह समय अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर बहुत बड़ी चुनौतियों का है।
रिजर्व बैंक लगातार पांच बार रेपो दर में कटौती कर चुका है। इसका असर अभी तक नहीं हुआ है। कृषि का योगदान भले विकास दर में कम है, लेकिन 57 प्रतिशत लोगों की रोजी-रोटी इसी पर निर्भर है। इस दिशा में केंद्र के उठाये कदमों को राज्य ही लागू कर सकते हैं। केंद्र सरकार को राज्यों के मुख्यमंत्रियों एवं कृषि मंत्रियों का सम्मेलन कृषि विकास को लेकर बुलाया जाना उचित होगा। निर्माण में भी राज्यों की भूमिका है, क्योंकि जमीन पर अधिकार तथा स्थानीय नियम कानून उनके ही हाथों हैं। निर्माण की अनेक परियोजनाएं तो मुकदमों में फंसी हैं। यहां दो और महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए। एक, भारत की अर्थव्यवस्था लंबे समय से असंतुलित है। इसका करीब 59 प्रतिशत सेवा क्षेत्र पर टिका है। यह अस्थिर क्षेत्र है। इसलिए ऐसा नीतिगत परिवर्तन हो ताकि सेवा जैसे अनिश्चित क्षेत्र पर अर्थव्यवस्था कायम न रहे। दूसरे, भ्रष्टाचार विरोधी कड़े नियमों के चलते बहुत सारे लोग कारोबार करने के बजाय चुप बैठ गए हैं। यह बहुत बड़ा संकट है, जो अर्थव्यवस्था पर सबसे ज्यादा असर कर रहा है। इस डर को कैसे दूर किया जाए, यह अहम प्रश्न है।

अवधेश कुमार


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