मीडिया : गांधी के वारिस

Last Updated 06 Oct 2019 12:30:22 AM IST

गांधी की एक सौ पचासवीं जयंती की शाम एक चैनल ने सवाल उठाए कि गांधी का असली ‘चेला’ कौन है, और कौन है जो गांधी की ‘विरासत’ संभाल सकता है?


मीडिया : गांधी के वारिस

चरचा के दौरान न जाने क्यों मुझे महसूस होता रहा कि इस सवाल के जवाब में कोई अचानक कह उठेगा कि गांधी का असली चेला तो नाथूराम गोडसे था, जिसने गांधी को गोली मारकर ‘करेक्ट’ किया! लेकिन किसी ने भी ऐेसा न कहा जबकि ऐसा कहने के लिए जिस अनुकूल वातावरण की जरूरत हो सकती थी, वह चैनल और उसके बाहर भरपूर था और है। ऐसा देख आपको कैसा लगा, मुझे नहीं मालूम, लेकिन मेरे जैसे ‘टीवी-कीट’ को यह देख अच्छा लगा कि चलो, अब भी नाथूराम गोडसे के चेलों में कुछ शरम बची हुई है कि उसका नाम सीधे नहीं  लिया और रस्मी किस्म के ‘गांधी जाप’ में लगे रहे।
इसी तरह, कुछ चैनल कर्मकांडीय और रस्मी किस्म की चरचाएं चलाते रहे और कई चर्चक अफसोस जताते रहे कि देखो तो गांधी का नाम किस किस तरह से ‘मिस यूज’ किया जा रहा है, उसका दुरुपयोग किया जा रहा है। जो लोग गांधी के घोर-विरोधी रहे हैं, वही आज गांधी का ‘नामजप’ कर रहे हैं। इसी शाम एक बुद्धिजीवी किस्म का चैनल गांधी के इस समकालीन ‘मिस यूज’ से बहुत चिंतित दिखा और आयोजित  चरचा में अपने पेनलिस्टों से पूछता  रहा कि कहीं कोई गांधी को ‘एपोप्रियट’ तो नहीं किए जा रहा है? यानी गांधी का कोई अपने हित में ‘विनियोजन’ तो नहीं किए जा रहा? उनका ‘समायोजन’ तो नहीं किए जा रहा? इसके जवाब में कुछ पेनलिस्ट कहते दिखते थे कि इन दिनों बहुत से गांधी-हेटर, गांधी के ‘वेटर’ बने हुए हैं। वे उनको  ‘हड़पने’ के चक्कर में हैं। कोई उनसे अपना ‘उदारतावादी मेकअप’ करा रहा है, तो कोई अपने फायदे के लिए उनको अपना चौकीदार बना रहा है, कोई उनके नाम को सत्तर साल से भुना रहा था और कोई अब भुनाए जा रहा है, कोई उनके ‘आदर्शों’ को  खाए पचाए जा रहा है। लेकिन ये तो वही रस्मी किस्म की बातें हुई जो हमेशा से  दो अक्टूबर के दिन कहीं सुनी जाती हैं, क्योंकि बहुतों के लिए गांधी अब भी बड़े काम के हैं।

फिर अचानक इस चरचा में हमें वह नाम सुनाई दिया जिसकी हम अब तक प्रतीक्षा कर रहे थे। चरचा के ऐन बीच एक विश्लेषक ने अपने श्रीमुख से ही ‘नाथूराम गोडसे’ का जिक्र किया और वे  बोले कि नाथूराम गोडसे  एक ‘स्ट्रे’ यानी आवारा और सिरफिरा किस्म का बंदा था, जिसने गांधी को मार दिया। लेकिन वह किसी ‘खास संगठन’ का सदस्य न था।
श्रीमुख के ऐसे वचन सुनकर एक इतिहासज्ञ ने उनके इस ‘तथ्य’ को करेक्ट करते हुए कहा कि वह ‘स्ट्रे’ या ‘आवारा’ बंदा न था। नाथूराम गोडसे बाजाप्ता ‘एक एजेंडे’ वाला बंदा था। वह इरादतन मारने को आया था। उसके भाई ने साफ कहा है कि वह एक खास संगठन का सदस्य था, है और रहेगा! मैं सोचता रहा कि इन दिनों अगर गांधी वैसा ही ‘सत्याग्रह’  करते जैसा कि करने के आदी थे तो तय मानिए कि एक दिन वे ‘लिंच’ कर दिए जाते और बाद में उन्हीं पर देशद्रोह का, अराजकता फैलाने का केस चलता, दुश्मन देश की  बात करने, उसका हित साधने की कोशिश करने के कारण सिडीशन-केस हो जाता और वे सात जन्म बरी न हो पाते! और हम लेग उनकी जयंती न मना पाते। इसी बीच ‘सोशल मीडिया’ में रमने वाले एक मित्र ने सूचना दी कि आप निराश न हों, आज आपकी मनोकामना पूरी हुई क्योंकि जिस वक्त हमारे टीवी चैनल गांधी-गांधी भजकर अपने ‘अपराध बोध’ का किंचित शमन कर रहे थे और गांधी के भांति-भांति के चेले चांटियों के ‘दर्शन’ करा के हमें धन्य-धन्य कर रहे थे उसी वक्त सोशल मीडिया पर नाथूराम गोडसे ‘ट्रेंड’ कर रहा था और एक ने तो यह भी खबर दी कि एक जगह एक नकली नाथूराम ने गांधी की मूर्ति पर उसी तरह से गोली दागी, जिस तरह से सामने दागी थी!
ऐसी खबरें सुन देखकर हम एकदम सदमे में आए ही थे कि अचानक हमारे एक पुराने मित्र ने यह कहकर हमारा ढांढस बंधाया कि अगर आज गांधी होते तो ‘संघ’ में होते! गांधी का ऐसा ‘मल्टीपरपज उपयोग’ देख हमें लगा कि गांधी वाकई सबके लिए ‘मल्टीपरवज आइटम’ हैं। उनको जो चाहे जैसे अपने ‘उपयोग’ में ला सकता है। हमने उनको अपने राजनीतिक उपयोग का ऐसा ‘ईश्वर’ बना लिया है, जिसको नैवेद्य चढ़ाए बिना हमारे पाप नहीं कट सकते।
इसलिए वे हमेशा उपयेगी रहेंगे। इसीलिए हर युग में उनके नये-नये ‘भक्त’ होंगे जो उनका अपने हित में ‘यूज’ या ‘मिस यूज’  करेंगे और ऐसा देख देख हमारे जैसे लोग ईष्र्या द्वेष से जलते रहेंगे और इसी तरह रोते बिसूरते रहेंगे।

सुधीश पचौरी


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