श्रद्धांजलि : एक आदर्श जीवन का अवसान

Last Updated 25 Aug 2019 07:06:15 AM IST

सहसा इस समाचार को दिल से स्वीकार करना आसान नहीं है कि अरु ण जेटली हमारे बीच नहीं रहे। हालांकि उनकी स्थिति करीब से जानने वालों ने उसी दिन उम्मीद खो दी थी जब पिछले 9 अगस्त को उनको अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया।


एक आदर्श जीवन का अवसान

इसके पूर्व ही उन्होंने नरेन्द्र मोदी 2 सरकार में कोई जिम्मेवारी लेने से इनकार कर दिया था। जेटली सुलझे हुए व्यक्तित्व थे। भाजपा में उनकी एक जिम्मेवारी प्रतिदिन प्रवक्ताओं का वर्ग लेने की थी। वे बताते थे कि किस मुद्दे पर पार्टी की क्या राय है। बीमार रहने के बावजूद वे यह जिम्मेवारी पूरी करते रहे लेकिन प्रवक्ताओं को हिदायत देते थे कि मेरे नजदीक नहीं आना संक्रमण का खतरा है। एक दिन उन्होंने सबके सामने बोल ही दिया कि अब तो मैं कुछ दिनों का ही मेहमान हूं जितनी बात करनी है कर लो। उस दिन अनेक प्रवक्ताओं की आंखों में आंसू आ गए थे। टिश्यू कैंसर तथा किडनी प्रत्यारोपण के बाद पैदा हुई जटिलताओं से जूझते हुए भी उन्होंने अपना आत्मबल बनाए रखा तभी वे उस अवस्था में भी काम कर पा रहे थे। मनुष्य यहीं पर आकर असहाय हो जाता है। मृत्यु पर किसी का वश नहीं।
छियासठ वर्ष की उम्र उनके जाने का समय नहीं था। जेटली जी का जाना भाजपा के लिए तो बहुत बड़ी क्षति है ही, भारतीय राजनीति और समग्र रूप में देश के लिए भी क्षति है। गोविन्दाचार्य के पार्टी से अलग होने, प्रमोद महाजन के जाने के बाद से वे पार्टी के प्रमुख विचारक, रणनीतिकार और केंद्र व प्रदेश के नेताओं, मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों के प्रमुख सलाहकार हो गए थे। हालांकि 2019 के चुनाव में अस्वस्थता के कारण उनकी बड़ी भूमिका नहीं दिख रही थी, लेकिन राजधानी दिल्ली से ही प्रबंधन, जगह-जगह से जमीनी हालात का पता करना एवं रणनीतिक दृष्टि से मार्गदर्शन करना, विपक्ष के हमलों का पत्रकार वार्ता द्वारा, निजी साक्षात्कार के माध्यम से जवाब देकर तथा ब्लॉग लिखकर वे मोर्चा संभाले हए थे। कोई मुख्यमंत्री नहीं होगा जो समस्याएं आने पर उनसे सलाह नहीं लेता रहा हो। अपने कद के कारण वे अधिकारपूर्वक बात कर सकते थे। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह उन पर आंख मूंदकर विश्वास ही नहीं करते थे, जो उन्होंने कर दिया उसका सम्मान भी करते।

जेटली जी की स्थिति यह थी कि वह कोई भी फैसला पार्टी में कर सकते थे। बिहार में नीतीश कुमार के साथ सरकार बनाने का फैसला उनका ही था। यह हैसियत किसी की कृपा से नहीं, उनकी अपनी योग्यता, क्षमता और व्यवहार से निर्मिंत हुई थी। अपने आरंभिक जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता तथा पदाधिकारी के रूप में उन्होंने अपने संगठन के साथ दूसरे छात्र संगठनों पर भी छाप छोड़ी। जयप्रकाश आंदोलन में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। अलग-अलग विचारों के छात्रों-युवाओं के बीच समन्वय बनाकर काम करने, नेताओं-कार्यकताओं के गिरफ्तार होने के बावजूद आंदोलन की गतिविधियां चलाते रहने, जेल गए नेताओं के परिवारों का ध्यान रखने आदि में उनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। उस आंदोलन में शामिल वैचारिक विरोधी भी उस दौरान के उनके कार्यों की आज भी प्रशंसा करते हैं। जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो दिल्ली में जेटली ही उनके सबसे विस्त सलाहकार और मित्र थे। गुजरात दंगों के बाद  मोदी के त्यागपत्र के लिए अटलजी के अड़ जाने के बाद आडवाणी को समझाने वालों में जेटली ही शामिल थे। वे ही गांधीनगर जाकर मोदी को गोवा कार्यकारिणी बैठक में लाए थे। मोदी और जेटली की दोस्ती भाजपा में एक उदाहरण बन गई।
सांसद के रूप में भी उनकी भूमिका हर दृष्टि से आदर्श थी। विषय को गहराई से रखना, उसके लिए शब्दों का चयन इतना प्रभावी होता था कि विपक्ष के नेता भी उनके भाषण को सुनने के लिए उपस्थित रहते थे। बहस की उनकी कला उन्हें सबसे अलग खड़ा करती थी। पिछले दो दशक से जेटली राज्य सभा की बहस की जान हो गए थे। ख्यातिप्राप्त अधिवक्ता थे, पर लगता था जैसे हर विषय पर उनकी जानकारी उतनी ही गहरी थी जितनी कानून और संविधान की। संसद के सत्र के दौरान केंद्रीय कक्ष में उनके ईर्द-गिर्द पत्रकारों और नेताओं का घेरा लगा रहता था और वे कभी इससे खीझते भी नहीं थे। इस तरह भारतीय संसद के लिए भर यह बहुत बड़ी क्षति है।
वाजपेयी सरकार से लेकर मोदी सरकार में उन्होंने कई मंत्रालय संभाले और किसी को नहीं लगा कि वे इस विभाग के लिए नये थे। सरकार चलाने के लिए अपने विचारों और मुद्दों के प्रति दृढ़ रहते हुए भी विपक्ष के साथ संपर्क, संवाद और समन्वय की आवश्यकता होती है। जेटली इन गुणों पर खरे उतरते थे। विपक्ष के नेताओं के साथ भी उनके संबंध काफी गहरे थे। जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो जेटली ही दिल्ली की राजनीति, मीडिया और बौद्धिक वर्ग से उनके संपर्क के मुख्य सूत्रधार थे। जब वे पहली बार राज्य सभा में आए और फिर अटल सरकार में मंत्री बने तो उन्होंने अपना सरकारी घर पार्टी को दे दिया। ग्यारह अशोक रोड के बगल में 9 अशोक रोड लंबे समय तक उनके ही नाम पर आवंटित था जिसमें पार्टी के पूर्णकालिक नेता निवास करते थे। वित्त मंत्री के रूप में उनका योगदान ऐतिहासिक है। एक कर की अवधारणा यानी जीएसटी की कल्पना उनके नेतृत्व में ही साकार हुई। यूपीए सरकार के दौरान डांवाडोल हो चुकी अर्थव्यवस्था को संभालने और दुनिया भर का भारत की आर्थिक शक्ति में विश्वास वापस लाने एवं निवेशकों का भरोसा पैदा करने में देश की अतुलनीय सेवा की। भ्रष्टाचार और काला धन के विरु द्ध जितने कड़े कानून मोदी सरकार ने बनाए वह अपने-आपमें रिकॉर्ड है, और उसमें प्रधानमंत्री के बाद सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका उनकी ही थी।
समाज के निचले तबके के कल्याण एवं सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए बनी योजनाओं में उनके योगदान को कोई नहीं भुला सकता है। उनके द्वारा प्रस्तुत पांच बजट इस बात के प्रमाण हैं कि कैसे उन्होंने बड़े-बड़े बदलाव किए। राजनीति के बदलते चरित्र में भी उन्होने एक कार्यकर्ता का संस्कार बनाए रखा। देश भर में अनेक कार्यकर्ताओं की प्रतिभा पहचान कर उन्होंने पार्टी में जिम्मेवारी दी। आज कई बड़े प्रवक्ता जो टीवी चैनलों पर दिखते हैं, उनमें से कई उनके द्वारा ही तैयार किए गए हैं। इस तरह आरंभिक छात्र नेता से लेकर भाजपा संगठन, विचारधारा, संसद और सरकार के साथ व्यक्तिगत संबंधों में संतुलन बनाकर उन्होंने आदर्श स्थापित किया है। इतने लंबे राजनीतिक जीवन में एक पैसे के भ्रष्टाचार का या किसी तरह के भाई-भतीजावाद का अरोप न लगना जेटलीजी को सार्वजनिक जीवन में अत्यंत ही ऊंचा स्थान प्रदान करता है। संगठन एवं सरकार में इतनी बड़ी जिम्मेवारी रहते हुए किसी पार्टी में उनके व्यक्तिगत विरोधी नहीं मिलेंगे। यह असाधारण स्थिति है। सच कहा जाए तो हमेशा अपने काम के केंद्र में देश को रखने वाला एक ऐसा नेता हमारे बीच से चला गया है जो सबका था, और सबके लिए था।

अवधेश कुमार


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