व्यंग्य: अब काशी को क्योटो कर ही दीजिए प्रधानमंत्री जी

Last Updated 15 Sep 2017 04:33:38 PM IST

प्रधानमंत्री मोदी जी ने एक सपना साकार कर दिया. एक ऐसा सुहाना सपना जिसके सच होने की कल्पना करने में भी डर लगता था. आखिर छुक-छुक करती पैसेंजर और हद से हद एक्सप्रेस रेलगाड़ियों से सफर करने वाले हम भारतीय कैसे बुलेट ट्रेन की कल्पना कर सकते थे.


अब काशी को क्योटो कर ही दीजिए प्रधानमंत्री जी

आधारशिला पड़ गई तो चल ही जाएगी. अब से कुछ वक्त पहले तक ठेकेदारी या थानेदारी की कमाई के बगैर बुलेट मोटरसाइकिल की कल्पना तक न कर पाने वालों को बुलेट ट्रेन का तोहफा दे दिया. अगली बार प्रधानमंत्री के तौर पर बुलेट ट्रेन का उद्घाटन भी करेंगे. अरे, बनेंगे ही. फिर प्रधानमंत्री बनेंगे. दिल्ली के दो विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनावों में भले ही पार्टी वालों ने थोड़ा जोर कम लगाया, लेकिन सपने सच होता देख कौन साथ नहीं देगा. इतनी रफ्तार वाला सपना सच हो गया, तो हिम्मत बढ़ गई.

फिर भी हौसले या हक से नहीं बड़ी ही विनम्रता से झुक कर, आपके लोग देख रहे होंगे, दोहरा होकर, जान की अमान मांगते हुए, दरख्वास्त कर रहा हूं, क्योटो वाला वादा भी पूरा कर ही दीजिए. आपने कहा था तभी हिमाकत कर रहा हूं. काशी को क्योटो बना ही दीजिए. गजट करा दीजिए. पुराणों की तरह ही बहुत पुराना हो गया है काशी. हिल ही नहीं रहा है. सदियां हो गईं. दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक काशी जड़ हो गया है. कोई सुविधा नहीं बची है. बाबा के दर्शन के लिए जाएं, तो मन ऊब जाता है. परलोक सुधारने के लिए तमाम विघ्न-बाधा पार कर पहुंचे भी, तो मस्जिद से मन खराब हो जाता है. उससे भी तो निपटना है. फिलहाल आप क्योटो बना दीजिए. हो सकता है मलेच्छ डर के खुद ही सरेंडर कर दें. ज्ञान उपज जाए. ज्ञानवापी इधर-उधर खिसका लें. जापानी स्टाइल में.

और हां, ये तो ठीक किया आपने. शिंजो बाबा को अहमदाबाद ले गए. वहां चुनाव होने वाले हैं. जापानी पीएम भी वाइब्रेंट गुजरात में लोकशाही की ताकत तो देख लें. अगली बार क्योटो, पुराना नाम काशी, ही ले आइएगा. ठीक है, 2018-19 या 2021 में ही सही. तब तो यूपी भी चुनावी रंग में रहेगा. यहां से भी कम से कम बुलेट ट्रेन की आधारशिला रखवा दीजिएगा. वैसे भी विदेशियों को ये शहर लुभाता है. हां, तब यहां से गुजरात के लिए बुलेट ट्रेन चलवा ही दिया जाएगा. आखिर क्योटो बनेगा, तभी तो जापान जैसा विकास होगा.

लखनऊ वाले महाराज जी, अपने योगी जी, की परेशानी भी खत्म हो जाएगी. सन्यासी हैं न. लिहाजा संतों से मिलते-जुलते ही रहते हैं. इसी क्वार के महीने में संतों की एक टोली मुख्यमंत्री महाराज से मिलने पहुंची थी. हक है, सो पूरे हक से आई. तमाम असंतों का नाम महाराज जी को दिया और बताया कि ये वो हैं जो गेरुआ पहनकर संत समाज का नाम बदनाम कर रहे हैं. इनको काबू करिए. महाराज जी की सरकार है. कार्रवाई कर ही देंगे. कोई असंत इलाहाबाद अर्द्धकुंभ में घुस भी नहीं सकेगा. घुसेगा तो भक्त की तरह, भगवान के रूप में नहीं. श्रद्धालु के तौर पर तो संगम नहा सकेगा, संत की तरह शाही तरीके नहीं. बड़ी अच्छी बात है. गेरुआ पहनकर खामख्वाह शाही स्नान को गंदा नहीं करेगा.

तो संतजन इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करने को कह रहे थे. महाराज जी भी यही चाहते हैं. होना भी चाहिए. प्रयागराज सोने की चिड़िया का गौरव रहा है. गंगा जमुना और सरस्वती मिलकर वहां डुबकी लगा लेने वाले को सीधे मोक्ष पहुंचा देने की ताकत जो रखती है. प्रयागराज, ठीक है मान भी लीजिए, वही इलाहाबाद, काशी उफ क्योटो से कोई साठ-पैसठ कोस है. कहते हैं काशी को शिवजी ने वरदान दिया है कि वहां मरने वाले को सीधे मोक्ष मिलेगा. इस मामले में काशी को प्रयाग से भी ज्यादा शक्ति दी है. प्रयागराज में संगम में डुबकी लगाना, वहां का जल पीना या फिर वहां के जल को देखना जरूरी है- दरस, परस, मज्जन अरु पाना. जबकि काशी के लिए इनमें से कोई शर्त नहीं है. बस कोई वहां मरा तो सीधे मोक्ष. शिव लोक की प्राप्ति करता है.

11वीं सदी तक जापान की राजधानी क्योटो को भी शांति का नगर कहा जाता रहा है. जापान के यमशिरों प्रांत के इस शहर को ‘हे यान जो’ कहते रहे हैं. काशी वालों को समझ जाना चाहिए, जापानी भाषा में ‘हे यान जो’ का मतलब शांति का नगर होता है. बीएचयू की तरह वहां भी क्योटो विश्वविद्यालय है. उसका प्रतीक चिह्न, लोगो भी अपने बरगद के वृक्ष जैसा ही है. इस कारण भी प्रधानमंत्री जी आपका फैसला सही है. काशी को सुविधा के लिहाज से क्योटो ही होना चाहिए. काशी जैसे वो शहर भी पर्यटन के लिए जाना जाता है. वैसे भी महात्मा बुद्ध के दौर में हमने जापान को जो सिखाया था, उस कारण भी हमारा कुछ हक तो बनता ही है.

लोग हैरान होते हैं इन सबके बाद भी गुजरात पता नहीं कैसे काशी और प्रयाग पर भारी पड़ जा रहा है. जबकि संघ भी प्रयाग को काशी प्रयाग प्रांत में ही रखता है. चुनाव और लोकशाही की ताकत गुजरात में है, कल को यूपी में भी होगी. सबके बाद भी काशी का विकास हो जाता तो प्रयाग का भी इहलोक सुधर जाता. काशी क्योटो बन जाती तो बड़े आराम से बलिया, गाजीपुर, आजमगढ़, देवरिया और गोरखपुर तक उसका फायदा पहुंच जाता. वहीं गोरखपुर जहां ऑक्सीजन रुक जाने से बच्चे मर गए थे. अब याद तो नहीं करना चाहिए, लेकिन बच्चे बेचारे इंसेफेलाइटिस (आमफहम नाम जापानी बुखार) से बीमार थे. उन्हें भी इलाज मिल गया होता. अभी कुछ भी नहीं देखा था उन बच्चों ने. छोटी सी उमर में भयावह मौत देख लिया. यही तो नरक है. इन सब से मुक्ति मिल जाएगी.

पहले विदेशी राष्ट्राध्यक्ष या शासनाध्यक्ष आते थे, दिल्ली पहुंचते थे. अब सीधे अहमदाबाद पहुंच रहे हैं. कोई दिक्कत नहीं. अहमदाबाद भी आपका और अब क्योटो भी आपका. पहले विदेशी दिल्ली से चल कर काशी जाते थे. आगरे का ताज महल देखते थे. कोई बात नहीं वहां भी आपने शिंजो बाबा को मस्जिद तो दिखा ही दी. अगली बार हमारे क्योटो से अहमदाबाद तक बुलेट ट्रेन की आधारशिला रख कर जाएंगे. ताकि बाद में भी जिसे तलब होगी, बापू, आसाराम नहीं, महात्मा गांधी के बारे में जानने की वो आराम से हमारे क्योटो से अहमदाबाद चार-पांच घंटे में पहुंच जाएगा. सुंदर होस्टेस की सेवाएं लेते गंगा से साबरमती तक.

इस तरह से प्रयाग, क्योटो पुराना नाम काशी और अहमदाबाद सबका विकास होगा. बस जरा नजर डाल दें. कृपा बरस जाएगी. पूरे यूपी वालों की बल्ले-बल्ले हो जाएगी. काशी क्योटो बनेगा और इलाहाबाद प्रयागराज. क्योटो पुराने नाम वाले प्रयाग की बांह थाम लेगा और उसकी भी तरक्की हो ही जाएगी.  

राजकुमार पांडेय


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