अफसर-मंत्री उपयोगिता का विस्तार

Last Updated 04 Sep 2017 04:23:20 AM IST

मोदी मंत्रिमंडल का 2019 के लोक सभा चुनाव के पूर्व विस्तार इस मायने में गौरतलब है कि नये नौ मंत्रियों में चार मंत्री नौकरशाही की पृष्ठभूमि के हैं.


मंत्रिमंडल विस्तार में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद शपथ दिलाते हुए.

सरसरी तौर पर मंत्रिमंडल के इतिहास में नौकरशाही की पृष्ठभूमि वाले मंत्रियों की सर्वाधिक संख्या वाला यह मंत्रिमंडल है. चुनाव में नौकरशाहों की राजनीतिक पार्टियों व खास विचारधारा के पक्ष में भूमिका अयोध्या के बाबरी मस्जिद की जगह के विवादित होने के समय से ही दिखती रही है. नौकरशाहों के राजनीतिक पार्टी में शामिल होने का भी इतिहास उतना ही पुराना है. यानी नौकरशाही राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा का औजार बनती रही है. लेकिन राजनीतिक सत्ता की गैर राजनीतिक पेशेवर लोगों व नौकरशाहों की क्षमता पर निर्भरता राजीव गांधी के कार्यकाल के समय से लगातार बढ़ती चली गई है. जम्मू-कश्मीर में  गुलाम नबी आजाद जब मुख्यमंत्री थे तो मुख्य सचिव बीआर कुंदल ने अपने पद से इस्तीफा कर दिया और मंत्री पद की शपथ ले ली.

नौकरशाही की ‘योग्यता व क्षमताओं’ का उपयोग न केवल सत्ता की राजनीति के लिए बढ़ी है बल्कि निजी कंपनियों व संस्थाओं के लिए नये आर्थिक युग में भी तेजी से बढ़ी है. कंपनियां व संस्थाएं ये समझती हैं कि नौकरशाही और खासतौर से प्रशासनिक, पुलिस और विदेश सेवा में रहने वाले अधिकारियों के रिटायर होने के बाद उनके नौकरशाही के साथ जो संबंध होते हैं उसका लाभ उठाया जा सकता है. कई उदाहरण ऐसे मिलते हैं, जिसमें कि नौकरशाहों ने सेवा समाप्ति के बाद की अवधि के लिए अपनी सुख, सुविधाओं व सत्ता का इंतजाम करने में कोई कसर बाकी नहीं छोंड़ी.

नरेन्द्र मोदी की सरकार और राजीव गांधी की सरकार की कई स्तरों पर तुलना की जा सकती है. कांग्रेस को आजादी के बाद सर्वाधिक सीटें राजीव गांधी के नेतृत्व में मिली थीं और मोदी के नेतृत्व में पहली बार संघ-भाजपा अपने बूते सरकार में आई. दोनों की नौकरशाही की तरफ लोकतंत्र के लिए राजनीतिक मानक के स्तर से ज्यादा झुकाव देखा गया. राजीव गांधी ने राज्यों में तैनात भारतीय प्रशासनिक सेवाओं (आईएएस एवं आईपीएस) के अधिकारियों को सीधे केंद्र से संपर्क बनाने की जरूरत महसूस की.

प्रधानमंत्री के तौर पर नरेन्द्र मोदी पहले राजनेता हैं, जिन्होंने देश के प्रमुख 77 नौकरशाहों के साथ बैठक में कहा कि अधिकारी सीधे उन तक पहुंच सकते हैं. संसदीय राजनीति में नौकरशाही के जरिये कामयाबी के कई आयाम देखने को मिलते हैं. वह किस-किस तरहद्म से संसदीय राजनीति में सफलता के लिए काम आता है उसकी कोई एक निश्चित सूची नहीं बनाई जा सकती है. लेकिन उसके आयामों को समझा जा सकता है. उत्तराखंड में जब केदार नाथ आपदा के दौरान विजय बहुगुणा की सरकार पर तलवार लटकने लगी तो वहां के एक नौकरशाह ने अमेरिकी राजदूत से यह बयान दिलवाने में सफलता हासिल कर ली कि उत्तराखंड में विजय बहुगुणा की सरकार ने आपदा के दौरान बेहतरीन राहत कार्य किया है.



अपने देश में इस तरह के शोध नहीं होते हैं कि राजनीति में गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि के लोगों की बढ़ती भागीदारी से राजनीतिक ढांचे में किस तरह के परिवर्तन हुए हैं. एक दौर रहा है कि राजनीति में वकीलों की भूमिका बहुत थी और आज राजनीतिक नेतृत्वों की ये छाया की तरह देखने को मिलते हैं. राजनैतिक और नीतिगत बहस को एक अदालत की तकनीकी बहस में बदल देना संसदीय राजनीति की बड़ी जरूरत बन गई है क्योंकि नये आर्थिक युग के लिए संसदीय राजनीति की जन भाषा अप्रसांगिक मान ली गई है. लोक सभा चुनाव के पूर्व नौकरशाही की पृष्ठभूमि के सदस्यों को मंत्रिमंडल में शामिल करने के पीछे जो उद्देश्य दिखाई देता है वह ‘चुनाव प्रबंधन’ में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ने का संकल्प ज्यादा है.

संसदीय लोकतंत्र में ये अनुभव किया गया है कि जब किसी एक नेतृत्व के इर्द-गिर्द मतों के ध्रुवीकरण के हालात बन जाते हैं, तब वह नेतृत्व उस ध्रुवीकरण को बांधे रखने के तरीकों पर जोर देता है. सामूहिक नेतृत्व वाली संसदीय राजनीति में गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि के लिए महत्त्वपूर्ण जगह का बनना संभव नहीं दिखता है. संसदीय राजनीति में सफलता का नया फार्मूला यह है कि अपने पक्षधर छोटे से समूहों को बांधे रखने के जुगाड़ और उसके विपरीत बड़े समूहों में ज्यादा से ज्यादा बिखराव पैदा करने के तमाम तरह के जुगाड़ होने चाहिए.

चुनाव प्रबंधन (मैनेजमेंट) का विषय हो गया है. जाहिर है कि इसमें नौकरशाही की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है और उस नौकरशाही से नौकरशाही की भाषा और शैली में संबंध बनाए रखने और उसका इस्तेमाल करने के लिए नौकरशाही की पृष्ठभूमि सबसे उपयुक्त हो सकती है. मंत्रिमंडल में नौकरशाहों की बढ़ती मौजूदगी नौकरशाही के ढांचे में राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा को बढ़ाएगी. 

अनिल चमड़िया


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