मुद्दा : अनफिट होते निजी इंजीनियरिंग कॉलेज

Last Updated 24 Aug 2017 02:18:39 AM IST

देश में इंजीनियरिंग शिक्षा से जुड़े शिक्षण संस्थानों की स्थापना का मकसद भारत में तकनीकी शिक्षा व शोध को बढ़ावा देना था, ताकि देश के विकास के लिए जरूरी टेक्नोलॉजी तैयार हो सके और भारत इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सके.


अनफिट होते निजी इंजीनियरिंग कॉलेज

लेकिन अब जो खबरें इन संस्थानों, खास तौर से निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों के बारे में आ रही हैं, वह बेहद निराश करने वाली हैं. हाल में पता चला है कि बीते शिक्षण सत्र (2015-16) से लेकर मौजूदा सत्र के बीच देश के करीब 350 प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हो गए हैं.
मानव संसाधन मंत्रालय के अनुसार, इन कॉलेजों ने खुद बंद करने की इजाजत मांगी थी क्योंकि इन्हें पर्याप्त संख्या में छात्र नहीं मिल रहे थे. हालांकि इन कॉलेजों ने एडमिशन में आई गिरावट की साफ वजह नहीं बताई है, लेकिन सच्चाई यह है कि एजुकेशन की खराब क्वॉलिटी, घटिया जॉब प्लेसमेंट और पूर्व छात्रों से मिले फीडबैक के आधार पर अभिभावकों और नये छात्रों ने इनसे कन्नी काटना शुरू कर दिया था. इस कारण हालत यह हुई कि पिछले तीन सालों में तेलंगाना के 53, महाराष्ट्र के 50, आंध्र प्रदेश के 19, हरियाणा के 28, मध्य प्रदेश के 16, राजस्थान के 25, यूपी के 37, तमिलनाडु के 18 और दिल्ली का एक इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हो गया. असल में, इस बारे में तकनीकी शिक्षा की नियामक संस्था ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) ने तय किया था कि जिन इंजीनियरिंग कॉलेजों में सीटों के मुकाबले 30 फीसद से कम एडमिशन हो रहे हैं, उन्हें बंद किया जाएगा. देखा गया कि इस दौरान इन सारे कॉलेजों में कुल मिलाकर करीब 27 लाख सीटें खाली रहीं.

देश में एआईसीटीई की मान्यता रखने वाले 10361 इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, जिनमें 37 लाख से कुछ ज्यादा सीटें हैं. इस तरह बीती अवधि में उनमें से सिर्फ  दस लाख सीटें ही भरी जा सकी हैं. एआईसीटीई ने तय किया था कि जिन इंजीनियरिंग कॉलेजों में शिक्षा खराब क्वॉलिटी और कम डिमांड का पता चलेगा, उन्हें बंद करना ज्यादा उपयुक्त होगा. इस उद्देश्य से इंजीनियरिंग कॉलेज बंद करने पर पेनाल्टी काफी घटा दी गई थी, जिसे एक मौका समझकर निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों ने अपने यहां पढ़ाई बंद करने का फैसला कर लिया. तकनीकी शिक्षा के माध्यम से रोजगार-नौकरी दिलाने के उद्देश्य से देश के कोने-कोने में जो निजी इंजीनियरिंग कॉलेज खोले गए, उनमें छात्रों की दिलचस्पी घटने की वजह युवाओं में नौकरी लायक पढ़ाई या कोर्स करने की इच्छा खत्म होना नहीं, बल्कि यह है कि ऐसे ज्यादातर संस्थानों का असली ध्यान सिर्फ  अपनी कमाई पर रहा है. वे सिर्फ  सीटें भरने में दिलचस्पी लेते रहे, शिक्षा की गुणवत्ता जैसे पहलू पर नहीं. इसका नतीजा यह हुआ कि इन संस्थानों के निकले छात्रों को जिन कंपनियों ने नौकरी पर रखा, कुछ समय बाद वे उनमें स्किल की कमी की शिकायत करने लगीं. यही नहीं, ऐसे ज्यादातर युवाओं को कंपनियों में की गई छंटनी प्रक्रिया का सबसे पहला शिकार भी बनना पड़ा है. इन वजहों से ऐसे इंजीनियरिंग कॉलेजों की प्रतिष्ठा ही धूमिल नहीं हुई, बल्कि युवाओं की क्षमता भी संदिग्ध मानी जाने लगी. ‘एस्पायरिंग माइंड’ नामक संस्था तो बीते कई वर्षो से अपने सर्वेक्षणों में यह निष्कर्ष निकालती रही है कि ऐसे कॉलेजों से निकले देश के दो-तिहाई युवाओं की डिग्री बेमतलब है. उन्हें वह काम आता ही नहीं है, जिसकी उन्होंने वहां पढ़ाई की है.
ऐसे में देश के ज्यादातर निजी इंजीनियरिंग कॉलेज अब कई विरोधाभासों के प्रतीक बन गए हैं. ऐसे ही शिक्षण संस्थान शिक्षा का स्तर घटाने के लिए जिम्मेदार हैं, क्योंकि वे सिर्फ  नौकर तैयार करते हैं. उनका देश के तकनीकी विकास में रत्ती भर योगदान नहीं होता. देखना होगा कि कंपनियों के लिए सिर्फ सस्ते इंजीनियर तैयार करने के चक्कर में देश की इंजीनियरिंग शिक्षा कहीं अपनी वह चमक न खो दे, जिसके लिए वह जानी जाती रही है. भारत जैसे देश में, जहां उसके प्रतिभावान व उच्च शिक्षित नौजवानों के अपने देश के गरीब व वंचित तबकों के लिए काम करने की जरूरत है, वहां इंजीनियरिंग कॉलेज जैसे शिक्षण संस्थानों का ऐसा रवैया किसी भी किस्म के आदर्शवाद को खत्म करने के लिए काफी है. घटती छात्र संख्या को एक सबक मानते हुए इन संस्थानों को नये सिरे से अपनी उपयोगिता साबित करनी होगी और बताना होगा कि हकीकत में ज्ञान के मंदिर हैं, सस्ते इंजीनियर सप्लाई करने वाले संस्थान नहीं. इस तरह उन्हें अपनी गुणवत्ता बढ़ाने पर जोर देना होगा.

अभिषेक कुमार
लेखक


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