तीन तलाक : बराबरी का फैसला

Last Updated 23 Aug 2017 04:50:28 AM IST

सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों वाली सांविधानिक पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश, जे एस खेहर (जिनका अगले शुक्रवार को कार्यकाल खत्म होने वाला है), न्यायाधीश, एस अब्दुल नज़ीर, कुरियन जोसेफ़, आर एफ़ नरीमन और यू यू ललित शामिल थे, ने मुसलमानों के ‘निजी कानून’ के घेरे में आने वाले ट्रिपल तलाक पर एक ऐतिहासिक और दूरगामी प्रभाव वाला फैसला दिया है.


तीन तलाक : बराबरी का फैसला

 सर्वोच्च न्यायपालिका ने 3-2 के बहुमत से ट्रिपल तलाक के चलन को गैर-संविधानिक और गैर-इस्लामी करार देते हुए गैर-कानूनी घोषित कर दिया है. ट्रिपल तलाक का यह मामला इस चलन की शिकार मुसलमान महिलाओं, शायरा बानो, आफरीन रहमान, गुलशन परवीन, इशरत जहां, अतिया साबरी और एक मुस्लिम महिला संगठन,  ‘मुस्लिम विमेंस क्वेस्ट फॉर इक्वलिटी’ द्वारा लाया गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई मई 11, 2017 से लगातार मई 18 तक की थी और फैसला सुरक्षित कर दिया था. आखिरकार ट्रिपल तलाक पर फैसला अगस्त 22, 2017 को सुना दिया गया. इस केस की सबसे अहम बात यह थी कि ट्रिपल तलाक की पीड़ित मुसलमान बच्चियों के वकीलों के अलावा, देश की लगभग हर विचारधारा से जुड़े संगठनों ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखा.

यहां तक की आरएसएस के एक संगठन की ओर से वरिष्ठ वकील, राम जेठमलानी पेश हुए. कोर्ट की मदद के लिए आमंत्रित किए गए आरिफ मुहम्मद खान और सलमान खुर्शीद ने ट्रिपल तलाक के खिलाफ तर्क पेश किये और इसके चलन गैर-इस्लामी बताने के लिए कुरान और हदीसों के भरपूर हवाले दिए तो ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ के वकील कपिल सिब्बल ने  ट्रिपल तलाक को इस्लाम का अभिन्न अंग और आस्था का मामला बताते हुए किसी भी तरह के हस्तक्षेप का विरोध किया.

प्रसिद्ध महिला क़ानून विशेषज्ञ और वकील इंद्रा जय सिंह ने ट्रिपल तलाक मुसलमान महिलाओं के मानवीय अधिकारों का लगातार होने वाला हनन बताया. हमारे देश की विविधता सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में भी साफ तौर पर देखी जा सकती है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश धर्म और जाति से परे होकर फैसला करते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की जिस पांच मेंबर वाली बेंच ने यह फैसला दिया है, उसमें सिख, हिन्दू, मुसलमान, ईसाई और पारसी जज थे. 

ट्रिपल तलाक मुद्दे पर पांच विभिन्न धर्मो के जज आपस में बंट गए. इस फैसले में तीन जजों ने स्पष्ट तौर पर कहा कि तीन तलाक असंवैधानिकहै. ईसाई, हिन्दू और पारसी न्यायाधीशों ने इसे असंवैधानिक ही नहीं बताया बल्कि न्यायाधीश कुरियन जोसेफ ने तो अपने फैसले में ट्रिपल तलाक को कुरान और इस्लाम धर्म के असूलों के खिलाफभी बताया.

उन्होंने अपने फैसले में यह साफ तौर पर लिखा कि ‘मुख्य न्यायाधीश के इस तर्क से सहमत होना बहुत मुश्किल है कि ट्रिपल तलाक इस्लाम धर्म का विभिन्न अंग है.’ इस तरह उन्होंने देश के मुसलमानों के उस विशाल हिस्से की समझ को मान्यता प्रदान की जो ट्रिपल तलाक के विरुद्ध सोच रखता है. वहीं मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहर एवं जस्टिस अब्दुल नजीर ने इसके पक्ष में फैसला सुनाया है और ट्रिपल तलाक को मुसलमानों के लिए एक मौलिक अधिकार का दर्जा देते हुए इसे संवैधानिक बताया.

हालांकि पांचों जजों ने ट्रिपल तलाक को एक कुरीति बताया. ट्रिपल तलाक के पक्ष में जो जज थे, उन्होंने भी इसे 6 माह तक होल्ड रखते हुए सरकार से कहा कि इस के खिलाफ कानून लाये. इस तरह मामला अब सरकार के पाले में आ गया है. इस बीच, उन महिलाओं ने इसे आजादी का दिन बताया, जो इससे पीड़ित हैं. अब देखना होगा कि केंद्र की मोदी सरकार किस तरह इस मामले में कानून बनाती है. यह सच है कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है, जिससे न केवल मुसलमान महिलाओं का बल्कि तमाम भारतीय महिलाओं का अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने का हौसला बुलंदतर होगा. पर इस सच्चाई को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए की यह महज एक शुरु आत है. स्वाभाविक है कि सुप्रीम कोर्ट के सामने मुख्य अपीलकर्ता शायरा बानो इस फैसले पर खुश हैं.

हालांकि उनके साथ जो जुल्म हुआ, उसकी भरपाई न हो सकेगी क्योंकि यह फैसला भविष्य में लागू होगा. उन्होंने एक बयान में कहा ‘मैं इस फैसले का स्वागत करती हूं और पूरी तरह इस से सहमत हूं. मुसलमान औरतों के लिए यह एक ऐतिहासिक दिन है. मुस्लिम समाज में औरतों की दशा को समझने की ज़रूरत है. इस फैसले को माना जाना चाहिए और तुरंत कानूनी मान्यता दी जानी चाहिए.’ उनके वकील, अमित सिंह चड्ढा ने इस केस में अहम भूमिका निभाई और फैसले को देश की महिलाओं की अधिकारों की लड़ाई में एक बड़ा कदम बताया. मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्षा शाइस्ता अम्बर ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए देश की तमाम औरतों की जीत बताया.  उनके अनुसार यह इस्लाम के असूलों की भी जीत है. सलमान खुर्शीद जो इस केस में कोर्ट की मदद भी कर रहे थे, ने इस फैसले पर खुशी जताते हुए कहा कि यह बहुत उत्तम फैसला है और हम जो चाहते थे वह आखिरकार हो गया है.

इस मामले में सब से जियादा भद्द जिस की पिटी है वह है मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और उस के कर्ता-धर्ता. इन्होंने एक अमानवीय चलन को गलत मानने में 70 साल लगा दिए और इसके बावजूद इस बदचलनी को बंद नहीं कराया. इस बदचलनी का शिकार कोई और नहीं मुसलमान औरतें ही हो रही थीं, जियादातर नौजवान बच्चियां.
शरीअत के ठेकेदारों के पास ट्रिपल तलाक की शिकार हजारों मुसलमान औरतों पर शरीअत के नाम पर इस जुल्म का कोई  उत्तर नहीं था कि जब दुनिया के लगभग सब मुसलमान देशों ने इस जालिम प्रथा को खत्म कर दिया है तो यह भारत में क्यों लागू है और भारत में भी सब मुसलमान इस को नहीं मानते हैं. ट्रिपल तलाक का कुरान में कोई जिक्र नहीं है, इसके बावजूद इसे कुरान से भी जियादा पवित्र बना दिया गया है.

शम्सुल इस्लाम
लेखक


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