जिम्मेदारी से बेपटरी होती रेलवे

Last Updated 21 Aug 2017 05:03:42 AM IST

भारतीय परिवहन का प्रमुख तंत्र रेलवे फिर हादसे का शिकार हुआ. मुजफ्फरनगर के खतौली में कलिंग उत्कल एक्सप्रेस के 14 डिब्बे पटरी से उतरे, जिसमें कम-से-कम 23 लोग मारे गए और 100 से ज्यादा घायल हुए.


उत्कल एक्सप्रेस हादसा (फाइल फोटो)

खतौली रेलवे स्टेशन से आगे जहां हादसा हुआ, वहां पटरी मरम्मत का कार्य चल रहा था. पटरी मरम्मत के औजार भी घटनास्थल पर पड़े हुए हैं, फिर भी चालक को इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई और कलिंग उत्कल एक्सप्रेस चश्मदीदों के अनुसार 100 किमी/घंटा की ज्यादा गति से मरम्मत वाली पटिरयों से गुजरी, जिसके चलते हादसा तो तय था.

इस दुर्घटना में रेल मंत्रालय की लापरवाही स्पष्टत: देखी जा सकती है. सबसे महत्त्वपूर्ण यह दुर्घटना तब घटी है, जब अगले ही माह सितम्बर में भारत में बुलेट ट्रेन की नींव रखी जानी है. हादसे की भयावहता को इससे ही समझा जा सकता है कि रेल का एक डिब्बा बगल के घर में घुसते हुए चौधरी तिलक राम इंटर कॉलेज के बिल्डिंग में भी घुस गया. यह ट्रैक काफी दिनों से खराब थी, जिसमें लगातार मरम्मत कार्य जारी था. चश्मदीदों के अनुसार एक माह पहले भी यहां एक बड़ी रेल दुर्घटना को स्थानीय लोगों के पहल से रोका गया था. उस समय भी रेल पटरी मरम्मत के कारण टूटे ट्रैक पर ट्रेन आ रही थी, जिसे लाल कपड़ा दिखाकर किसी तरह रोका गया.

इस घटना से भी रेलवे ने कोई सीख नहीं ली. यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है कि मरम्मत के दौरान टूटे पटरी पर आखिर ट्रेन को चलने की अनुमति कैसे मिली? शनिवार को भारी वर्षा हो रही थी, जिस कारण मजदूर नियत समय पर मरम्मत का कार्य नहीं कर पाए और वर्षा के कारण बीच में ही उन्होंने पटरी रिपेयरिंग का कार्य रोक दिया था. लेकिन लग रहा है इसके प्रक्रियात्मक पहलुओं का पालन नहीं किया गया. ऐसे में तो स्पष्ट है कि रेलवे की जानलेवा लापरवाही दुर्घटना का प्रमुख कारण बनी. रेल दुर्घटनाओं का असर किसी भी अन्य दुर्घटनाओं से काफी ज्यादा होता है.

भारतीय रेलवे अंतर्देशीय परिवहन का सबसे बड़ा माध्यम है. दुनिया के इस सबसे बड़े रेल नेटवर्क में से एक भारत में हर रोज सवा दो करोड़ से भी ज्यादा लोग सवारी करते हैं. ऐसे में भारतीय रेल को दुर्घटनाओं को रोकने के लिए तीव्रतम प्रयास करने होंगे और तब तक प्रयत्नशील होना होगा जब तक रेलवे दुर्घटनाओं को शून्य तक नहीं पहुंचा दे. उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव (गृह) ने स्वीकार किया कि घटनास्थल पर पटरी रिपेयरिंग का कार्य चल रहा था, परंतु रेलवे ने प्रारंभिक तौर पर रिपेयरिंग से इनकार किया है. रेलवे का कहना है कि जांच रिपोर्ट के बाद ही सच्चाई का पता चलेगा. एक तरह से कमिटी बनाकर जांच के नाम पर मामले को टालने का प्रयत्न है.  सबसे दुखद बात यह है कि रेलवे पूर्व में हुए दुर्घटनाओं से कोई सीख नहीं ले रहा है.



जांच समितियों के रिपोर्ट पर बाद में रेलवे द्वारा प्रभावी क्रियान्वयन के कमी से स्थिति में बदलाव नहीं आता है. छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई के बजाय बड़े स्तर पर जिम्मेवारी निर्धारित की जाए. आज वैश्विक स्तर पर तकनीक के द्वारा दुर्घटनाओं को न्यूनतम करने के प्रयास हो रहे हैं, किंतु भारतीय रेलवे में ऐसे समुचित प्रयास कम ही हुए हैं. अगर सूक्ष्मता पूर्वक भारतीय रेल के दुर्घटनाओं का विश्लेषण किया जाए तो करीब 80 प्रतिशत भारतीय रेल दुर्घटनाओं का कारण मानवीय भूल या चूक होती है.

 मानवीय चूक को रोकने के वैश्विक स्तर पर दो उपाय स्वीकार किए गए हैं-प्रथम आधुनिकतम तकनीक का प्रयोग कर मानवीय चूक को कम करना, द्वितीय-रेल कार्मिंकों का उच्चस्तरीय प्रशिक्षण. अगर आधुनिकतम तकनीक की बात करें तो इसमें ‘यूबीआरडी’ प्रमुख है.

रेलवे ने रेल पटिरयों की सुरक्षा निगरानी के लिए दक्षिण अफ्रीका से एक खास तकनीक यूबीआरडी आयात की है, जिसमें ट्रांसमीटर एक तरंग छोड़ता है और अगर रिसीवर को वह तरंग नहीं मिलती है तो पता चल जाता है कि कहीं बीच में कोई समस्या है. इस प्रणाली से पटरी के बारीक चटक का भी पता लग जाता है. इसके अतिरिक्त आधुनिक ‘लिंक हाफमैन बुश’ डिब्बे की अनुपस्थिति से भी हताहतों की संख्या में वृद्धि होती है. लिंक हॉफमैन बुश से युक्त डिब्बे पटरी पलटते नहीं.

मानवीय चूक रोकने का दूसरा प्रमुख उपाय रेलकर्मिंयों का उच्चस्तरीय प्रशिक्षण है. अब समय आ गया है जब भारतीय रेलवे सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करे. वरना ऐसे हादसे होते रहेंगे.

 

 

राहुल लाल


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment