लालकिले से : ठोस बातें ज्यादा हुई

Last Updated 16 Aug 2017 06:59:12 AM IST

लालकिले के प्राचीर से दिये अपने चौथे भाषण से प्रधानमंत्री ने अगर इस बार पहले की तुलना में ठोस बातें की तो उसकी साफ वजहें भी इस अवसर और उसके वक्त में शामिल थीं.


लालकिले के प्राचीर से भाषण से देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी.

अब इसके बाद उन्हें अपने इस कार्यकाल में सिर्फ एक और भाषण देना है. इसलिये इस बार ज्यादा हवाई बातें और सपने दिखाने की जगह ठोस बातें की गई और एक हद तक लेखा-जोखा भी दिया गया. उनकी सरकार द्वारा शुरू की गई कई सौ योजनाओं और मिशनों की सफलता/असफलता का हिसाब लगाने या उनका बचाव करने या फिर दो-चार नई योजनाएं शुरू करने की जगह उन्होंने मुख्यत: नोटबंदी और जीएसटी पर बात की. बाकी सफलताओं/असफलताओं को वे क्यों भूले यह गिनवाने का भी कोई लाभ नहीं है क्योंकि कुछ सोचकर ही उन्होंने इन्हें भुलाया. पर इससे जनता अपना हिसाब भूल जाएगी या पिछले चुनाव की घोषणाओं या इसी लाल किले से किये गए वायदे भूल जाएगी, यह मान लेना गलत होगा. पर प्रधानमंत्री और वह भी मोदी जैसा प्रधानमंत्री अपनी असफलताएं गिनवाने लगेगा, यह सोचना नादानी होगी.

जिन दो बातों पर प्रधानमंत्री ने ज्यादा ध्यान दिया उनमें से जीएसटी पर ज्यादा कुछ कहने लायक नई बातें उनके पास भी नहीं थीं. और उन्होंने नए दावे भी करने से परहेज किया. पर नोटबंदी को लेकर उन्होंने जो कुछ कहा, वह अहम था. और इसमें भी आपको काले धन पर चोट, आतंकवाद की फंडिंग और नकली नोट की समस्या के लिये यह कदम उठाने वाले उनके आठ नवम्बर के भाषण को याद करने की जरूरत नहीं है क्योंकि जो सरकार नौ-दस महीने में वापस आए नोटों की गिनती छुपा रही हो, वह काला धन मिलने और दूसरी बातों का आंकड़ा देगी और सफलता/असफलता स्वीकार करेगी, यह उम्मीद नहीं करनी चाहिये. लेकिन प्रधानमंत्री ने कई महत्त्वपूर्ण बातें कहीं. एक तो आठ सौ करोड़ रुपये की बेनामी सम्पत्ति पकड़े जाने की सूचना दी. उन्होंने यह भी कहा कि लगभग तीन लाख करोड़ रु पये का संदिग्ध धन बैंकों में पहुंचा है जिससे जुड़ी जांच और कार्रवाई चल रही है. उन्होंने आयकरदाताओं की संख्या में तेज इजाफे की सूचना भी दी. साथ ही कहा कि हमने पौने दो लाख बेनामी/शेल कम्पनियों को बंद कराया है. सो नोटबंदी और जीएसटी के बाद जब तक वे ठोस सफलता दिखाएंगे नहीं, मोदी की जय-जय मुश्किल होगी जबकि अब सब दावे 2019 की जगह 2022 के होने लगे हैं.
अब वापस आई रकम उम्मीद से तीन लाख करोड़ रुपये कम होने की जगह तीन लाख करोड़ रुपये ज्यादा होना, आयकर रिटर्न भरने वालों की संख्या का अचानक बढ़ना और शेल कम्पनियों का पकड़ा जाना सिर्फ इस अचानक शुरू हुई योजना की अप्रत्याशित सफलता भर नहीं है. ये आंकड़े इसका संकेत भी देते हैं कि सरकार को काला धन के बारे में काफी कुछ पता हो चुका है. सो ये सूचनाएं प्रधानमंत्री ने चाहे जिस मकसद से दी हों, पर अब उनकी सरकार का काम जरूर बढ़ गया है. साफ अंदाजा होने पर भी अगर काला धन और उसके मालिक न पकड़े जाएं तो यह सरकार की नाकामी होगी.
और कोई यह प्रचार भी कर सकता है कि आठ नवम्बर की घोषणा कालेधन को सफेद करा लेने के कट-आफ डेट की तरह की थी. इस प्रकार प्रधानमंत्री ने इस घोषणा से अपनी सरकार को ही अगले डेढ़ साल के लिए परीक्षा की अवधि में डाल दिया है. यह अप्रासंगिक न होगा कि अभी तक काला धन से लड़ाई का सरकारी रिकार्ड कोई बहुत अच्छा नहीं है जबकि सरकार कांग्रेसी भ्रष्टाचार से लड़ने और देश का कालाधन विदेशों से लाने के नाम पर बनी थी. जिस पनामा पेपर्स मामले में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नप चुके हैं, उसमें नाम सामने आने के बाद भी अपने यहां किसी का बाल भी बांका नहीं हुआ है. और हम भी उसे भूलते जा रहे हैं. प्रधानमंत्री ने कश्मीर के बारे में देश में व्याप्त हिंसा के माहौल के बारे में जो कुछ कहा उसे अगर सिर्फ फेस-वैल्यू पर लिया जाए तो बहुत अच्छा लगेगा. जब कश्मीर में फौजी सख्ती हो, दूसरा पक्ष भी ज्यादा आक्रामक लाइन ले रहा हो, मुल्क में कश्मीर से जुड़ी धाराओं को समाप्त करने की बहस चल रही हो, उसमें प्रधानमंत्री द्वारा गाली/गोली छोड़कर गले लगाने की बात करना अच्छा लगता है. लेकिन प्रधानमंत्री बार-बार हिंसा रोकने की बात करें और मजहब/जाति और दूसरे मुद्दों की असहिष्णुता के चलते जान जाती रहे तो उन्हें भी सोचना चाहिये कि एक्शन लेना कब जरूरी होगा.
दूसरे यह भी ध्यान रखना होगा कि उनकी बातें हल्की न मान ली जाएं. इस बार पाकिस्तान और चीन को सबक सिखाना, ईट से ईट बजाना, एक की जगह बीस मुंडी काटने जैसी बातें न कहकर उन्होंने अच्छा संकेत दिया है बल्कि इस तरह की बातों ने उनकी और सरकार की प्रतिष्ठा कम ही की है. आतंकवाद, नक्सलवाद और सेकुलरवाद पर अपनी सामान्य आक्रामक भाषा पर लगाम रखकर उन्होंने बेहतर संदेश दिया है. ये बातें अब लाभ से ज्यादा नुकसान करती हैं.
पर गोरखपुर की दुर्घटना और बढ़ते किसान आक्रोश पर उन्होंने जिस तरह की बातें कीं, उनसे बहुतेरे लोगों को निराशा हुई. एक तो प्रधानमंत्री गोरखपुर हादसे के कई दिन बाद पहली बार बोले. ऐसे देश-विदेश के मामलों पर वे दन से ट्वीट कर देते थे और जब बोले तब गोरखपुर की मौतों को भी प्राकृतिक आपदा की श्रेणी में डाल दिया. अगर वे इसे एक दुर्घटना या गलती मान लेते तो उनका कद बढ़ता. इतनी बड़ी और इतनी ताजा घटना ज्यादा उल्लेख की मांग करती थी. और किसानों की समस्या अतिवृष्टि या अनावृष्टि की नहीं है. उनकी समस्या अधिक पैदावार और पूरी अर्थव्यवस्था में खेती की बढ़ती दुर्गति से जुड़ी है. इसे सिर्फ 2022 में उनकी आमदनी दुगुनी करने जैसी हवाई घोषणा से दूर नहीं किया जा सकता. और प्रधानमंत्री द्वारा कम हवाई बातों की जो प्रशंसा शुरू में की गई है, 2022 में दिव्य भारत, भव्य भारत जैसी घोषणा करके उन्होंने उसकी भी भरपाई कर दी. भूख, भय, भ्रष्टाचार मुक्ति ही नहीं, बेरोजगारी, बेकारी, और उत्पादन का स्वर्ग बनाने की घोषणा का लक्ष्य भारत को कहीं ले जाना है या भाजपा को 2019 का चुनाव जितवाना यह समझ भी सबको है. लेकिन यह कहने में हर्ज नहीं है कि इस बार का उनका भाषण पिछले भाषणों से बेहतर था.

अरविन्द मोहन
लेखक


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