मुद्दा : रोल मॉडल की ट्रोलिंग

Last Updated 18 Jan 2017 03:04:58 AM IST

सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में अव्वल ‘दंगल’ पर लगातार कई हफ्तों से मिल रही चर्चा को अचानक झटका लगा.


मुद्दा : रोल मॉडल की ट्रोलिंग

यह झटका कोई मामूली नहीं कहा जा सकता. गीता फोगाट के बचपन का किरदार निभाने वाली जायरा वसीम को सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जा रहा था. अनाप-शनाप फब्तियां कसी जा रही थीं. जायरा ने 92 फीसद अंक से दसवीं उत्तीर्ण करने पर जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से मिलने के बाद फेसबुक पर अपनी खुशी पोस्ट की थी. लिखा कि मुफ्ती उसकी सफलता से बहुत खुश थीं, और उसे ‘युवाओं का रोल मॉडल’ कहा.

कुछ अलगाववादियों को उसको कश्मीरी युवाओं का रोल मॉडल कहे जाने पर आपत्ति थी. उन्होंने उसके खिलाफ भद्दी टिप्पणियां पोस्ट कीं. ये वही लोग हैं जिन्हें जायरा के बाल कटवाने से लेकर शॉर्ट पहन कर कुश्ती वाले सीन्स को लेकर आपत्ति थी. हालत इतनी गंभीर हो गई किबाद में उस बच्ची को आहत मन से माफी मांगते हुए लिखना पड़ा, ‘मैं जिन लोगों से मिली, उससे कुछ लोगों को बुरा लगा. मैं उन लोगों से माफी चाहती हूं. मैं उनके सेंटीमेंट्स का सम्मान करती हूं.’

उसके दुख को इतने से ही समझा जा सकता है कि उसने यह भी लिखा कि उसे खुद पर गर्व नहीं है, और उसको कश्मीरी युवाओं का रोल मॉडल कहना अपमानजनक होगा. हालांकि बाद में उसने अपनी यह पोस्ट डिलीट कर दी. एक 16 साल की होनहार बच्ची को जिस मानसिक त्रास से गुजरना पड़ा, वह इसी समाज की देन है, जिसमें हम सब बसते हैं. चूंकि मामला तूल पकड़ चुका था, इसलिए आमिर खान के ट्वीट से तसल्ली जरूर मिली होगी. आमिर ने लिखा-सब तुम्हारे साथ हैं. हिम्मती बच्चे भारत में ही नहीं, दुनिया भर के बच्चों की रोल मॉडल हैं.

दुख की बात तो यह है कि ऐसे उद्दंडी लोगों के साहस को भोथरा करने का काम उस स्तर पर नहीं हो रहा जैसे की जरूरत है. धर्म के स्वघोषित ठेकेदार पहले भी सानिया मिर्जा की स्कर्ट की लंबाई और उसकी खुली टांगों को लेकर बवाल मचा चुके हैं. बस चले तो ये औरतों को सिर से पांव तक लपेट कर तहखानों में बंद कर दें. ज्यादा समय नहीं हुआ है, जब पाकिस्तानी अदाकारा वीना मलिक के लिबास को लेकर कट्टरपंथियों ने सार्वजनिक मंचों से अनाप-शनाप बोला था. कुछ दिन पहले एक होनहार, तरक्की पसंद लड़की बलूच को उसके अपने भाई ने (पाकिस्तान में) ही सिर्फ इसीलिए मार डाला. बलूच बिंदास और खुले विचारों वाली लड़की थी. यह भारत है. जितने भी पारंपरिक या दकियानूस क्यों न हों. लेकिन हममें ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो लड़कियों के खिलाफ होने वाली हिंसा को निंदनीय मानते हैं.

ताजा मामले में सबसे खराब रुख राजनीतिक पार्टियों का रहा. कोई भी दल खुल कर उपद्रवियों के खिलाफ नहीं बोला. हमने इधर के कुछ सालों में देखा है, विकसित देशों ने जब-जब अपने यहां बुरखे पर पाबंदी लगाई, परदानशीं औरतों ने उसका समर्थन किया है. यह सच है कि कुछ समाज अपनी लड़कियों को नकाब पहने कर फुटबॉल खेलने भेजते हैं. लेकिन इस बात को भी सिरे से नहीं नकारा जा सकता कि पढ़े-लिखे लोगों में ऐसा बहुत बड़ा वर्ग है, जो अपनी लड़कियों पर किसी तरह की पाबंदी रखने के खिलाफ है. पर जब इस तरह से सार्वजनिक रूप में बोलने की बात उठती है तो वे कन्नी काट जाते हैं. यदि पढ़े-लिखे, खुले मन वाले लोग इस तरह की छींटाकशी के खिलाफ बोलने लगें तो शायद ऐसे लोगों को शर्मिंदगी हो सके.

कौन किसका रोल मॉडल होगा, यह तय करना किन्हीं धार्मिक कठमुल्लों के हाथ कभी नहीं रहा. न ही रह सकता है. खासकर जब बात स्त्री को लेकर हो रही हो. गौरतलब है कि ये नेक बंदे उपद्रवियों, खूंखार आतंकवादियों या मार-काट करने वालों के खिलाफ कभी बोलते नहीं देखे जाते.  इनके निशाने पर मासूम और होनहार पौध ही आती है. जायरा का माफीनामा पढ़ कर समझना मुश्किल नहीं है कि वह किस मानसिक दबाव से गुजर रही होगी. सरकार को ट्रोलिंग के खिलाफ सिर्फ कानून ही नहीं बना कर बैठना है, बल्कि उसे कड़ाई से लागू कराने का जिम्मा भी उठाना है. रोल मॉडल होना मेहनत और अथक लगन का नतीजा होता है, जिसे कोई रोक नहीं सकता.

मनीषा
वरिष्ठ पत्रकार


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