कैसे याद किए जाएंगे ओबामा
आठ साल तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा ने शिकागो के अपने आखिरी संबोधन में 'हां, हम कर सकते हैं' का अपना आरंभिक मुहावरा बोलते हुए कहा कि हां, हमने किया है.
![]() अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा (फाइल फोटो) |
दरअसल, अपने चुनाव प्रचार में अंग्रेजी के तीन शब्द \'यस वी कैन\' यानी \'हां, हम कर सकते हैं\' उनकी हर सभाओं में गूंजता था और इसमें ऐसा आत्मविश्वास झलकता था, जिससे लोग आत्मविभोर हो जाते थे. ओबामा ने अपने भाषणों से अमरीकियों के अंदर ऐसी उम्मीद पैदा की कि पहली बार अमेरिका ने एक अेत को देश के सर्वोच्च पद पर बिठा दिया. उस समय देश का वातावरण कैसा था? आर्थिक मंदी के कारण अमेरिका हताशा और नाउम्मीदी के दौर से गुजर रहा था. दुनिया के स्तर पर आतंकवाद विरोधी संघर्ष में अफगानिस्तान एवं इराक में अमेरिकी सेनाओं की उलझने बढ़ी हुई थीं. देश के एक वर्ग में इस युद्ध पर अरबों डॉलर खर्च के विरुद्ध आवाजें उठ रहीं थीं.
हालांकि, जब 11 सितम्बर 2001 को न्यूयॉर्क एवं वाशिंगटन पर आतंकवादी हमला हुआ; पूरा देश तत्कालीन राष्ट्रपति जार्ज बुश के साथ एकजुट था कि हमलावरों का नामोनिशान मिटाया जाए. यानी युद्ध को पूरे देश का समर्थन था. किंतु इसके लंबा खींचने और इसके अंत की संभावना न दिखने के कारण अमरीकियों के अंदर निराशा घर करने लगी थी और आर्थिक संकट ने उस निराशा को इस भय में परिणत कर दिया कि कहीं इन खचरे से अमेरिकी अर्थव्यवस्था ध्वस्त न हो जाए और उसका महाशक्ति का पद छीन न जाए. उस स्थिति में लोगों ने ओबामा का वरण किया. तो क्या वाकई ओबामा \'हम कर सकते हैं\' के आत्मविास के अनुरूप \'हमने किया है कि कसौटी पर खरे उतरे हैं जैसा वे दावा कर रहे हैं?
इसका एकदम सीधे हां में उत्तर देना संभव नहीं है. यह ठीक है विदाई के वक्त उनकी रेटिंग कई पूर्व राष्ट्रपतियों से ज्यादा है. यानी उनकी लोकप्रियता जनता में विद्यमान है. अपने विदाई भाषण में ओबामा ने कहा कि जब मैंने पद संभाला था, तब से लेकर अमेरिका बेहतर और मजबूत हुआ है. हालांकि, इसमें दो राय नहीं कि उस समय के आर्थिक मंदी से अमेरिका उबरा है, हताशा का दौर खत्म हुआ है, लेकिन आर्थिक संकट पूरी तरह खत्म हो गया है यह मानना जरा मुश्किल है. दूसरे, यह न भूलिए कि ओबामा को लेकर दुनिया में एक दूसरे किस्म की उम्मीद जगी थी. उनके भाषणों का तुरंत प्रभाव होता था. जब उन्होंने मिस्र में जाकर कहा कि मुसलमानों के साथ अन्याय हुआ है तो लगा कि इससे अमेरिकी और पश्चिमी देशों की नीतियों में बदलाव आएगा. उनकी नीतियों से पूरे मध्य पूर्व के कुछ लोगों के बीच जो असंतोष है, उसका अंत हो सकेगा. इसी उम्मीद में उनको नोबेल शांति पुरस्कार भी दिया गया. तो उनका मूल्यांकन दोनों स्तरों पर करना होगा. वैसे एकल महाशक्ति होने के नाते अमेरिका के किसी नेता का मूल्यांकन उसके देश तक सीमित रखकर नहीं किया जा सकता. देश में उसके योगदान की चर्चा तो होगी और लेकिन वह केवल एक कसौटी हो सकती है.
ओबामा ने भाषण में कहा कि अमेरिका पिछले 8 साल में बेहतर और मजबूत बना है और इस पूरी अवधि में देश पर एक भी आतंकवादी हमला नहीं हुआ. हालांकि, अमेरिका में हमले हुए. मगर उसे आंतरिक मामला बताया गया. स्वयं ओबामा ने बोस्टन और ओरलैंडो का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि हजारों आतंकवादियों को उनके कार्यकाल में मार गिराया गया है. लेकिन जिस पाकिस्तान में वह छिपा था या जिसने उसे छिपाया था, उसको रास्ते पर लाने के लिए ओबामा ने कुछ नहीं किया. जब तक हिलेरी क्लिंटन विदेश मंत्री थीं, पाकिस्तान के खिलाफ एक आक्रामक रुख दिखता था. बाद में ओबामा प्रशासन ने जैसे इस मामले पर मौन धारण कर लिया. यहां तक कि अफगानिस्तान की इस शिकायत पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई कि पाकिस्तान से आकर आतंकवादी उसके यहां हमला करते हैं.
ओबामा कहते हैं कि हमारी एजेंसियों पहले से कहीं अधिक प्रभावी हैं. ओबामा के सत्तासीन होते समय दुनिया जितनी जटिल दिखती थी, उससे कहीं ज्यादा जटिल दिख रही है. अमेरिका के अंदर लौटें तो उन्होंने स्वयं कुछ बातें स्वीकार की हैं. उदाहरण के लिए उन्होंने कहा है कि हमारी जाति (अमेरिकी) में बहुत ताकत है. परंतु कभी-कभी विभाजनकारी ताकतें भी हावी होती हैं. उन्होंने कहा कि मेरे विजय के साथ समाज में रंगभेद की खाई खत्म होने की उम्मीद थी जो नहीं हुई. यानी समाज की मानसिकता में परिवर्तन की संभावना तार्किक परिणति तक नहीं पहुंची. मुसलमानों के खिलाफ अमेरिका में मजबूत हुई मानसिकता से ओबामा जाते-जाते चिंतित दिखे. कहा कि मैं मुस्लिम अमरीकियों के खिलाफ भेदभाव को अस्वीकार करता हूं. हमने बीते आठ साल में कभी भी मुस्लिमों के साथ भेदभाव नहीं किया. प्रकारांतर से उन्होंने ट्रंप का नाम लिए बिना यह कहते हुए उनकी आलोचना की कि, जो लोग देश को बांटना चाहते हैं, उनसे लोकतंत्र को खतरा है.
उन्होंने अप्रवासियों की प्रशंसा की कि वे अमेरिका की तरक्की में भागीदारी करते हैं और उनके संबंध अमेरिकी लोगों से बेहतर हुए हैं. उनके बच्चों के लिए निवेश करना चाहिए ताकि वे बेहतर नागरिक हो सकें. ऐसा कहकर वे चिंता को और बढ़ा रहे हैं, क्योंकि ट्रंप इनके साथ क्या करेंगे इसे लेकर अनिश्चय की स्थिति है. उन्होंने अगर नस्लवाद, असमानता और नुकसानदेह राजनीतिक माहौल से लोकतंत्र को खतरा बताया और अमरीकियों से इसकी रक्षा के लिए एकजुट होने का आहवान किया तो इसका अर्थ है ये बुराइयां वहां कायम हैं. उन्होंने कहा कि हमें अपने उन मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए, जिनकी वजह से हम वर्तमान दौर में पहुंचे हैं. साफ है कि जाते-जाते ओबामा को लगता है कि उन मूल्यों को खतरा पैदा हो गया है और उसमें बदलाव के लिए अमरीकियों को खड़ा होने की जरूरत है. वे कहते भी हैं कि बदलाव तभी आता है, जब हरेक और सामान्य शख्स उसमें शामिल होता है. वे किसके लिए ऐसा कह रहे हैं? क्या वे ट्रंप की भावी नीतियों के खिलाफ लोगों को जगा रहे हैं? लगता तो ऐसा ही है.
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