अर्थव्यवस्था : ब्याज दरों में कटौती जरूरी
इस समय उद्योग-कारोबार से जुड़े हुए देश के करोड़ों लोगों की निगाहें भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता में 6-7 दिसम्बर को होने वाली मौद्रिक नीति समिति की बैठक की ओर लगी हुई है.
अर्थव्यवस्था : ब्याज दरों में कटौती जरूरी |
जिसमें ब्याज दरों पर फैसला किया जाएगा. बड़े मूल्य के नोट को वापस लेने की प्रक्रिया के चलते उद्योग-कारोबार पर असर पड़ने के मद्देनजर ब्याज दरों में कटौती की अपेक्षा की जा रही है.
गौरतलब है कि सांख्यिकी विभाग की ओर से 30 नवम्बर को जारी आंकड़ों के अनुसार सितम्बर को समाप्त हुई वर्ष 2016-17 की दूसरी तिमाही में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर उम्मीद से कम रहते हुए 7.3 फीसद रही. यह पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले भी कम है. इतना ही नहीं जुलाई-सितम्बर तिमाही की वृद्धि दर की स्थिति के पीछे मुख्य रूप से सरकार की ओर से खर्च बढ़ाने और कृषि क्षेत्र के अच्छे प्रदर्शन की वजह दिखाई दे रही है. लेकिन अब बड़े मूल्य के नोटों को वापस लेने की 8 नवम्बर की घोषणा के बाद से आर्थिक गतिविधियों में एक तरह से ठहराव आया है. नोटबंदी के चलते नवम्बर में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि रफ्तार धीमी पड़ गई. नकदी की कमी के चलते घरेलू खपत कमजोर पड़ने से वस्तुओं के उत्पादन और नए कारोबार प्रभावित हुए हैं. नकदी की किल्लत की वजह से अगली तिमाही में औद्योगिक क्षेत्र में नरमी आ सकती है. निक्केई मार्केट इंडिया मैन्युफैक्चरिंग परचेंजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) के आंकड़ों के अनुसार नवम्बर 2016 में विनिर्माण क्षेत्र की गति घटकर 52.3 अंक रह गई. इससे पहले अक्टूबर में यह गति 54.4 अंक पर पिछले 22 महीने के उच्चतम स्तर पर थी.
उल्लेखनीय है कि दुनिया की प्रमुखतम रेटिंग एजेंसियों मूडीज और एसएंडपी ने कहा है कि नोटबंदी से उद्योग-कारोबार और जीडीपी में कमी आने से भारत की निवेश रेटिंग प्रभावित होगी. कुछ महीनों तक भारतीय अर्थव्यवस्था कमजोर होगी. नकदी की कमी से रिटेल कारोबार में कमी आएगी. रुपये की कीमत में कमी के कारण आयात महंगे होंगे. लोगों के कर्ज भुगतान की क्षमता पर असर गिरेगा. परिणामस्वरूप चालू वित्तीय वर्ष 2016-17 में भारत की निवेश रेटिंग कमजोर रहेगी. लेकिन एक वर्ष बाद नोटबंदी का भारी लाभ दिखाई देगा. कालाधन नियंत्रण से ब्याज दरें कम होंगी. भ्रष्टाचार कम होगा. सरकार की आय बढ़ेगी. इसकी बदौलत सरकार भारी पूंजीगत खर्च के लिए आगे बढ़ेगी. गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय साख निर्धारक एजेंसी मूडीज ने भारत को निवेश के मामले में निचली रेटिंग बीएए-3 दी है. इसका मतलब यह है कि अभी भी भारत में निवेश का परिदृश्य अनुकूल नहीं है. लेकिन मूडीज ने यह भी कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में जो आर्थिक एवं संस्थागत सुधार किए जा रहे हैं, उसके सकारात्मक परिणाम आने पर भारत की रेटिंग बढ़ाई जा सकेगी. मूडीज द्वारा यह भी कहा गया है कि सरकार के ऋण के बोझ को कम करने के लिए अभी निजी निवेश की गति बढ़ाने की जरूरत है.
इसी तरह अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी स्टैंर्डड एंड पुअर्स (एसएंडपी) ने भी भारत के लिए बीबीबी रेटिंग और स्थिर आउटलुक को बरकरार रखा है. यह रेटिंग निवेश के लिहाज से सबसे निचली ग्रेड मानी जाती है. इसके नीचे की रेटिंग जंक यानी निवेश के लायक नहीं होती है. ऐसे में 2016-17 के लिए 7.5 फीसद वृद्धि दर के अनुमान को हासिल करना कठिन हो सकता है. रेटिंग एजेंसी फिच ने नोटबंदी के मद्देनजर मौजूदा वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत रहने का नया अनुमान व्यक्त किया है, जबकि नोटबंदी के पहले उसने 7.4 प्रतिशत का अनुमान व्यक्त किया था. ऐसे में उद्योग-कारोबार ब्याज दरों में कटौती की अपेक्षा कर रहा है. इस समय आरबीआई की नीतिगत दर यानी रेपो रेट 6.25 फीसद है. इसमें 0.25 फीसद की कटौती की जाना जरूरी दिखाई दे रही है. चूंकि बैंकों के पास तरलता बढ़ी है. थोक और खुदरा मुद्रास्फीति में गिरावट दर्ज की गई है. अतएव रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दर में कटौती की जानी चाहिए. यकीनन वैश्विक मंदी से अछूती भारतीय अर्थव्यवस्था नोटबंदी के कारण प्रभावित हो रही है.
देश का औद्योगिक ही नहीं निर्यात परिदृश्य भी निराशाजनक है और प्रोत्साहनदायक प्रावधानों की कमी से औद्योगिक और निर्यात वृद्धि की संभावनाओं पर प्रश्नचिह्न लग गया है. जहां भारत से निर्यात घटे हैं, वहीं कुछ पड़ोसी देशों के निर्यात बढ़े हैं. चूंकि देश में औद्योगिक परिदृश्य पर निराशाएं हैं, परिणामस्वरूप निवेशक नए प्रोजेक्ट्स में निवेश करने से कतरा रहे हैं. देश में सार्वजनिक और निजी निवेश में कमी आर्थिक तरक्की को बाधित करने वाला प्रमुख कारण है.
देश में पूंजी का निवेश जरूरत से कम होने के कारण भारतीय कारोबार उस रफ्तार से आगे नहीं बढ़ पा रहा है, जितनी इसकी क्षमता है. ऐसे में भारत द्वारा उद्योग एवं निर्यात प्रोत्साहन के लिए ब्याज दरों में कमी का कदम जरूरी है. चूंकि सरकार ने 1 अप्रैल, 2017 से जीएसटी लागू करने के संकेत दिए हैं, उसके मद्देनजर सरकार को एक अप्रैल, 2017 से जीएसटी को लागू करने के लिए अधिकतम प्रयास करने होंगे. जीएसटी से उद्योग-कारोबार और निर्यात में भारी लाभ होगा.
हम आशा करें कि सरकार उद्योग-कारोबार और निर्यात क्षेत्र से संबंधित लोगों के चेहरे पर कुछ मुस्कराहट देने के लिए एक कदम ब्याज दरों में तत्काल कटौती के लिए उठाएगी, वहीं दूसरा कदम वैश्विक मंदी के मद्देनजर नए प्रोत्साहन और वर्तमान में लागू योजनाओं के कारगर क्रियान्वयन के लिए उठाएगी. हम आशा करें कि नोटबंदी और कालाधन नियंत्रण के प्रयास अगले वित्त वर्ष 2017-18 में अर्थव्यवस्था को नई गति देंगे और उद्योग-कारोबार के साथ-साथ संपूर्ण अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती हुई दिखाई देगी.
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