चिंतन : स्वयं में होने का अर्थ अच्छा स्वास्थ्य

Last Updated 04 Dec 2016 06:05:01 AM IST

योग स्वयं के रूपांतरण का विज्ञान है. अन्त:करण की अनावश्यक उथल-पुथल को शांत कर चित्त को प्रशांत बनाने का भारतीय करिश्मा. यह शारीरिक व्यायाम नहीं.


हृदयनारायण दीक्षित

सांसों को भीतर लेने और बाहर करने का प्राणायाम भी नहीं. शारीरिक आसन और प्राणायाम इसके अंग हैं और ध्यान-धारणा भी. आसन और प्राणायाम योग की भूमि है. वे इधर-उधर भाग रहे चित्त को स्वयं में स्थिर करने में सहायक हैं. इससे मनुष्य ‘स्वस्थ’ होता है. यहां स्वस्थ का अर्थ निरोगी होना ही नहीं है. स्वस्थ बड़ा प्यारा शब्द है और इसका अर्थ है-स्वयं में होना.

भारत के प्राचीन दर्शन परिवार में ‘योग दर्शन’ प्रमुख जीवन दृष्टि है. प्रकृति बहुरूपिया है. पृथ्वी पर अनेक जीव, वनस्पति, रूप हैं. सौर मंडल के अनेक रहस्य अज्ञात हैं. पृथ्वी परिवार भी अनंत रहस्यों से भरा-पूरा है. भारतीय दर्शन चिंतन में प्रकृति रहस्यों के प्रति गहरी जिज्ञासा रही है. पूर्वजों ने समूचे अस्तित्व को एकीकृत देखा है. प्रकृति का कोई भी भाग स्वतंत्र इकाई नहीं है. प्रकृति की सभी इकाइयां परस्परावलंबन में हैं. सब मिलकर अस्तित्व एक है. जैसे किसी पदार्थ के छोटे से छोटे कण में भी पदार्थ के मूल गुण मौजूद रहते हैं, वैसे ही अस्तित्व की प्रत्येक इकाई में पूरे अस्तित्व के गुण-धर्म उपस्थित रहते हैं. अस्तित्व को पूर्वजों ने ब्रह्म कहा है. ब्रह्म सतत् विस्तारमान संपूर्णता है.

इसके प्रत्येक लघुतम अंश में भी ब्रह्म की ही सत्ता है. हम मनुष्य इसी संपूर्णता का अंश हैं. जो ब्रह्मण्ड में है, वही पिंड में भी है. हमारी कठिनाई है स्वयं को इकाई देखना, समझना. योग विज्ञान इकाई में अनंत का बोध कराता है. हम हैं भी अनंत. चेतना के तल पर सदा से हैं.  रूप और काया में प्रतिपल परिवर्तनीय हैं. योग रूप और काया के भीतर जाने की अन्तर्यात्रा है.

योग विज्ञानी पतंजलि ने योग को ‘चित्तवृत्ति’ का निरोध कहा है. स्वयं में होना संपूर्णता में होना है. हमारा ‘स्व’, हमारा संभवन अस्तित्व का भाग है. स्वानुभूति में स्वयं के अन्तस् में संपूर्णता का बोध पाना दुख मुक्ति देता है. इकाई होना दुख है, अनंत होना सुख है. छान्दोग्य उपनिषद् के एक प्रसंग में सनत् कुमार से नारद ने पूछा सुख क्या है? सनत् कुमार ने उत्तर दिया संपूर्णता की अनुभूति ही सुख है, इससे कम सर्वत्र दुख ही दुख है.

आधुनिक दुनिया भारत की ऐसी अनुभूतियों से कम परिचित है. विवेकानंद ने भारतीय अनुभूति के दर्शन से दुनिया का परिचय कराया तो विदेशी तत्ववेत्ता भी भौचक थे. यूनेस्को ने कुछ बरस पहले ऋग्वेद को अन्तरराष्ट्रीय धरोहर घोषित किया था. भारत के अधिकांश लोग ऋग्वेद के संसारवाद, भौतिकवाद, आनंदवाद और उल्लास काव्य से संवाद नहीं बनाते. उसे धर्म आस्था ग्रंथ मानकर छोड़ देते हैं. नरेन्द्र मोदी की सरकार के प्रयास से भारत के योग विज्ञान को अन्तरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा मिली.

अब इसे इसी सप्ताह नवम्बर, 2016 में अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में सम्मिलित किया गया है. यूनेस्को में भारत की प्रतिनिधि रुचिरा ने उचित ही इसका श्रेय केंद्र सरकार के प्रयासों को दिया है. यूनेस्को के अनुसार अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों की परिधि में मौखिक परंपराओं, अभिव्यक्तियों, कलाओं, सामाजिक रीतियों और उत्सवों को शामिल किया गया है. भारत की रामलीला भी यूनेस्को की इसी सूची में है. योग को अन्तरराष्ट्रीय धरोहर में शामिल किया जाना राष्ट्रीय प्रसन्नता है.

हृदयनारायण दीक्षित
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