त्योहारी सेल : छोटे शहरों की बड़ी भूमिका

Last Updated 28 Oct 2016 02:36:16 AM IST

एसोचेम के एक सर्वेक्षण के मुताबिक 2016 के इस त्योहारी सीजन ने करीब 25000 करोड़ रुपये की ऑनलाइन सेल होने की संभावना है.


त्योहारी सेल : छोटे शहरों की बड़ी भूमिका

यह दिख भी रहा है. हरेक दूसरे दिन कोई ना कोई ऑनलाइन शापिंग वेबसाइट किसी-का-ना-किसी सेल का ऐलान कर रही होती है. तमाम अखबारों के पहले पेज के इश्तिहार भी अर्थव्यवस्था का रु ख बताते हैं. किसी जमाने में तमाम बिल्डरों के इश्तिहार अखबारों के पहले पेज पर हुआ करते थे. अब इनकी जगह ऑनलाइन सेल की ऑनलाइन शापिंग वेबसाइटों के इश्तिहारों ने ले ली है. गौर करने की बात यह है कि सिर्फबड़े मेट्रो शहर ही ऑनलाइन सेल में भागीदारी नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे छोटे शहर भी ऑनलाइन सेल में भागीदारी कर रहे हैं, जिन्हें आम तौर पर टियर टू, टियर थ्री शहर माना जाता है.

एक और शोध के मुताबिक छोटे शहरों से ऑनलाइन सेल की गूगल इनक्वायरी में ही हाल की अवधि में 250 प्रतिशत इजाफा हुआ है. सिर्फ दिल्ली और मुंबई ही फ्लिपकार्ट, अमेजन से नहीं खरीद रही है, बल्कि उन्नाव और मथुरा के दरवाजों पर भी फ्लिपकार्ट, अमेजन और स्नैपडील के पैकेट दस्तक दे रहे हैं. आज के समय में जरूरत के सामान से लेकर बड़े-बड़े नामों तक सब कुछ ऑनलाइन उपलब्ध है. पिछले एक साल में ऑनलाइन शॉपिंग में काफी कुछ बदलाव देखने को मिले हैं.

एक समय था जब ऑनलाइन सबसे ज्यादा बिकने वाले सामानों में मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और कपड़े हुआ करते थे. लेकिन कम्पटीशन के इस दौर में अब ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट हींग और चूरन भी बेच रही हैं. अमेजन की साइट पर हींग और चूरन भी बिक रहे हैं. इसे लेकर अमेजन की प्रतिद्वंद्वी कंपनियों ने उसका मजाक भी उड़ाया है पर अमेजन मार्केटिंग को गहराई से समझती है. जो कस्टमर एक बार हींग या चूरन खरीद करके संतुष्ट हो जाएगा, वह देर-सबेर महंगा मोबाइल या पावर बैंक खरीदने भी अमेजन पर आएगा.

बाजार के नियम बहुत कुछ बदल गए हैं. अब मूल बात यह है कि किसी भी तरह कस्टमर को पकड़ो और उसे संतुष्ट करो, जुड़ाव रखो. ऐसा देखा जा रहा है कि कई कंपनियों ने पहले कुछ और बेचना शुरू किया था, फिर वह किसी और धंधे में अपने पुराने ग्राहकों को ले गई. पेटीएम इलेक्ट्रानिक पर्स के तौर पर काम करती रही है, पर अब इसका छोटा-सा बैंक भी काम करेगा. ऑनलाइन शापिंग वेबसाइटों के लिए चूरन तो बड़ा सहारा बनने ही वाले हैं, साथ में छोटे शहरों का बड़ा सहारा लगने वाला है. इसकी कुछ बुनियादी वजहें हैं. सबसे बड़ी वजह तो यह है कि बड़े शहरों में तमाम ब्रांडों की उपलब्धता और छोटे शहरों में तमाम ब्रांडों की उपलब्धता की स्थितियों में बहुत फर्क है. जैसे कनॉट प्लेस दिल्ली में एक सड़क पर विश्व की टॉप घड़ियों के शोरूम एक जगह उपलब्ध हैं. नेहरू प्लेस दिल्ली या लक्ष्मी नगर दिल्ली में मोबाइल फोन का कोई भी ब्रांड बड़ा या छोटा आसानी से उपलब्ध है.

ऑनलाइन मोबाइल बाजार ने ऑनलाइन शापिंग की स्थितियों को बहुत बदल दिया है. मोबाइल के कई चीनी ब्रांड सिर्फऑनलाइनसेल चलाते हैं, ये मोबाइल सस्ते होते हैं, बहुत फीचर देते हैं. उन्नाव और मथुरावालों को भी ये आकर्षित करते हैं. इंटरनेट भौगोलिक सीमाओं को खत्म कर देता है. जैसे लक्ष्मी नगर दिल्ली के शोरूम से खरीदने वाले ग्राहक वे ही होंगे, जो वहां भौतिक तौर पर आएंगे. ये लक्ष्मी नगर के आसपास के इलाकों के हो सकते हैं, छोटा-सा हिस्सा दिल्ली से बाहर से भी आया हुआ हो सकता है पर अधिकांश दिल्ली के ही होंगे.

अंडमान का ग्राहक भी उतनी आसानी से कोई आइटम ऑनलाइन खरीद सकता है, जितनी आसानी से कोई दिल्ली वाला खरीद सकता है. तो ब्रांडों की उपलब्धता इंटरनेट के जरिये अब एक साथ कई जगह एक ही वक्त हो जाती है. ऐसा भेदभाव इंटरनेट ने खत्म कर दिया है. पर यहां कुछ बातें समझने की हैं. छोटे शहरों में ऑनलाइन शापिंग करनेवालों को यह भी देख लेना चाहिए कि वे जो चीजें खरीद रहे हैं, उनके सर्विस सेंटर उनके शहरों में हैं या नहीं. छोटे शहरों के ग्राहकों को ऑनलाइन शापिंग करते वक्त यह देख लेना चाहिए कि उनके खरीदे गए आइटमों के सर्विस सेंटर आसपास हैं या नहीं. वहीं, ऑनलाइन शापिंग के जरिये माल बेचनेवाली कंपनियों को भी तय करना चाहिए कि उनका कस्टमर केयर नेटवर्क छोटे शहरों में भी पहुंचे जहां से अब नए ग्राहक आ रहे हैं वरना वेबसाइटों से छोटे शहरों के ग्राहकों का मोहभंग होते देर नहीं लगेगी.

रेशू वर्मा
लेखिका


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