लेन-देन में डर का साया

Last Updated 24 Oct 2016 04:59:14 AM IST

जब पिछले दिनों यह खबर आई कि एक खाते में सेंधमारी के बाद भारतीय स्टेट बैंक ने करीब 6 लाख खाताधारकों के एटीएम ब्लॉक कर दिए तो हमारा आपका चौंकना स्वाभाविक था.


लेन-देन में डर का साया

आखिर एक खाते में चोरी और ब्लौक कार्डों की संख्या इतनी ज्यादा! जाहिर है, जो कुछ हमारे सामने आया सच उसके अलावा भी था. यानी जांच के बाद बैंक को लगा कि सेंधमारी की संख्या एक, दो, सौ, हजार नहीं लाखों में हैं तो उसने यह कदम उठाया. अभी इसका हिसाब मिलना बाकी है कि कुल कितने रकम का वारा-न्यारा हो गया.
 
इस खबर से हमारी आपकी चिंता बनी ही हुई थी कि दूसरी खबर यह आ गई कि 30 लाख से ज्यादा डेबिट कार्डों के पिन नंबर और अन्य जानकारियां चोरी हो चुकी हैं. संख्या 65 लाख को पार कर रही है. यह देश के वित्तीय आंकड़ों में अब तक की सबसे बड़ी सेंधमारी है. यह संख्या और बढ़ेगी. कल्पना करिए यदि इतने डेबिट कार्डों में से कुछ प्रतिशत का भी इस्तेमाल कर धन निकला हो तो वह रकम कितनी हो सकती है. बताया जा रहा है कि ये सभी कार्ड ऐसे एटीएम पर इस्तेमाल किए गए हैं, जहां से मालवेयर के जरिए सूचनाएं चोरी हो रही हैं. वैसे तो इस सेंधमारी से सबसे ज्यादा एसबीआई, एचडीएफसी, आईसीआईसीआई बैंक, यस बैंक और ऐक्सिस बैंक के खाताधारकों के पीड़ित होने की संभावना है. लेकिन दूसरे बैंकों के चपेट आने से इनकार नहीं किया जा सकता है. पिछले दिनों जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने \'मन की बात\' में कहा कि हम देश के आधुनिक बनाना चाहते हैं; इसलिए धीरे-धीरे देशवासी नकदी लेन-देन की जगह प्लास्टिक मनी यानी कार्ड का इस्तेमाल करें तो उनके दिमाग में शायद यह बात नहीं थी कि इसमें यदि खुलापन है तो असुरक्षा भी.

यह घटना साबित करती हैं कि चाहे आप सुरक्षा का लाख दावा करें, ग्राहकों को विज्ञापनों से या एसएमएस से सचेत करते रहें..इनका पूर्ण सुरक्षित होना असंभव है. जिस मामले से इतना डरावना चोरी सामने आ रहा है, वह स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर के पट्टम (केरल) शाखा का है. इसमें एक महिला ने शिकायत की कि उसके खाते से 3 और 5 सितम्बर को 55,000 रुपये निकाले गए हैं. जांच से पता चला कि विदेश में स्थित एटीएम से पैसे निकाले गए हैं. चीन के किसी एटीएम से ऐसा हुआ है. माना जा रहा है कि जो डाटा चोरी हुआ है, वह चीन से ही हैक किया गया है. कुछ विशेषज्ञ कह रहे हैं कि \'हिताची पेमेंट सर्विस सिस्टम\' से जुड़े एटीएम का इस्तेमाल करने वाले लोगों के ही पिन चोरी हुए हैं.

हिताची पेमेंट सर्विस यस बैंक के लिए एटीएम नेटवर्क चलाती है. कहा जा रहा है कि व्हाइट लेवल एटीएम से फैला मालवेयर अन्य दूसरे बैंक ग्राहक के खाता को भी हैक कर सकता है. जिन खाताधारकों ने ऐसे एटीएम नेटवर्क प्रयोग किए हैं, उनके कार्ड की क्लोनिंग होने का डर है. इसे देखते हुए अन्य बैंकों ने भी अपने ग्राहकों को सचेत करना शुरू कर दिया है, ताकि उनके साथ धोखाधड़ी न हो पाए. तो यह कहना मुश्किल है कि कितने बैंकों के कितने ग्राहकों के कार्डों के डाटा में सेंधमारी हो चुकी है. हमें पैसा निकालना है तो जो एटीएम सामने आ गया, उसमें अपना कार्ड डालकर निकालते हैं. हमें क्या पता कि दूर बैठे किसी की नजर उस पर है. वह हमारे कार्ड का ही क्लोन बना सकता है.



आज के समय में तो बहुत कम लोग सीमित धन निकालने या जमा करने के लिए अपने बैंक की शाखा में जाते हैं. सभी तरह की बैकिंग सेवाएं एटीएम, मोबाइल और ऑनलाइन उपलब्ध हैं. \'नेशनल पेमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया\' ने \'नेशनल फाइनेंस स्वीच\' और \'इमिडिएट पेमेंट सर्विस\' के तहत एटीएम में ट्रांजेक्शन सरल और किफायती बना दिया है. दावा किया जाता है कि सेवाएं सुरक्षित हैं. लेकिन धोखेबाज इस प्रणाली में सेंध लगाकर ग्राहकों के खाते से चोरी कर लेते हैं. निजी खातों से चोरी के मामले पूरी दुनिया भर में सामने आ रहे हैं.

भारत में भी हम इक्का-दुक्का ऐसी खबरें पढ़ते रहे हैं. यह भी चिंताजनक ही है. एक व्यक्ति के खाते से यदि धोखाधड़ी हो रही है तो फिर दूसरे से भी हो सकता है और यह भारी संख्या में भी हो सकता है. मगर इतनी भारी संख्या में डाटा चोरी हो जाएं तो मानना होगा कि इस व्यवस्था में ही ऐसे दोष हैं, जिनको दूर किए जाने की आवश्यकता है. यह इस प्रणाली की असुरक्षा को समझिए. एटीएम कार्ड पिन के साथ काम करता है. हमारे खाते की और दूसरी सूचनाएं डेबिट या क्रेडिट कार्ड के पीछे काली मैग्नेटिक स्ट्रिप पर रहती हैं. धोखेबाज इन सूचनाओं को चुराने के लिए स्कीमिंग नाम की तकनीक इस्तेमाल करते हैं. इसके जरिए कार्ड के डेटा पढ़े जा सकते हैं. बैंक हमें अनेक प्रकार की सावधानियां बरतने का सुझाव देते हैं. हमसे जितना संभव है, बरतते भी हैं. किंतु धोखेबाजों के सामने कई बार सारी सावधानियां बेकार हो जाती हैं. आखिर 30 लाख डेबिट कार्ड धारकों में से सबने तो असावधानी बरती नहीं होगी. तो हम क्या करें? हमारे हाथ में तो कुछ है नहीं.

आज एटीएम मशीनों को इस तरह बहुपयोगी बना दिया गया है कि उससे हम अनेक काम करते हैं. हमारी आदतें भी बिगड़ गई हैं. अब अपनी शाखा में जाकर चेक जमा करना या चेक भरकर पैसे निकालना तो धीरे-धीरे पुराने युग की बात हो रही है. किंतु यह साफ है कि आज की प्रणाली जितनी सुविधाजनक हुई है, उतनी ही यह असुरक्षित भी हो रही है. सुविधाओं के बढ़ने के साथ आज छोटे से बड़े धोखाधड़ी की आशंकाएं भी उतनी ही बढ़ गई हैं. भारतीय रिजर्व बैंक ने एक सकरुलर में यह तो कहा है कि बैंक की असावधानी से यदि कोई फर्जी लेन-देन हुआ है तो ग्राहक इसके लिए जिम्मेवार नहीं होगा. यानी नुकसान की भरपाई बैंक करेगा. लेकिन ऐसे लेन-देन की शिकायत 4 से 7 दिनों के अंदर करानी होगी. ध्यान रखिए, बैंकिंग धोखाधड़ी में ग्राहक की भागीदारी है या नहीं, इसका निर्णय बैंक ही करेगा. ग्राहक ऐसे मामलों में बैंकों के चक्कर लगाते रहते हैं और अधिसंख्य के अनुभव निराशाजनक हैं. प्रश्न है कि प्लास्टिक मनी को जीवन का अनिवार्य अंग बना देने के बाद इसके असुरिक्षत होने की स्थिति में हमारे पास विकल्प क्या है? कुछ नहीं. अत: सुरक्षा की जिम्मेवारी तो बैंकों को ही संभालनी होगी.

 

 

 

अवधेश कुमार


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