बीसीसीआई की बंद होती राहें

Last Updated 24 Oct 2016 04:49:09 AM IST

सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद लगता है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पास लोढ़ा समिति की सिफारिशों को मानने के अलवा कोई चारा नहीं बचा है. यह स्थिति बीसीसीआई के वित्तीय तौर पर हाथ बांधने से पैदा हुई है.


बीसीसीआई की बंद होती राहें

असल में बोर्ड यह कहकर सिफारिशों को लागू करने से बच रहा था कि राज्य एसोसिएशनों पर उसका कोई वश नहीं है और वह अदालत द्वारा कही गई सभी बातें उनके सामने रखता रहा है और उन्हें मानें या नहीं; यह एसोसिएशनों पर निर्भर करता है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि जब तक राज्य एसोसिएशनें लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू नहीं करती हैं, तब तक बीसीसीआई उन्हें कोई फंड नहीं दे सकता है. इसके अलावा, लोढ़ा समिति से बीसीसीआई में स्वतंत्र ऑडिटर नियु्क्त करने को कहा है, जो कि बीसीसीआई के सभी करारों को और वित्तीय लेन-देन को देखेगा. इसके अलावा, बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर को एक हलफनामा देकर यह बताना है कि वह सिफारिशें कैसे और कब तक लागू कर रहे हैं. इससे क्रिकेट का खेल थोड़ा प्रभावित हो सकता है, क्योंकि कुछ एसोसिएशनें की माली हालत मजबूत है पर कुछ ऐसी भी हैं, जिनका बोर्ड से पैसा मिले बगैर गुजारा चलना मुश्किल है. अब ऐसी एसोसिएशनों के लिए लोढ़ा समिति की सिफारिशों को माने बगैर काम चलाना आसान नहीं होगा.

इसका परिणाम यह होगा कि सुधारों को अपनाने वाले राज्यों की संख्या, जो अभी मात्र तीन है, उसमें तेजी से इजाफा हो सकता है. अगर राज्य एसोसिएशनें तेजी से लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करती हैं तो बीसीसीआई के ऊपर भी इन्हें लागू करने के लिए दबाव बन सकता है. हां, इतना जरूर है कि इस पाबंदी से इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया के खिलाफ होने वाली सीरीज और घरेलू रणजी ट्रॉफी के कुछ मैच प्रभावित हो सकते हैं. इसके अलावा, घरेलू खिलाड़ियों का भुगतान भी प्रभावित हो सकता है,क्योंकि इस भुगतान में राज्यों का थोड़ा हिस्सा होता है पर ज्यादातर पैसा बीसीसीआई से मिलता है. इसलिए अब लगता है कि बीसीसीआई और राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों दोनों को वित्तीय दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.



सुप्रीम कोर्ट के इस अंतरिम आदेश का पहला शिकार आईपीएल के प्रसारण अधिकारों की नीलामी होने जा रही है. यह अधिकार हासिल करने की प्रक्रिया पहले से चल रही थी और प्रसारण अधिकार पाने की इच्छुक 18 कंपनियों को 25 अक्टूबर को बोली लगानी थी. बीसीसीआई को आईपीएल के टीवी, मोबाइल और इंटरनेट के अधिकार बेचने से इस बार 4.5 अरब डालर की आमदनी होने की उम्मीद थी. अदालत के फैसले में साफ कहा गया है कि कोई भी करार बिना स्वतंत्र ऑडिटर की स्वीकृति के नहीं हो सकता है. इस कारण से ही इस बारे में बोर्ड ने लोढ़ा समिति से जानकारी मांगी है. पर अभी लोढ़ा समिति भी इस संबंध में कोई जानकारी देने की स्थिति में नजर नहीं आती है, इसलिए उसने इस संबंध में बोर्ड सचिव अजय शिर्के द्वारा लिखे पत्र का जवाब नहीं दिया है. इससे लगता है कि 25 को लगने वाली बोली शायद ही लग पाए. बीसीसीआई के सामने अब एक बड़ी दिक्कत है है कि वह लोढ़ा समिति द्वारा नियुक्त ऑडिटर को आस्त किए बगैर कोई खर्च नहीं कर पाएंगे बल्कि यह ऑडिटर उनके सभी खर्चे और करार पर नजर रखेगा. इससे एक बात लगती है कि कोर्ट खुद कोई बड़ा कदम उठाए बगैर ही बीसीसीआई को सिफारिशें लागू करने के लिए मजबूर करना चाहता है.

इसलिए ही अनुराग ठाकुर और अजय शिर्के से दो हफ्तों में यह हलफनामा देने को कहा है, जिसमें उन्हें यह बताना है कि वे किस तरह से और कब तक सिफारिशें लागू करने जा रहे हैं. बीसीसीआई जिस तरह से लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने से लगातार बचने की कोशिश कर रहा था, उससे एक यह चर्चा भी गरम रही है कि वह इस मामले में ज्यादा सख्त मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर के चार जनवरी को रिटायर होने तक किसी तरह समय काटना चाहता है. लेकिन इस फैसले को जिस तरह से मुख्य न्यायाधीश ने पीठ के अपने सहयोगी न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ से घोषित करवाया, उससे लगता है कि ठाकुर ने बेटन उन्हें थमा दिया है, इसलिए उनके रिटायर होने के बाद भी स्थिति बदलने वाली नहीं है. वैसे भी इस बार अदालत ने इस तरह का दबाव तो बना ही दिया है कि बीसीसीआई के लिए सिफारिशों को टाले रखना शायद संभव न हो. पर सही स्थिति कुछेक दिनों में ही साफ होगी.

मनोज चतुर्वेदी


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