चिंतन : अपना सांस्कृतिक दृष्टिकोण बताएं दल

Last Updated 23 Oct 2016 05:58:42 AM IST

मनुष्य और प्रकृति की आत्मीयता संस्कृति है. सो, पर्यावरण संरक्षण भी सांस्कृतिक कर्म है. कला के सभी आयाम संस्कृति हैं.


हृदयनारायण दीक्षित

ऋग्वेद से लेकर संपूर्ण परवर्ती प्राचीन काव्य में प्रकृति की प्रीति है. भारतीय अनुभूति में संपूर्ण अस्तित्व एक सत्ता है. अस्तित्व का हरेक घटक परस्पर अन्तर्सम्बंधी है. वाल्मीकि रामायण के महानायक श्रीराम हैं. डॉ. लोहिया तुलसी की रामचरित मानस पर मोहित थे. उन्होंने कहा था कि रामायण के सभी पात्र अश्रुलोचन हैं. रामायण और रामचरित मानस जैसे लोकप्रिय काव्य विश्व साहित्य में दुर्लभ हैं. केंद्र सरकार ने अयोध्या में रामायण संग्रहालय की योजना घोषित की है. उप्र की अखिलेश सरकार ने भी रामायण पर अयोध्या में थीम पार्क बनाए जाने का ऐलान किया है. उनके इस कार्य से रामायण और रामकथा की अन्तरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा बढ़ेगी. लेकिन घोषणा होते ही राजनीति में उबाल है. आरोप-प्रत्यारोप जारी हैं.

राज्य के विधान सभा चुनाव निकट हैं. आरोप है कि श्रीराम को राजनीति का मुद्दा बनाने के लिए ही नरेन्द्र  मोदी की सरकार ने यह घोषणा की है. सपा की तुलना में भाजपा का घेराव ज्यादा है. शायद इसलिए कि सपा अपनी अन्तर्कलह में ही पिट रही है. लेकिन मूलभूत प्रश्न दूसरे हैं. संविधान के नीति निर्देशक तत्व सरकारों के लिए मार्गदर्शी सिद्धांत हैं. नीति निर्देशक तत्वों में संस्कृति का विकास करने का दायित्व है. भारत के भारत होने का मुख्य कारण संस्कृति रामायण सांस्कृतिक संपदा है. केंद्र सरकार की रामायण परिपथ योजना में चित्रकूट, सीतामढ़ी, दरभंगा, छत्तीसगढ़ का जगदलपुर व रामेरम भी सम्मिलित किए गए हैं. मोदी सरकार रामायण परिपथ के साथ ही बौद्ध परिपथ, श्रीकृष्ण परिपथ, पूर्वोत्तर परिपथ जैसी 12 सांस्कृतिक योजनाओं पर काम कर रही है. जाहिर है कि सारा काम संस्कृति संवर्धन से जुड़ा हुआ है.

लेकिन अयोध्या को लेकर राजनीति में उबाल है. गैर भाजपा दल अयोध्या कांड से डरते हैं. अयोध्या के नाम से उनका रक्तचाप बढ़ता है. उनका विलाप समझा जा सकता है. जैसे उन्हें अपनी राजनीति चलाने का अधिकार है, वैसे ही भाजपा को भी. हमारे दलतंत्र में वोट राजनीति ही चलती है. अधिकांश दल संस्कृति नीति के प्रश्न पर खाली खाली हैं. पूछा जा सकता है कि कांग्रेस की संस्कृति नीति क्या है? क्या बसपा की कोई संस्कृति नीति है? राजनैतिक दल संस्कृति के प्रश्नों से अलग क्यों हैं?

क्या कथित धर्म निरपेक्षता इस संस्कृति का विकल्प हो सकती है? क्या पंथ निरपेक्षता को धर्म निरपेक्षता बताने वाले दल या नेता भारत की संस्कृति को भी मजहबी अल्पसंख्यकवादी बनाने में ही संलग्न नहीं हैं? भारतीय दलतंत्र संस्कृतिविहीन है. सो, इस राजनैतिक संस्कृति में सौन्दर्य नहीं है. वामदल व भाजपा छोड़ अन्य दलों के एजेंडा में अर्थनीति भी नहीं है. संस्कृतिविहीन व आर्थिक दृष्टिहीन दलतंत्र ने ही राजनैतिक वातावरण को जाति, पंथ व मजहब के वोट बैंक खांचो में बांटा है. राजनीतिक क्रियाकलाप में सांस्कृतिक शून्यता है. अच्छा हो कि सब दल अपनी सांस्कृतिक नीति घोषित करें. वेद, रामायण, गीता आदि को सांस्कृतिक संपदा मानने-न मानने की घोषणा से अपना सांस्कृतिक दृष्टिकोण सामने रखे. सांस्कृतिक सत्यों पर दलीय दृष्टिकोण सार्वजनिक होने चाहिए. तभी सार्थक बहस का विकास होगा.



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