प्रसंगवश : जीवन की धुरी हैं भावनाएं

Last Updated 23 Oct 2016 05:50:52 AM IST

संवेग (इमोशन) के बिना जीवन कुछ अधूरा-अधूरा सा रहता है. यदि प्रेम न हो, क्रोध न हो, आक्रोश न हो, ईष्र्या न हो, दया न हो तो जीवन बेस्वाद और नीरस हो जाए.


गिरीश्वर मिश्र

संवेग या भाव कितने महत्वपूर्ण हैं, यह आप किसी दिन का अखबार उठाकर देखें तो अंदाज लगा सकेंगे. पाएंगे कि तमाम घटनाएं संवेगों के ही इर्द-गिर्द घूम रही हैं. हिंसा का कारण संवेग है और किसी व्यक्ति या समाज को सहायता देना भी संवेग का ही मामला है. संवेग संचार माध्यमों पर छाया हुआ है. आप टीवी खोलेंगे पाएंगे कि वह  तमाम  तरह के संवेगों की अभिव्यक्तियों को प्रस्तुत कर रहा  है.

संवेग तात्कालिक भौतिक घटनाओं से जुड़ा भी है, और स्वतंत्र भी. इसमें  हमारी स्मृति की बड़ी भूमिका होती है. संवेग का प्रमुख कार्य है संचार अर्थात संवेग कुछ सूचना देता है. आपकी हंसी आपकी रु लाई आपके अन्य व्यवहार जो विभिन्न संवेगों के साथ घटित होते हैं, दूसरों को कुछ बताते हैं, सूचित करते हैं. वे निमंत्रित कर सकते हैं, या दूर भागने का संकेत दे सकते हैं, तटस्थ रहने को कह सकते हैं पर वे  कुछ बताते जरूर हैं. संवेग न केवल हमारी शारीरिक रचना या दैहिक प्रक्रिया पर निर्भर करते हैं, बल्कि समाज पर भी निर्भर करते हैं. विभिन्न समाजों में  संवेगों की न केवल शब्दावली भिन्न है बल्कि उनकी अभिव्यक्ति भी भिन्न-भिन्न है. प्यार का इजहार कैसे किया जाता है? क्रोध को कैसे व्यक्त किया जाता है? ये सब अपनी संस्कृति से मिली ‘स्क्रिप्ट’ पर निर्भर करता है. संवेगों के प्रदशर्न करने के भी कुछ नियम होते हैं.

प्रेम कैसे प्रदर्शित किया जाए? क्रोध कैसे प्रदर्शित किया जाए? चिंता कैसे प्रदर्शित की जाए?  इन सबके सांस्कृतिक नियम हैं. यह भी गौरतलब है कि संवेग को लेकर कई तरह की भ्रामक  धारणाएं बनी हुई हैं. उदाहरण के लिए एक धारणा यह है कि संवेग तो कुछ स्त्रीत्व  जैसी बात है. संवेगवान या भावुक होना कोई पौरु ष की बात नहीं है. यह भी एक भ्रांति है कि संवेग नकारात्मक होते हैं. अक्सर बातचीत में लोगों को कहते पाया  जाता है, ‘तुम भावुक मत हो, नहीं तो सब गड़बड़ा जाएगा.’ भावुक होने को कमजोरी माना जाता है. अवसाद और चिंता भी संवेग हैं. आज हम नकारात्मक संवेगों के बारे में ज्यादा जानते हैं, और  सकारात्मक संवेगों  के बारे में बहुत कम. अब जा कर सकारात्मक सवेगों की ओर लोगों का ध्यान गया है. स्मरणीय है कि बुद्धि और भाव दोनों जुड़े हुए हैं. आपके मस्तिष्क में सेरिबल्र कोर्टेक्स जो बौद्धिक प्रक्रियाओं को नियमित करता है, ऊपर है. थैलेमस और अन्य ‘सबकोर्टकिल’ क्षेत्र कहा जाता है, जहां संवेग सक्रिय होते हैं, वे कार्टेक्स के थोड़े नीचे स्थित हैं. दोनों के बीच अंत:क्रिया होती है अर्थात संवेग आपके संज्ञान को प्रभावित करते हैं, और संज्ञान  भी आपके  संवेग को प्रभावित करते हैं. एक के बिना दूसरे को समझना असंभव सा है. संवेग के बहुत सारे पक्ष ऐसे हैं, जिन्हें  हम लोग अपने जीवन में सीखते हैं. गुस्सा कब किया जाए कैसे किया जाएकितनी मात्रा में किया जाए क्यों किया जाए यह सब अपने अनुभव से सीखा जाता है. फिल्मों में अभिनेता एक चरित्र को जीता है. वह  प्यार या दुश्मनी  दिखाता है,  घृणा दिखाता है, और देखने वाले का चित्त या मन बदल जाता है. भक्ति का चितण्रदेख उसके आंखों से आंसू झरने लगता है. भाव के अनुभव में विद्यमान रस की विशद व्याख्या भारतीय चिंतन में मिलती है. ‘सहृदय’ व्यक्ति रस का अनुभव करने वाला ‘रसिक’ होता है. इसी से जुड़ा एक और शब्द है ‘सामाजिक’. यह अनुभूति और ठीक ठीक से उसका अनुभव कर पाना प्रतिभा पर निर्भर करता है पर उसके लिए प्रशिक्षण भी जरूरी है. 

जीवन में हम सकारात्मक (जैसे-प्रेम, क्षमा, करु णा, हास्य, विनय, दया) और नकारात्मक (जैसे- अवसाद, चिंता, भय, क्रोध) दोनों तरह के संवेगों का अनुभव करते हैं. नकारात्मक संवेग कलह और  हिंसा को जन्म देते हैं, और लोगों के बीच संवाद टूट जाता है. दूसरी ओर सकारात्मक संवेग हमें सशक्त बनाते हैं, वे इस अर्थ में बड़े महत्त्वपूर्ण हैं कि वे सोचने की क्षमता को उद्दीप्त करते हैं, और नए विकल्पों की ओर ले जाते हैं. उपनिषदों में कहा गया है कि श्रेय की ओर आगे बढ़ाना चाहिए अर्थात वह है जो अच्छा है, और प्रिय भी है. यह अंतर करना पड़ेगा. अच्छे जीवन जीने के लिए जरूरी है कि हम भावनाओं की दुनिया में भी निवेश करें. हमें जो भी अवसर मिलता है कोशिश करनी चाहिए कि सकारात्मक संवेग को बढ़ाएं और नकारात्मक संवेग को कम करें. यही  सुखी जीवन का मंत्र है.



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