चीनी : आयात से मुक्ति की राह

Last Updated 22 Oct 2016 02:41:41 AM IST

देशभक्ति की भावना से लबरेज होकर आजकल चीनी उत्पादों के बहिष्कार का अभियान हमारे देश में जोर-शोर से चलाया जा रहा है.


चीनी : आयात से मुक्ति की राह

कुछ राज्यों के ट्रांसपोर्टर ने चीन में बने उत्पादों की ढुलाई नहीं करने का प्रस्ताव रखा है. ट्रांसपोर्टर भले ही चीन में बने उत्पादों की ढुलाई नहीं करने की बात कह रहे हैं. लेकिन दीवाली में बिकने वाले तमाम उत्पाद पहले ही भारत के बाजार में पहुंच चुके है.

आज पूरे देश के बाजार चीनी पटाखों एवं दूसरे उत्पादों से अटे पड़े हैं. कई महीने पहले से ही भारत के खुदरा एवं थोक बाज़ारों में इनका कब्जा हो चुका है. गौरतलब है कि दिल्ली समेत पूरे देश में दीवाली पर चीनी उत्पादों व पटाखों का बड़े पैमाने पर कारोबार किया जाता है. बहरहाल, अब चीनी उत्पादों के बहिष्कार से सीधे तौर पर भारतीय व्यापारियों को नुकसान होगा. बहिष्कार से उत्पादों की बिक्री में 15 से 20 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है.

मगर कलियुग के इस जमाने में भारत के व्यापारी इतने भी बड़े देशभक्त नहीं हैं कि खुद का घाटा सहकर चीन के उत्पादों का बहिष्कार करेंगे. हालांकि, सस्ती कीमत के बल पर भारतीय बाजार पर कब्जा जमाने वाले चीनी उत्पादों का भारत में विरोध होने लगा है. किंतु फिर भी दिल्ली अभी दूर है. अभी भी चीन के छोटे निर्यातक ही चीन विरोधी अभियान से प्रभावित हुए हैं. भारतीय कंपनियां चीनी उत्पादों को आज भी सीधे टक्कर देने की स्थिति में नहीं हैं, क्योंकि भारत बहुत सारे मामलों में चीन से आयातित उत्पादों पर निर्भर है.

‘इंडियास्पेंड’ के एक विश्लेषण के अनुसार भारत से चीन को किया जाने वाला निर्यात 2011-12 में 18 अरब डॉलर था, जो 2015-16 में घटकर 9 अरब डॉलर रह गया, जबकि चीन से आयात में विगत पांच सालों में हर साल पांच प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और इस ट्रेंड में आगे भी बढ़ोतरी की संभावना बनी हुई है. चीनी उत्पादों से टक्कर लेने के लिए छोटी और मझोली भारतीय कंपनियां अपने कर्मचारियों को चीन की तकनीक और उनके व्यापारिक हथकंडे सीखने के लिए उन्हें चीन भी भेज रही हैं, लेकिन ऐसी कोशिश भी प्रभावशाली साबित नहीं हो पा रही है. चीन में आज की तारीख में मजदूरी भारत के मुकाबले तिगुनी है. चीन में प्रति घंटा 3 डॉलर मजदूरी दी जाती है, जबकि भारत में 1 डॉलर.

बावजूद इसके भारतीय निर्माता इसका फायदा नहीं उठा पा रहे हैं, क्योंकि भारत में ‘मेक इन इंडिया की संकल्पना’ को साकार करना आसान नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी की इच्छा है कि भारत में बिकने वाली हर वस्तु पर ‘मेड इन इंडिया’ लिखा हुआ हो. यह तभी संभव हो सकता है जब सभी वस्तुओं का निर्माण भारत में किया जाए.

मौजूदा समय में भारत में बनी वस्तुओं की संख्या नगण्य है. लोगों की जरूरतें पूरी करने के लिए बहुत सारी वस्तुओं का आयात करना पड़ता है. आज भी भारत जितना चीन को निर्यात करता है, उसका 6 गुना उससे आयात करता है. विविध वस्तुओं के आयात के लिए विदेशी मुद्रा की जरूरत होती है, जिसका अर्जन तभी हो सकता है, जब भारत निर्यात में बढ़ोतरी करे और यह तभी संभव हो सकता है जब ‘मेक इन इंडिया’ की संकल्पना को पूरी तरह से साकार किया जाए. सरकार ‘मेक इन इंडिया’ को एक योजना का शक्ल देना चाहती है इसलिए सरकार की योजना इस संकल्पना के पलीतार्थ को पूरी दुनिया में पहुंचाने की है. इसके लिए सरकार भारतीय दूतावासों की मदद ले रही है.

इस योजना की सफलता के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, कारोबारियों आदि की भी सहायता ले रही है. सरकार ने खुद भी इस योजना के लिए 930 करोड़ रु पये का प्रावधान किया है. सरकार फिलहाल इस योजना के लिए 581 करोड़ रु पये देगी और पूरी योजना पर 20,000 करोड़ रु पये खर्च करने का प्रस्ताव है. माना जा रहा है कि ‘मेक इन इंडिया’ से भारत को अनेक क्षेत्रों में आगे बढ़ने में मदद मिलेगी, जिसमें परमाणु ऊर्जा समेत अनेक दूसरे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र शामिल हैं.

अगर ऐसा होता है तो चीनी उत्पादों से हमें छुटकारा मिल सकता है, लेकिन मौजूदा स्थिति में बैंक एनपीए और बासेल तृतीय के विविध मानकों को पूरा करने के क्रम में पूंजी की भारी किल्लत का सामना कर रहे हैं. फलत: ‘मेक इन इंडिया’ के सपने को साकार करने में सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. भले दावे किए जा रहे हैं कि चीनी उत्पादों को भारत से उखाड़ फेंका जाएगा, लेकिन ऐसा करना आसान नहीं है. बिना ‘मेक इन इंडिया’ को सफल बनाए चीनी उत्पादों को देश  के बाहर का रास्ता नहीं दिखाया जा सकता है.

सतीश सिंह
लेखक


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