मुसलमान : दीनदयाल के बहाने शुद्धि

Last Updated 29 Sep 2016 05:48:05 AM IST

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी आरएसएस के एक वरिष्ठ और सफल स्वयंसेवक हैं और स्वयं को ‘हिन्दू राष्ट्रवादी’ कहलाना पसंद करते हैं.


मुसलमान : दीनदयाल के बहाने शुद्धि

वे भारतीय मुसलमानों को अपमानित करने और नीचा दिखाने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ते हैं. केरल में भाजपा की राष्ट्रीय बैठक को संबोधित करते हुए, उन्होंने देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय को ‘दूसरा’ या हम से ‘अलग’ बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी. एक  ऐसे माहौल में जब देश के सुरक्षा ठिकानों पर पाकिस्तान से आए आतंकवादियों के हमले हो रहे हैं, भाजपा प्रशासित हरियाणा और महाराष्ट्र जातिवादी आग से झुलस रहे हैं, दलितों और अल्पसंख्यकों पर हमले बेतहाशा बढ़ रहे हैं, महंगाई व बेरोजगारी हदें पार कर चुके हैं और महिलाओं पर जघन्य अपराध आम हो गए हैं, तब मोदी ने देश की सबसे बड़ी ‘समस्या’ भारतीय मुसलमानों पर हिंदुत्व के एक विचारक दीनदयाल उपाध्याय की मार्फत, एक बार फिर हमला बोला. याद रहे कि दीनदयाल स्वयं भी देश के मुसलमानों को जीवन भर ‘एक जटिल समस्या’ मानते रहे.

मीडिया की रपटों के अनुसार मोदी ने दीनदयाल को उद्धृत करते हुए कहा : ‘मुसलमानों को न पुरस्कृत करो न फटकारो. उन्हें सशक्त बनाओ. वे न तो वोट मंडी की वस्तु हैं और न ही घृणा के पात्र. उन्हें अपना समझो.’  इन रपटों का सबसे शर्मनाक पहलू यह था कि मोदी ने ‘सशक्त’ शब्द का प्रयोग न करके दीनदयाल के मूल शब्द ‘परिष्कार’ का इस्तेमाल किया था, जिसका मतलब होता है ‘साफ/शुद्ध/शुद्धि’ करना, लेकिन मीडिया ने इसे ‘सशक्त’ में बदल दिया. अंग्रेजी मीडिया ने ऐसा किया तो समझ में आ सकता है कि उसने ‘परिष्कार’ का अर्थ अंग्रेजी में ‘सशक्त’ कर दिया, लेकिन हिंदी मीडिया ने मोदी द्वारा बोले गए ‘परिष्कार’ शब्द को ‘सशक्त’ में क्यों बदला, यह हमारी समझ से परे है. हो सकता है कि इसका एक ही कारण हो सकता है कि हिंदी मीडिया मोदी के मुसलमानों के बारे में फासीवादी विचारों पर पर्दा डालना चाह रहा हो.

प्रधानमंत्री मोदी दुबारा दोहराए गए दीनदयाल के शब्द दरअसल मुसलमानों के बारे में  आरएसएस की घृणा को ही जाहिर करते हैं.  उन्होंने ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ का नारा दिया, जिसका मतलब था कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है  जिसमें केवल हिंदुओं को रहने का अधिकार है. उन्होंने गोलवलकर और सावरकर की तरह मुसलमानों और ईसाइयों को हिन्दू राष्ट्र का अंग मानने से इनकार कर दिया और कहा कि वे तभी इस देश में रह सकते हैं अगर वे,‘इस देश की  सदियों पुरानी राष्ट्रीय-सांस्कृतिक धारा, जो हिन्दू संस्कृति की धारा है, के साथ एक रूप है. इस मुद्दे पर किसी भी तरह का समझौता नहीं हो सकता.’ 

दीनदयाल ने ‘मुसलमान : एक जटिल समस्या’ शीषर्क से एक निबंध लिखा जिसमें भारतीय मुसलमानों को समान भारतीय नागरिक के तौर  पर नहीं, बल्कि उन्हें ‘एक पुरानी, रोज  जटिल होती समस्या’ की संज्ञा दी. उनके अनुसार हिंदुस्तानी मुसलमानों के बीच ‘पाकिस्तान से हमदर्दी रखने वाला दिमाग कभी भी नहीं बदला.’ ईसाई भी उनके अनुसार देश के नागरिक नहीं, बल्कि एक और समस्या थे. दीनदयाल के अनुसार ‘साझी संस्कृति’  या ‘सब का देश’ जैसी कोई वस्तु नहीं होती है. वे तो मुसलमानों और ईसाइयों को अल्पसंख्यक मानने के लिए भी तैयार नहीं थे.   

ऐसा समझना कि दीनदयाल केवल मुसलमान और ईसाई विरोधी थे, उनसे इंसाफ करना नहीं होगा. दरअसल, वे हिंदुत्वादी राजनीति में खुला विश्वास करते थे, जिसका स्वभाविक मतलब था कि वे लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष भारत को हिन्दू राष्ट्र में परिवर्तित करना चाहते थे, जहां ‘मनुस्मृति’ का राज होगा. वे गैर-बराबरी के झंडाबरदार थे. वे मुसलमानों और ईसाइयों को बाहरी तत्व मानते थे, लेकिन बौद्ध, सिख, जैन जैसे भारत में मौजूद धर्मो को स्वतंत्र धर्म न मानकर सनातन हिन्दू धर्म का ही अंग मानते थे.  वे जातिवाद के उपासक थे और आरएसएस के किसी भी विचारक के तौर पर जातिवाद को हिन्दू धर्म और हिन्दू राष्ट्र की रीढ़ की हड्डी मानते थे.  उनको इसका ज्ञान था कि जातिवाद एक घृणित शब्द और संस्था है तो उन्होंने इसके एक नई परिभाषा दी-‘हालांकि आधुनिक जगत में समानता के नारे लगाए जाते  हैं, फिर भी समानता की  अवधारणा को विवेक के साथ स्वीकारना चाहिए.

हमारा वास्तविक अनुभव यही बताता है कि व्यावहारिक और भौतिक नजरिये से दो अलग एक समान नहीं हो सकते. भले ही लोगों के अलग-अलग गुण होते हैं और उनके गुणों एवं रु चियों के हिसाब से उन्हें भले अलग-अलग काम  सौंपे जाएं, सभी  काम एक समान रूप में सम्मानित होते हैं.  इसे स्वधर्म कहते हैं और यह साफ बताया गया है कि स्वधर्म का  पालन ही  ईश्वर की सेवा है’. अब  जातिवाद ‘स्वधर्म’ था  जिसको आपने स्वयं माना था ताकि ईश्वर की  आज्ञा का पालन हो. दीनदयाल जीवन भर इस बात पर ज़ोर देते रहे कि भारत का मौजूदा संविधान हिंदुत्व की मान्यताओं के खिलाफ है और इसको रद्द कर देना चाहिए.

प्रधानमंत्री मोदी या आरएसएस/भाजपा के नेता दीनदयाल को याद करते हुए उनकी  दर्दनाक और रहस्यमय मौत के बारे में चुप्पी लगाए हुए हैं. उनका शव मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर फरवरी 11, 1968 को  रेल की पटरियों पर पड़ा मिला था. आरएसएस के एक वरिष्ठ प्रचारक बलराज मधोक ने अपनी  आत्मकथा (जिन्दगी का सफर-3, पृष्ठ 22 ) में साफ लिखा है,‘उनकी हत्या किसी किराये के हत्यारे से करवाई गयी. परंतु हत्या करवाने वाले षड्यंत्रकारी संघ-जनसंघ के महत्त्वाकांक्षी प्रवृत्ति के लोग थे.’ मधोक ने तो कुछ नाम भी लिए हैं. मौजूदा भारतीय जनता पार्टी सरकार को हिंदुत्व के इस महान योद्धा के कत्ल के पीछे जिन हिंदुत्वादी नेताओं का हाथ था, उनके नामों के बारे में देश को विश्वास में लेना चाहिए.

शम्सुल इस्लाम
लेखक


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