इसरो : नासा से चंद कदम दूर

Last Updated 29 Sep 2016 04:59:11 AM IST

अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक बार फिर इतिहास रचते हुए इसरो ने पीएसएलवी सी-35 के ज़रिए दो अलग-अलग कक्षाओं में सफलतापूर्वक आठ उपग्रह स्थापित कर दिए.


इसरो : नासा से चंद कदम दूर

यह पहली बार है, जब पीएसएलवी ने अपने पेलोड दो अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित किया. इसरो के अनुसार पीएसएलवी सी-35 के साथ गए सभी आठ उपग्रहों का कुल वजन लगभग 675 किलोग्राम है, जिसमें अकेले स्कैटसैट-1 का वजन 371 किलोग्राम है. स्कैटसैट-1 को सफलतापूर्वक ‘पोलर सन सिन्क्रोनस ऑर्बिट’ में प्रवेश कराया गया. महासागर और मौसम के अध्ययन के लिए तैयार किये गये स्कैटसैट-1 और सात अन्य उपग्रहों को लेकर पीएसएलवी सी-35 ने सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी थी. स्कैटसैट-1 से अलावा, सात उपग्रहों में अमेरिका और कनाडा के उपग्रह भी शामिल हैं. इसरो का 44.4 मीटर लंबा पीएसएलवी रॉकेट दो भारतीय विश्वविद्यालयों के उपग्रह भी साथ लेकर गया था.

स्कैटसैट-1 एक प्रारंभिक उपग्रह है और इसे मौसम की भविष्यवाणी करने और चक्रवातों का पता लगाने के लिए है. स्कैटसैट-1 के साथ जिन दो अकादमिक उपग्रहों को ले गया है, उनमें आईआईटी मुंबई का प्रथम और बेंगलुरू बीईएस विश्वविद्यालय एवं उसके संघ का पीआई सैट शामिल हैं. प्रथम का उद्देश्य कुल इलेक्ट्रॉन संख्या का आकलन करना है जबकि पीआई सैट अभियान रिमोट सेंसिंग अनुप्रयोगों के लिए नैनोसेटेलाइट के डिजाइन एवं विकास के लिए है. ‘प्रथम’ का वजन 10 किग्राऔर बेंगलुरू यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स का बनाया पीआई सैट 5.25 किग्राका है. पीएसएलवी अपने साथ जिन विदेशी उपग्रहों को ले गया है, उनमें अल्जीरिया के-अलसैट-1बी, अलसैट-2बी और अलसैट-1एन, अमेरिका का पाथफाइंडर-1 और कनाडा का एनएलएस-19 शामिल है.

लंदन स्थित अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉक्टर एंड्रयू कोएट्स के अनुसार ‘भारत ने आज़ादी के 15 साल के अंदर ही अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू करने के बाद लगातार प्रगति की और एकमात्र ऐसा प्रगतिशील देश बना जो अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में विकसित देशों के बीच जा खड़ा हुआ. उनके अनुसार, ‘भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम परिपक्व लगता है और साथ ही उसका खास ध्यान देश की प्रगति पर है, बात चाहे संचार उपग्रहों की हो, मौसम उपग्रह की हो या रिमोट सेंसिंग की, भारत ने इन संचार उपग्रहों का उपयोग लोगों की भलाई के लिए किया है.’ भारत द्वारा प्रक्षेपित उपग्रहों से मिलने वाली सूचनाओं के आधार पर हम अब संचार, मौसम संबंधित जानकारी, शिक्षा के क्षेत्र में, चिकित्सा के क्षेत्र में टेली मेडिसीन, आपदा प्रबंधन एवं कृषि के क्षेत्र में फसल अनुमान, भूमिगत जल स्रेतों की खोज, संभावित मत्स्य क्षेत्र की खोज के साथ पर्यावरण पर निगाह रख रहे हैं.

विदेशी प्रक्षेपण रॉकेटों की अपेक्षा एक तिहाई लागत की वजह से इसरो दुनिया भर में लोकप्रियता और सफलता के झंडे गाड़ रहा है. इसरो इनसेट प्रणाली की क्षमता को जीसैट द्वारा मजबूत बना रहा है, जिससे दूरस्थ शिक्षा,दूरस्थ चिकित्सा ही नहीं, बल्कि ग्राम संसाधन केंद्र को उन्नत बनाया जा सके. लेकिन अब समय आ गया है जब इसरो व्यावसायिक सफ़लता के साथ-साथ अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की तरह अंतरिक्ष अन्वेषण पर भी ज्यादा ध्यान दे. इसरो को अंतरिक्ष अन्वेषण और शोध के लिए दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी, क्योंकि जैसे-जैसे अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी अंतरिक्ष अन्वेषण बेहद महत्त्वपूर्ण होता जाएगा. इस काम के लिए सरकार को इसरो का सालाना बजट भी बढ़ाना पड़ेगा, जो फिलहाल नासा के मुकाबले काफ़ी कम है.

लेकिन एक बात तय है, यदि इसी प्रकार भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता रहा तो वह दिन दूर नहीं, जब हमारे यान अंतरिक्ष यात्रियों को चांद, मंगल या अन्य ग्रहों की सैर करा सकेंगे. इसरो के हालिया मिशन की सफलताएं देश की अंतरिक्ष क्षमताओं के लिए मील का पत्थर हैं, जिनसे भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक महाशक्ति के रूप में उभरेगा. इसरो उपग्रह केंद्र,बेंगलुरू के निदेशक प्रोफेसर यशपाल के मुताबिक दुनिया का हमारी स्पेस टेक्नॉलाजी पर भरोसा बढ़ा है, तभी अमेरिका सहित कई विकसित देश अपने सैटेलाइट की लांचिंग भारत से करा रहे हैं.

शशांक द्विवेदी
लेखक


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