विश्लेषण : मूक मराठों की हनक

Last Updated 27 Sep 2016 05:11:32 AM IST

महाराष्ट्र मराठा और दलितों के जातीय संघर्ष के मुहाने पर खड़ा है. ओबीसी जातियां भी कभी भी इसके चपेट में आ सकती हैं.


विश्लेषण : मूक मराठों की हनक

भाजपा सरकार अभी भी पड़ोसी गुजरात में पाटीदार आंदोलन से निपटने की कोशिश कर रही है जबकि महाराष्ट्र की एक तिहाई आबादी वाली मराठा जाति का आंदोलन उग्र रूप लेता जा रहा है. राज्य के जिलों में भी जिस तरह शांतिपूर्ण और गैरराजनीतिक मराठा रैलियां हो रही हैं, और जिनमें लाखों मराठा भाग ले रहे हैं, उसने राज्य के राजनीतिज्ञों नींद उड़ा दी है. उन्हें समझ नहीं आ रहा कि राज्य के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से ताकतवर मराठा इतने गुस्सा क्यों हैं? वैसे उनकी कुछ मांगों को देखकर लगता है कि वे दलितों के रवैये से नाराज हैं.

महाराष्ट्र के अहमदनगर  जिले के कोपड़ी गांव में एक किशोरी 14 जुलाई को अपने दादा-दादी को देखने गई और लौटी ही नहीं. गांव के एक खेत में उसका शव मिला. बलात्कार के बाद उसकी गला घोंटकर हत्या कर दी गई थी. वह एक मराठा थी, और बलात्कार और हत्या के आरोपित दलित हैं. यह घटना कुछ समय तक सुर्खियों में रही, लेकिन बाद में मीडिया इसे भूल ही गया. मराठा समाज  के सोशल मीडिया और व्हाट्सअप समूहों में सवाल उठने लगे. अगर यही वाकया किसी दलित के साथ होता और आरोपित सवर्ण होते तो क्या इस मामले में ऐसी उदासीन प्रतिक्रिया होती? इसके साथ मराठाओं में सुलगने लगी आक्रोश की चिंगारी. आक्रोश बहुत बड़े पैमाने पर और सुनियोजित तरीके से उभर कर आने लगा. राज्य के कई शहरों में शांतिपूर्ण और मूक प्रदशर्न होने लगे. अब मराठा समूह महाराष्ट्र के हर जिले के हर बड़े शहर में रैलियां आयोजित करने की योजना बना रहे हैं. आखिरी प्रदशर्न मुंबई में होगा जिसमें पच्चास लाख मराठाओं के आने का अनुमान है.

इन प्रदर्शनकारियों की तीन मांगें हैं. पहली, कोपड़ी बलात्कार के आरोपितों को फांसी की सजा हो. दूसरी, एट्रोसिटी एक्ट में बदलाव हो और तीसरी, मराठाओं को आरक्षण मिले. इनमें से दो मांगें दलितों को लेकर हैं. एक बलात्कार के आरोपितों की फांसी हो और दूसरी एट्रोसिटी कानून में बदलाव हो. महाराष्ट्र में दलितों की आबादी मुखर और एक हद तक हठधर्मी है. वर्षो के दमन और सक्रियता ने दलितों को सिखा दिया है कि अपने पक्ष में चीजों का प्रयोग कैसे करना है. एट्रोसिटी एक्ट राष्ट्रीय अधिनियम है, जो दलितों के खिलाफ कदम को सं™ोय अपराध बनाता है. इसके तहत अगर कोई गैरदलित किसी दलित की काम के दौरान कटु आलोचना भी करता है, तो वह उस व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा सकता है, और पुलिस उसे पकड़ कर बंद कर सकती है. मराठाओं का कहना है कि राज्य में ऐसी दुर्भावनापूर्ण रिपोर्ट बड़ी संख्या में होती हैं.

इस कानून का प्रयोग ब्लैकमेल और उगाही करने और दुश्मनी निकालने के लिए किया जाता है. लेकिन दलितों का इस बारे में अलग ही कहना है. वे कहते हैं, एट्रोसिटी का दुरुपयोग तब होगा जब पहले उसका उपयोग हो. हकीकत यह है कि राज्य प्रशासन पर अब भी सवर्ण हावी हैं, जो एक्ट लागू ही नहीं होने देते. दलित बलात्कारियों को फांसी की मांग को लेकर प्रदशर्न के खिलाफ नहीं हैं. उनका कहना है कि यह अधिकार संविधान ने लोगों को दिया है. लेकिन वे नहीं समझ पा रहे कि बलात्कार के मामले और एट्रोसिटी में बदलाव का क्या ताल्लुक है.

दलितों के खिलाफ शुरू हुआ यह आंदोलन अब आरक्षण की मांग पर आ पहुंचा है. राज्य की पिछले 50 वर्षो से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सत्ता पर एकछत्र रूप से हावी रही मराठा जाति में पिछले कुछ वर्षो से आरक्षण की मांग जोर पकड़े हुए है. महाराष्ट्र में लोक सभा चुनावों में सत्तारूढ़ कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के गठबंधन की हार के बाद विधान सभा चुनावों में भी इस गठबंधन की हार को पक्का माना जा रहा था. इसे टालने के लिए गठबंधन की सरकार ने मराठाओं को 16 और मुस्लिमों को 4 प्रतिशत आरक्षण दे दिया. मगर अदालत ने उसे खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट इसको सुनने से इनकार कर दिया है. हालांकि इस आंदोलन का नेतृत्व न तो बड़ा मराठा नेता कर रहा है और न ही कोई राजनीतिक  पार्टी.

रणनीति के तहत मराठा समुदाय के लोग योजनाबद्ध तरीके से सड़कों पर उतर रहे हैं, जिनमें युवा, महिलाएं और युवतियां खास तौर से शामिल हो रही हैं. एट्रोसिटी रद्द करने की मांग से शुरू हुए इस आंदोलन के इस मंच का उपयोग मराठा आरक्षण की मांग के लिए भी किया जाने लगा है. सवाल यह भी है कि मराठा आंदोलन का महाराष्ट्र की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा? क्या आंदोलन फडणवीस सरकार के लिए खतरे की घंटी है? कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि आंदोलन की वजह से मुख्यमंत्री फडणवीस को घेरने का मौका पार्टी के भीतर-बाहर दोनों  के विरोधियों को मिल रहा है.

दरअसल, भाजपा ने गलती यह की है कि मराठा वर्चस्व वाले इस राज्य में एक ब्राह्मण को मुख्यमंत्री बना दिया है. यह बात मराठाओं को रास नहीं आ रही. मराठवाड़ा में दलित और मराठा संघर्ष का इतिहास रहा है, मराठवाड़ा विविद्यालय के नामांतर के वक्त यह संघर्ष पूरे राज्य ने देखा था. अब मराठा आंदोलन की एक मांग एट्रॉसिटी एक्ट रद्द करने की है, अब कुछ दलित नेता इसका विरोध कर रहे हैं. कुछ दलित संगठनों ने इस मांग के खिलाफ प्रदर्शन करने की तैयारी शुरू की थी. मगर दलित नेताओं ने उन्हें समझाया कि अभी तक आंदोलन दलितों के खिलाफ नहीं है, इसलिए उन्हें जवाबी रैली निकालने से बचना चाहिए. लेकिन एक बात साफ है कि लाखों मराठाओं के सड़क पर उतरने से महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल आ गया है. मामला जातिगत होने के कारण कभी भी गंभीर रूप ले सकता है. लोगों के सामने सवाल है कि  कहीं इस आंदोलन की वजह से मराठा और दलितों में संघर्ष तो नहीं छिड़ जाएगा.

सतीश पेडणेकर
लेखक


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