भाषण के निहितार्थ

Last Updated 26 Sep 2016 04:52:02 AM IST

यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का उरी हमले के बाद दूसरा सार्वजनिक भाषण था. एक भाषण उन्होंने उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी की पुस्तक के विमोचन के अवसर पर दिया. लेकिन उसका संदर्भ एवं विषय अलग था.


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का उरी हमले के बाद भाषण.

इस नाते देश की जनता और दुनिया को उरी के बाद भारत क्या कर रहा है, क्या करने की सोच रहा है आदि पर अपना मत रखने का यह पहला सार्वजनिक अवसर कहा जाएगा. उनके भाषण पर स्वाभाविक ही मिश्रित प्रतिक्रियाएं आई हैं. एक पक्ष यह कह रहा है कि उनका भाषण परिस्थितियों के अनुसार बिल्कुल सही था. उन्होंने एक राजनेता के समान भाषण दिया, जबकि एक पक्ष के लोग मान रहे हैं कि पूरे भाषण में पाकिस्तान को अलग-थलग करने के अलावा करना क्या है या क्या करेंगे, इस पर प्रधानमंत्री ने कुछ बोला ही नहीं. ऐसे और भी पक्ष-विपक्ष में प्रतिक्रियाएं हैं. कुल मिलाकर आलोचकों का मानना है कि यह पहले हुए हमले के बाद की गुस्सैल आम प्रतिक्रिया जैसी ही थी.

तो सच क्या है? प्रधानमंत्री के भाषण को कैसे देखें? क्या वाकई इसमें करुणा की कमी थी? क्या यह ऐसा भाषण नहीं था, जिससे देश को यकीन हो कि पाकिस्तान को करार जवाब मिलेगा या मिल रहा है? या ऐसे तत्व थे भाषण में? क्या इसमें दुनिया को समझा सकने लायक तर्क थे या नहीं, जिससे कि पाकिस्तान को अलग-थलग करने में सहायता मिले? ऐसे अनेक प्रश्न हैं, जिनका उत्तर हमें उनके भाषण में तलाशना होगा. प्रधानमंत्री ने यह स्वीकार किया कि देश में उरी हमले के बाद आक्रोश है. तो एक नजरिया यह हो सकता है कि जिस उच्चतम स्तर का आक्रोश देश में है या एक साथ क्षोभ और दुख का जो चरम माहौल है ; प्रधानमंत्री का भाषण उस स्तर को अभिव्यक्त करने वाला नहीं था. लेकिन जरा इसे दूसरे नजरिए से देखिए तो तस्वीर कुछ और भी दिखाई देगी.

मसलन, उन्होंने साफ कहा कि उरी में हमारे पड़ोसी देश के कारण 18 जवानों को बलिदान होना पड़ा और आतंकवादियों को चेतावनी दी कि आतंकवादी कान खोलकर सुन लें कि यह देश आपको कभी भूलने वाला नहीं है. जब बराक ओबामा शासन में आए थे, उन्होंने कहा था कि आतंकवादियों जहां कहीं आप हो हम आपको ढूंढ़ेंगे और खत्म कर देंगे. मोदी ने ऐसा नहीं कहा. लेकिन भाव यही था. दूसरे, उन्होंने यह कहा कि पड़ोस के देश के हुक्मरान कहा करते थे कि हम हजार साल लड़ेंगे. काल के भीतर कहां खो गए कहीं नजर नहीं आते.

तो मोदी के ऐसा कहने के पीछे कुछ संदेश तो था ही. संदेश यह था कि पाकिस्तान अपने उस नेता को याद करे, जो हजार साल लड़ने का सपना देखा और एक ही युद्ध में अपनी मिट्टी पलीद करा बैठा. उसकी पुनरावृत्ति फिर हो सकती है. इसलिए यह कहना कि उन्होंने युद्ध की बिल्कुल बात नहीं की सही नहीं है. हां, प्रत्यक्षत: नहीं की. मगर परोक्ष तौर पर तो की. उन्होंने यह भी कह दिया कि आज के नेता तो अपना भाषण भी स्वतंत्र होकर नहीं देते. वे आतंकवादियों के आकाओं के लिखे हुए भाषण पढ़कर कश्मीर के गीत गाते हैं. इसके दो अर्थ हैं. एक पाकिस्तान के नेताओं की आतंकवादियों के साथ खुली मिलीभगत है. दूसरे, कश्मीर के आतंकवादियों का एजेंडा ही नेता आगे बढ़ा रहे हैं. यानी कश्मीर की सत्ता और आतंकवाद में कोई अंतर नहीं है.



प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में पहली बार एशिया को पाकिस्तान के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश की. यह कहना कि 21वीं सदी एशिया की सदी होगी. इसके लिए हर प्रकार की शक्तियां मौजूद हैं. जहां-जहां आतंकवाद की घटनाएं घट रही हैं; हर देश एक ही को गुनाहगर मानता है. यही देश है जो आतंकवाद को निर्यात करने में लगा हुआ है. अफगानिस्तान और बांग्लादेश का नाम लिया. हम जानते हैं कि इन दोनों देशों ने अपने यहां आतंकवाद के लिए पाकिस्तान को जिम्मेवार ठहराया है और ये भारत के साथ हैं. तो पाकिस्तान को एशिया में अलग-थलग करने का यह एक प्रयास था. इसमें कितनी सफलता मिलेगी यह अभी देखना होगा. यह सवाल भी उठ रहा है कि पाकिस्तान को सीधी चेतावनी देने की जगह प्रधानमंत्री ने आतंकवादियों को चेतावनी दी और वहां के अवाम से बात की.

थोड़ी गहराई से देखिए, प्रधानमंत्री ने यहां कहा कि पाकिस्तान के हुक्मरान सुन लें हमारे 18 जवानों का बलिदान बेकार नहीं जाएगा. यह पाकिस्तान की सत्ता प्रतिष्ठान को ही चेतावनी थी और इसके बाद उन्होंने कहा कि हम पूरे वि में आपको अकेला करके रहेंगे. उन्होंने आगे कहा कि वे दिन दूर नहीं होंगे जब पाकिस्तान का अवाम पाकिस्तान के हुक्मरानों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए सामने आएगी. तो इसका एक पक्ष यह है कि मोदी ने पाकिस्तानी जनता को वहां की पूरी सत्ता प्रतिष्ठान, जिसमें नेता और सेना दोनों शामिल हैं, के खिलाफ उभारने की रणनीति अपनाई. अवाम से कहा कि आप अपने हुक्मरानों से पूछें कि जो घर में है, उसे संभाल कर तो दिखाओ. यह कहकर उन्होंने पाकिस्तानी जनता को सोचने को मजबूर किया कि दोनों देश साथ आजाद हुए. लेकिन क्या कारण है कि भारत दुनिया में सॉफ्टवेयर निर्यात करता है और आप टेरर? भले पाकिस्तान के लोग आतंकवाद निर्यात करने की सच्चाई को अभी स्वीकार नहीं करें. मगर उनके यहां आतंकवाद पैदा हुआ यह तो सच है.

 तो प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के लोगों को यह समझाने की कोशिश की कि आपके नेता अपना देश नहीं संभाल पा रहे हैं, गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, शिशु मृत्यु आदि पर काबू नहीं पा रहे तो वे आपका ध्यान भटकाने के लिए भारत विरोध या कश्मीर का राग अलापते हैं. इस तरह प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के अंदर भी वहां के सत्ताधीशों के खिलाफ विरोध का भाव पैदा करने की रणनीति अपनाई. यह तत्काल सफल हो जाएगी ऐसा नहीं है, किंतु शुरुआत तो हुई. इसे लगातार विभिन्न मंचों से बोला जाएगा. अब नए सिरे से समर्थन देकर प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को जैसे का जैसा जवाब देने की कोशिश की है. जाहिर है, यह दूरगामी नीति का अंग है, लेकिन पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ बाहर के साथ घर के अंदर भी वातावरण बनाने की यह कोशिश जारी रहेगी तो इसका असर पड़ेगा.

अवधेश कुमार


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