मुद्दा : जानलेवा जाम बड़ी चुनौती
गत सोमवार को एक घंटा पानी क्या बरसा, दिल्ली-जयपुर मार्ग कई घंटे तक जाम रहा, बिल्कुल वैसे ही जैसा एक महीने पहले हुआ था.
मुद्दा : जानलेवा जाम बड़ी चुनौती |
घुटनों तक पानी, फंसे वाहन, हताश-बीमार लोग और बच्चे. सब कुछ अनियंत्रित यह बेहद गंभीर चेतावनी है कि आने वाले दशक में दुनिया में वायु प्रदूषण के शिकार सबसे ज्यादा लोग दिल्ली में होंगे.
एक अंतरराष्ट्रीय शोध रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर प्रदूषण स्तर को काबू में नहीं किया गया तो साल 2025 तक दिल्ली में हर साल करीब 32,000 लोग जहरीली हवा से असामयिक मौत के मुंह में जाएंगे. ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित ताजा शोध के मुताबिक दुनियाभर में 33 लाख लोग हर साल वायु प्रदूषण के शिकार होते हैं. यही नहीं सड़कों में बेवहज घंटों फंसे लोग मानसिक रूप से भी बीमार हो रहे हैं व उसकी परिणति के रूप में आए रोज सड़कों पर ‘रोड रेज’ के तौर पर बहता खून दिखता है. यह हाल केवल देश की राजधानी के ही नहीं है, सभी छह महानगर, सभी प्रदेशों की राजधानियों के साथ-साथ तीन लाख आबादी वाले 600 से ज्यादा शहरों-कस्बों के हैं.
दुखद है कि दिल्ली और कोलकता में हर पांचवा आदमी मानसिक रूप से अस्वस्थ है. यह तो सभी स्वीकार करते हैं कि बीते दो दशकों के दौरान देश में आटोमोबाइल उद्योग ने बेहद तरक्की किया है और साथ ही बेहतर सड़कों के जाल ने परिवहन को काफी बढ़ावा दिया है. यह किसी विकासशील देश की प्रगति के लिए अनिवार्य भी है कि वहां संचार व परिवहन की पहुंच आम लोगों तक हो. विडंबना है कि हमारे यहां बीते इन्हीं सालों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की उपेक्षा हुई व निजी वाहनों को बढ़ावा दिया गया.
रही-सही कसर बैंकों ने आसान कर्ज ने पूरी कर दी और अब इंसान दो कदम पैदल चलने के बनिस्पत दुपहिया ईधन वाहन लेने में संकोच नहीं करता है. असल में सड़कों पर वाहन दौड़ा रहे लोग इस खतरे से अंजान ही हैं कि उनके बढ़ते तनाव या चिकित्सा बिल के पीछे सड़क पर रफ्तार के मजे का उनका शौक भी जिम्मेदार है. शहर हों या हाईवे-जो मार्ग बनते समय इतना चौड़ा दिखता है, वही दो-तीन सालों में गली बन जाता है. यह विडंबना है कि महानगर से ले कर कस्बे तक और सुपर हाईवे से लेकर गांव की पक्की हो गई पगडंडी तक, सड़क पर मकान व दुकान खोलने व वहीं अपने वाहन या घर की जरूरी सामन रखना लोग अपना अधिकार समझते हैं.
दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि लुटियन दिल्ली में कहीं भी वाहनों की सड़क पर पार्किंग गैरकानूनी है, लेकिन सबसे ज्यादा सड़क घेर कर वाहन खड़ा करने का काम पटियाला हाउस अदालत, नीति आयोग या साउथ ब्लाक के बाहर ही होता है. जाहिर है कि जो सड़क वाहन चलने को बनाई गई उसके बड़े हिस्से में बाधा होगी तो यातायात प्रभावित होगा ही. यातायात जाम का बड़ा कारण सड़कों की त्रुटिपूर्ण डिजाइन भी होता है, जिसके चलते थोड़ी सी बारिश में वहां जलभराव या फिर मोड़ पर अचानक यातायात धीमा होने या फिर आए रोज उस पर गड् ढे बन जाते हैं.
पूरे देश में सड़कों पर अवैध और ओवरलोड वाहनों पर तो जैसे अब कोई रोक है ही नहीं. पुराने स्कूटर को तीन पहिये लगा कर बच्चों को स्कूल पहुंचाने से ले कर मालवाहक बना लेने या फिर बमुश्किल एक टन माल ढोने की क्षमता वाले छोटे स्कूटर पर लोहे की बड़ी बॉडी कसवा कर अंधाधुंध माल भरने, तीन सवारी की क्षमता वाले टीएसआर में आठ सवारी व जीप में 25 तक सवारी लादने फिर सड़क पर अंधाधुंध चलने जैसी गैरकानूनी हरकतें कश्मीर से कन्याकुमारी तक स्थानीय पुलिस के लिए ‘सोने की मुरगी’ बन गए हैं.
देश भर में स्कूलों व सरकारी कार्यालयों के खुलने और बंद होने के समय लगभग एक समान है. इसका परिणाम हर छोटे-बड़े शहर में सुबह से सड़कों पर जाम के रूप में दिखता है. ठीक यही हाल दफ्तरों के वक्त में होता है. सबसे बड़ी बात बड़े शहरों में जो कार्यालय जरूरी ना हों, या राजधानियों में-जिनका मंत्रालयों से कोई सीधा ताल्लुक ना हों-उन्हें सौ-दो सौ किलोमीटर दूर के शहरों में भेजना भी एक परिणामकारी कदम हो सकता है. इससे नए शहरों में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और लोगों का दिल्ली की तरफ पलायन भी कम होगा. सबसे बड़ी बात, जितना छोटा शहर उतना ही काम के लिए जाने में परिवहन में समय कम और इसका सीधा अर्थ पर्यावरण संरक्षण, मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा.
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