टू दि प्वाइंट : अमेरिका में क्रिकेट

Last Updated 30 Aug 2016 02:11:54 AM IST

ओलंपिक अमेरिका में क्रिकेट शुरू सा हो गया है, भारत और वेस्टइंडीज के बीच दो मैच हुए अमेरिका में.


आलोक पुराणिक

अमेरिकन क्रिकेट को उतना ही जानते हैं, जितना भारतीय बेसबाल नामक खेल को. अमेरिकन विकट तमाशबीन लोग हैं, फुलटू तमाशा देखते हैं, चाहे कुछ लेना-देना ना हो.

मैच वेस्टइंडीज और इंडिया के बीच, पर देखने आए अमेरिकन. ये अमेरिकन तमाशबीनी सिर्फ  क्रिकेट तक ही सीमित नहीं है, इंडिया-पाकिस्तान रिश्ते  हों या दक्षिण चीन के समंदर का मामला, अमेरिकन घुस कर तमाशा देखते हैं.

कई अमेरिकन पेरेंट्स अपने बच्चों को भी लेकर आए थे क्रिकेट दिखाने. अमेरिकन पेरेंट्स अपने बच्चों को पक्का यही समझा रहे होंगे कि देखो ,इस खेल में घणा टाइण वेस्ट करते हैं इंडियन. हम अमेरिकन होशियार हैं, हम टाइम गलाते हैं ब्रांड बनाने में.

तो  अमेरिकन ब्रांड कोक और पेप्सी इंडियन क्रिकेट मैचों को स्पांसर करते हैं, कोक और पेप्सी के देश अमेरिका में क्रिकेट नहीं खेला जाता है. पर उससे कुछ लेना-देना नहीं है. जिन आइटमों से जहां कमाई हो जाए, उन आइटमों को अमेरिकन कंपनियां स्पांसर करती हैं. कई तानाशाहों को पूरी दुनिया में अमेरिका स्पांसर करता रहा है, कमाई-धमाई के मामले हैं, हालांकि अमेरिका की अपनी पॉलिटिक्स लोकतांत्रिक है.

अमेरिका का महारत उन खेलों में है, जो लंबे नहीं  चलते. घंटे दो घंटों में निपट लेते हैं, टेनिस, स्विमिंग जैसे खेल. इंडियन फुरसतिये हैं, पांच दिन का टेस्ट, पूरे दिन का वन डे और कुछ घंटे का टी-20 देखने का टाइम निकाल लेते हैं. यूं यह खेल इंडिया में ब्रिटेन से आया, इस खेल के ब्रिटेन में बहुत पापुलर होने से यह भी समझ आता है कि एक वक्त परम सर्व-शक्तिशाली रहे ब्रिटेन का ऐसा पतन क्यों हो गया कि अमेरिका का चंपू बनना पड़ा. खैर, जी इंडियन क्रिकेट से वो सारे मुल्क मौज ले रहे हैं, जहां क्रिकेट का नामो-निशान तक नहीं है.

दक्षिण कोरिया की सैमसंग कंपनी, एलजी कंपनी इंडिया में वड्डे-वड्डे टीवी क्रिकेट प्रतियोगिताओं के दौरान यह कह कर बेचती हैं कि बड़े परदे पर क्रिकेट देखो. जापान की सोनी कंपनी भी क्रिकेट के नाम पर वड्डे टीवी बेच लेती है. अमेरिका किसी जगह, किसी इवेंट को सिर्फ  देखने नहीं, उससे कमाई देखने को उतरता है जी.



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