इन बैठकों का क्या मतलब?

Last Updated 29 Aug 2016 04:45:33 AM IST

भाजपा ने एक सप्ताह के अंदर दो महत्त्वपूर्ण बैठकें कीं. पहले राज्यों के कोर समूहों की बैठक हुई और उसके बाद भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की.


भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक

कोई भी समझ सकता है कि इन बैठकों का उद्देश्य क्या हो सकता है. कोर समूह में भाजपा की विचारधारा, उसके लक्ष्य और उसके अनुरूप संगठन को कैसे और क्या करना है; इन विषयों पर विचार हुआ तो मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में फोकस इस बात पर था कि सरकार किस तरह बेहतर प्रदशर्न करे, उसकी जनता में अच्छी छवि कैसे बने?

अगर इन दोनों को एक साथ मिलाकर देखें तो भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने-केंद्र सरकार, राज्य सरकारें, केंद्रीय संगठन एवं राज्य संगठन सभी एक टीम की तरह आपसी समन्वय व सामंजस्य से मिशन मोड में काम करे-यह सुनिश्चित करने की पहल की है. यह आवश्यक भी है. भारतीय राजनीति में वोटों की जैसी प्रतिस्पर्धा है और स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषणों और योजनाओं से देश में जो वातावरण बनाया है, उसमें अगर सभी अंगों ने मिलकर अभियान की तरह काम नहीं किया तो फिर पार्टी के लिए 2019 बेहद दुष्कर होगा. इस परिप्रेक्ष्य में इन बैठकों के महत्त्व एवं इनकी उपादेयता को स्वीकारने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए.

यह अच्छा है कि दोनों बैठक भाजपा के केंद्रीय संगठन द्वारा आयोजित किए गए. लगता है पार्टी ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार से सबक लिया है. उस सरकार के साथ जो सबसे बड़ा दोष उत्पन्न हो गया था, वह यह कि उसमें सरकार प्रमुख हो गई थी और संगठन गौण. उसका परिणाम यह हुआ कि संगठन में ऊपर से निचले स्तर तक असंतोष कायम हुआ और भाजपा के आम चुनाव में पराजय के पीछे यह बड़ा कारण था, क्योंकि कार्यकर्ताओं ने मन से काम ही नहीं किया. मोदी सरकार एवं प्रदेश सरकारों के संदर्भ में भी भाजपा के कार्यकर्ता यही शिकायत करते हैं कि सरकार में उनकी आवाज का कोई महत्त्व ही नहीं है. यह असंतोष चारों तरफ देखा जा सकता है.

इसे विडम्बना ही कहेंगे क्योंकि प्रधानमंत्री सरकार से लोगों को जोड़ने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं, सभी मंत्रियों और राज्य सरकारों से ऐसा करने का उनका आग्रह रहता है, वेबसाइट बनाए हैं, जहां लोग सरकार तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं.ऐप बनाए हैं... किंतु ये सारे प्रयास इसलिए अपर्याप्त हैं, क्योंकि भाजपा और संघ परिवार के कार्यकर्ता मंत्रियों और नेताओं से सीधा संपर्क चाहते हैं. तो यह ऐसा प्रश्न भाजपा के सामने है जिसका निदान उसे तलाशना है.

केवल औपचारिक कार्यकारिणी या राष्ट्रीय परिषद की बैठकों से यह संभव नहीं हो सकता. इसका एक तरीका यह है कि संगठन सरकार के सामने गौण न दिखे, ऐसा हर प्रयास करना. तो मोदी और अमित शाह की कोशिश यही है कि संगठन ज्यादा-से-ज्यादा कार्यक्रमों की पहल करे. याद करिए, पिछले मंत्रिमंडल विस्तार में संभावित सारे मंत्रियों को अध्यक्ष अमित शाह ने सूचना दी और सभी ने उनसे मुलाकात की. कोर समूह और मुख्यमंत्रियों की बैठक केवल संगठन ने बुलाया ही नहीं, उसमें  आरंभिक भाषण अध्यक्ष ने दिया और समापन भाषण प्रधानमंत्री ने. बाकी नेता और मंत्रियों को विषय के अनुसार बीच में बोलने का मौका दिया गया. तो देखना होगा कि संगठन को ऊपर दिखाने का यह प्रयास निचले स्तर में कहां तक पहुंचता है और इनक क्या असर होता है.



देश का एक बना-बनाया ढांचा है और कोई सरकार आती है तो वह उस ढांचे के अंतर्गत काम करती है. किंतु मोदी ने स्वयं अपनी एवं अन्य सरकारों के लिए ऊंचे मानक बनाए हैं. सरकार के स्तर पर मोदी अन्य राज्य सरकारों से तो संपर्क बनाए हुए हैं. लेकिन अपनी पार्टी की जहां-जहां सरकारें हैं, उन्हें उदाहरण बनाया जा सकता है. अगर वे उदाहरण बनें तो इससे दूसरे राज्यों को प्रेरणा मिलेगी और यह पार्टी के राजनीतिक हित में भी होगा. चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री एवं पूरी पार्टी यह दावा कर सकती है कि देखिए हमारी सरकारों ने किस तरह उपलब्धियां प्राप्त की हैं. इसलिए मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाकर उनसे योजनाओं के शत-प्रतिशत क्रियान्वयन के लिए कहना और उसके लिए प्रेरित करना उपयुक्त प्रयास है. अमित शाह ने अपने भाषण में कहा भी कि केंद्र सरकार ने पिछले दो वर्ष में जो 80 कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं उनमें से 65 ऐसी हैं, जिन्हें राज्यों को ही पूरा करना है.

प्रधानमंत्री ने नीति अयोग की व्याख्यानमाला में कहा था कि हमारी नीति क्रमिक विकास नहीं तीव्र परिवर्तन या कायाकल्प की है. तो राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सामने लक्ष्य साफ हो गया है कि उन्हें सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन करना है. शाह एवं मोदी दोनों का संदेश यही था कि विकास और जनकल्याण के कार्यक्रमों को जमीन पर उतारने में उन्हें सबसे आगे रहकर उदाहरण बनना होगा. बैठक में राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को छोड़कर पार्टी के सभी आठ मुख्यमंत्री मौजूद थे. ध्यान रखिए कि भाजपा शासित राज्यों में देश का 52 प्रतिशत भूभाग और 37 प्रतिशत जनता आती है. इस समय देश की कुल अर्थव्यवस्था में इनका योगदान 41 प्रतिशत का है.

जाहिर है, अगर इन्होंने बेहतर प्रदर्शन किया तो इससे देश के आधा से ज्यादा भाग का कायाकल्प हो सकता है. देश में विकास की राजनीति की प्रतिस्पर्धा पैदा करनी है तो भाजपा शासित राज्यों को कुछ कर दिखाना ही होगा. मुख्यमंत्रियों ने भी विभिन्न योजनाओं पर अपने कार्यों का विवरण दिया एवं कई प्रेजेंटेशन भी थे. तीन बातों पर शाह और मोदी दोनों का जोर था. एक, शहर और गांव के विकास के बीच संतुलन होना चाहिए. यानी दोनों का विकास एक गति से हो. दो, विकास का लाभ अंतिम आदमी तक पहुंचे यह सुनिश्चित होना चाहिए और तीन, सरकार को संगठन के साथ तालमेल बनाकर काम करना होगा. यानी विधायक एवं मंत्री सतत जनता से संपर्क में रहें. कोर समूह एवं मुख्यमंत्रियों की बैठक को एक साथ मिलाकर विचार करें तो यह कहा जा सकता है कि सरकार के दो साल बीतने के साथ शाह और मोदी की जोड़ी ने संगठन एवं सरकार दोनों स्तरों पर कमर कसने की शुरुआत कर दी है. इस कवायद के बेहतर परिणाम दिखने अभी बाकी हैं.

 

 

अवधेश कुमार
वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक


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