मीडिया : खबर बनाने की कला

Last Updated 28 Aug 2016 04:06:12 AM IST

सुर्खियों में बने रहने के सुख से बड़ा कोई सुख नहीं और अगर आप सेलीब्रिटी हैं, सोशलाइट हैं, बड़े नाम वाले हैं, नेता हैं, अभिनेता हैं तो इन दिनों खबरों में आने के लिए आपको सिर्फ एक चुटीला बयान देना है या एक तीखा ट्वीट मारना है.


सुधीश पचौरी

आप देखते-देखते हर चैनल पर छा जाएंगे. ऐसा होते ही आपके चाहने वाले और आपके न चाहने वालों में जंग शुरू हो जाएगी और आपका दो कौड़ी का एक वाक्य ऐसा ‘देव-वाक्य’ बन जाएगा कि जिस पर दो-तीन पक्ष एक दूसरे से भिड़े रहेंगे : एक कहेगा : कितनी गलत बात कही है.

इससे देश का अपमान हुआ, जनता का अपमान हुआ. इसके लिए माफी मांगनी होगी. आप कहेंगे : माफी हरगिज नहीं मांगूगा. जनतंत्र है और यह मेरा विचार है! दूसरा कहेगा : उन्होंने ठीक ही तो कहा है. यही बात सन दो हजार में उसने कही कि फिर इसने कही थी, और अब इन्होंने कही है. तीसरा कहेगा : कथन का कानूनी पक्ष देखना होगा, लेकिन ऐसा कहने वालों को देश की स्थिति को समझना चाहिए. देश नाजुक दौर से गुजर रहा है. हमने तो जब से होश संभाला है, तब से अपने देश को हमेशा नाजुक दौर से गुजरते पाया है! पता नहीं यह नाजुक दौर कब खत्म होगा?

चैनल कहेंगे : आप अपनी राय बताइए. इस नम्बर पर ट्वीट कीजिए. देखिए प्राइम टाइम की सबसे बड़ी खबर पर जिंदा बीस यानी लाइव फाइट! यह खबर किसी गहरी सामाजिक समस्या से नहीं पैदा हुई. न किसी दार्शनिक ऊहापोह से उपजी है, बल्कि बहुत दिन से मीडिया में खुद को न पाकर एक सोशलाइट या एक सेलीब्रिटी ने एक धिक्कार भरे ट्वीट से मीडिया का घ्यान अपनी ओर खींच लिया है, और मीडिया को घर बैठे काम मिल गया है. आजकल किसी का एक वाक्य, एक बकवास हमारे चैनलों को दिन भर के लिए काम दे देती है. वे एक मामूली-सी बकवास से उत्तेजित हो बेहद संजीदगी से सबसे पूछने लगते हैं कि क्या उनके या इनके बारे में उनका ऐसा कहना उचित है? एक ‘छद्म नैतिक’ बहस होने लगती है. नसीहतें दी जाने लगती हैं.

कैमरे दौड़कर पहले ऐसे ‘अनमोल बोल’ बोलने वाले से पूछेंगे कि आपने क्या-क्या बोला? क्यों बोला? क्या आपको इस पर अफसोस है? अनमोल बोलने वाले महानुभाव बड़ी कार में बैठे या बैठी होंगी धूप का चश्मा लगाए. कार से हैलो करते हुए निकल जाएंगे/जाएंगी और कैमरामैन के साथ रिपोर्टर पीछे कुछ देर दौड़ता नजर आएगा. चैनल की स्क्रीनों पर लाइन लगाएंगे कि वे मीडिया से मुंह चुराकर भाग खड़े हुए. देखिए, कैसे भागे?

अपनी चुटीली टिप्पणी से दूसरे को ‘डाउन’ कर खबर बनाने वाले लोग मीडिया की आदत जानते होते हैं. ऐसी खबरें बना-बनाकर मीडिया को उपकृत करते रहते हैं. यह एक तरह की ‘दोस्ताना एक्टिविटी’ की तरह है. अगर आपको कोई चैनल न पूछ रहा हो, प्राइम टाइम में एक घंटे टीवी में छाने का सुख न मिल पा रहा हो तो आप 140 अंग्रेजी अक्षरों में किसी पर एक गोला दाग दें. गोला ऐसा हो जो सबकी बोलती बंद कर दे! फिर देखें चैनलों पर आप ही आप होंगे. कुछ ने इसमें महारत हासिल कर रखी है. ऐसे लोग अक्सर ‘मूवर’ और ‘शेकर’ कहलाते हैं. ‘पावर’ वाले कहलाते हैं. ‘हिलाने’और ‘चलाने’ वाले कहलाते हैं. वे देखते-देखते मीडिया की लाइम लाइट हड़प लेते हैं क्योंकि मीडिया खुद बकवास पसंद है. और इस बकवास का भी अब मारकेट बन चला है. यहां पूरे दिन पॉप राजनीति, पॉप नैतिकता, पॉप कानूनी जानकारी, पॉप कल्चर का बोलबाला रहता है. वे चैनल, वे एंकर जो पांच मिनट में खुद को राष्ट्र और देश बताकर सबकी हाजिरी लगाने लगते हैं, वे इसके सबसे अच्छे खिलाड़ी नजर आते हैं.

यह दौर ‘राइट टू इसंल्ट’ का है. इस क्रम में कोई  नहीं बचता. एक को दूसरा, दूसरे को तीसरा, तीसरे को चौथा यानी सब एक दूसरे को ‘डाउन’ करने को ही बहस या विचार समझते हैं! पत्रकारिता में कभी यह पढ़ाया जाता था कि खबर यह नहीं है कि ‘आदमी को कुत्ते ने काटा’ खबर यह है कि ‘कुत्ते को आदमी ने काटा’! आजकल खबर एक धांसू ओपिनियन है जो बेइज्जती  करने को अपना हक मानकर चलती है. बदतमीजी ‘अपराध’ नहीं एक ‘नई सूक्ति’ है. घमंड, अहंकार और दर्प आदर्श मुद्दा है. हल्ला और हमला एक्शन का पर्याय हैं. चैनलों के लिए यह सबसे उत्तेजक मसाला हैं. जो इसे बनाता है, एक दिन का खबर बनाने वाला बन जाता है. जो बदतमीजी कर माफी नहीं मांगता वह रातोंरात नामी हो जाता है. लोग कहने लगते हैं बड़ी हिम्मतवाला है जी! ऐसों का ही भविष्य है!



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