नामवर सिंह पर गुस्सा क्यों आता है

Last Updated 31 Jul 2016 04:21:46 AM IST

डॉ. नामवर सिंह को मैंने पहली बार तब देखा था, जब वे वसंत पंचमी के कार्यक्रम में हावड़ा के हमारे स्कूल आए थे.


राजकिशोर

मैं हिंदी का विद्यार्थी था और उस समय की लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाएं पढ़ता रहता था. इन्हीं में ‘नई कहानी’ थी, जिसमें नामवर जी के लेख छपते थे. नई कहानी के उभार के दिन थे. कार्यक्रम में नामवर सिंह का परिचय देने का काम मुझे ही सौंपा गया था. मैंने अपनी तोतली जुबान में क्या कहा, यह तो मुझे याद नहीं, पर यह जरूर याद है कि मैंने अपने परिचय भाषण में ‘नई कहानी’ का जिक्र किया था. नामवर जी जब किसी की प्रशंसा करते हैं, तो उसमें कहीं कंजूसी नहीं करते. मेरी भी उन्होंने जम कर प्रशंसा की और कहा कि इतनी कम उम्र में साहित्य के नवीनतम आंदोलन की जानकारी रखने वाला छात्र धन्य है, और धन्य है वह विद्यालय, जिसमें ऐसे छात्र पढ़ते हैं. उनका आशीर्वाद स्कूल पर तो खूब फला, मुझे पर शायद नहीं फल पाया. लेकिन फले या न फले, आशीर्वाद तो आशीर्वाद ही होता है. 

दिल्ली में कौन नहीं है जिस पर किसी न किसी की कृपा न रही हो. उनसे व्यक्तिगत संबंध मैंने कभी बनाया नहीं, न समय ने ऐसा मौका दिया. जैसे चकोर दूर से चंद्रमा को निहारता रहता है, वैसे ही मैं उनका रिमोट प्रशंसक हूं. हिंदी में कौन है, जो उनका प्रशंसक नहीं है? उनके घोषित शत्रु भी उनकी मेधा, स्मृति, विवेचना शक्ति, प्रत्युत्पन्नमति आदि की प्रशंसा करते हैं. वस्तुत: हिंदी को गर्व है कि उसके पास एक नामवर है. इस स्तर की प्रतिभा पूरे भारत में दिखाई नहीं देती. शायद हम यह भी कह सकते हैं कि न भूतो न भविष्यति. अध्ययन, चिंतन और प्रगतिशीलता का ऐसे अद्भुत संगम, जिसे सुन कर सरस्वती भी लजा जाएं.

फिर नामवर सिंह पर गुस्सा क्यों आता है? क्योंकि समय-समय पर वे कुछ न कुछ ऐसा कर बैठते हैं, जिससे उनकी ही हेठी होती है. मैं नहीं समझता उनके ये कारनामे ‘अचूक अवसरवाद’ की श्रेणी में आते हैं. मैं इसे द्वंद्वात्मकता की भाषा में समझना चाहता हूं. हिंदी के बड़े आलोचकों में सभी का व्यक्तित्व ऋजु है. वे सीधे-सादे लोग थे, जिनकी अपनी निष्ठाएं थीं, जिनका निर्वाह उनकी कृतियों में दिखाई देता है. रामविलास शर्मा के भीतर जरूर एक गुस्सा बना रहता था. समझ में नहीं आता कि उन्हें किससे या किस-किस से बदला लेना था. इसी से उनकी भाषा में आक्रामकता हमेशा बनी रही. नामवर सिंह में भी यह आक्रामकता है, बिना किसी पर आक्रमण किए वे कुछ बोल नहीं सकते. रामविलास शर्मा अपने देश पर शर्मिदा नहीं थे, उसकी कमियां उजागर करने में भी वे दूसरों से आगे थे. ‘जमाने से दो-दो हाथ’ किताब नामवर सिंह की है, पर यह लागू रामविलास पर होती है.

नामवर सिंह के अंतर्विरोध दो स्रोतों से आते हैं. पहला कारण सत्य की अनवरत तलाश है. नामवर सिंह किसी एक मंजिल पर पहुंच कर बैठ जाने वाले आदमी नहीं हैं. उनका अध्ययन कभी रु कता नहीं है और उनका चिंतन कभी थकता नहीं है. चीजों को नए-नए कोण से देखने की उनकी दुर्दम्य आदत है. जैसे कोई लेखक जान-बूझ कर अपने को रिपीट नहीं कर सकता, वैसे ही नामवर जी अपनी किसी स्थापना को दुहरा नहीं सकते. इससे बहुत-से लोगों को आभास होता है कि नामवर सिंह अंतर्विरोध से ग्रस्त हैं. कई बार वे अपने कहे का प्रायश्चित भी करते हैं और अपने कहे को सुधार लेते हैं. यह भी लोगों को अखरता है. ऐसे लोगों को महात्मा गांधी की इस बात की याद दिलाना आवश्यक है कि अगर मेरे दो वक्तव्यों में अंतर्विरोध प्रतीत होता है, तो मेरे बाद वाले वक्तव्य को प्रामाणिक माना जाए.

नामवर सिंह के वास्तविक अंतर्विरोध उनके साहित्यिक और निजी व्यक्तित्व में हैं. साहित्यिक स्तर पर वे किसी के साथ कोई समझौता नहीं करते. अपने साथ भी नहीं. जो सत्य लगता है, वही बोलते हैं. भले ही वह सत्य बाद में बदल जाए. लेकिन निजी जीवन में सत्ता से नजदीकी उनकी एक ऐसी कमजोरी है, जो समझे जाने की मांग करती है. बहुत-से लोग इसका स्रोत उनकी शुरु आती अभावग्रस्तता और बाद की लंबी बेरोजगारी में देखते हैं (यही वह समय है जब उन्होंने सब से ज्यादा और अच्छा लिखा).

एक प्रथम दर्जे की प्रतिभा को समाज में उचित स्थान न मिले, तो उसके मन में गांठ पड़ना स्वाभाविक है. लेकिन मैं यह समझने में असमर्थ हूं कि बाद में उन्हें जितना सम्मान मिला, जितने पद मिले, उसके बाद भी उनमें वह संतुलन क्यों नहीं आ पाया जो रामचंद्र शुक्ल और हजारी प्रसाद द्विवेदी की रचनाओं और व्यक्तित्व में दिखाई पड़ता है. फिर भी नामवर अपने आप से हार नहीं मानते. वे किसी के कहने पर भाजपा-सेवित कार्यक्रम में पहुंच जाते हैं, तो भरी सभा में ‘इनकी छाती पर मूंग दलने के लिए दस वर्ष और जीने का संकल्प’ भी सुना देते हैं.

नामवर सिंह नब्बे वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं. वे पूर्णत: नीरोग और स्वस्थ हैं. यह हम सब के लिए हर्ष और उत्सव का अवसर है. कुत्सा फैला कर हमें वातावरण को गंदला नहीं करना चाहिए.



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