ऑनलाइन कंपनियां और छिनते रोजगार

Last Updated 28 Jul 2016 04:20:23 AM IST

ऑनलाइन खरीदारी के ई-बाजार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. इसकी ताजा मिसाल ब्रांडेड कपड़ों की ऑनलाइन कंपनी-जबॉन्ग का एक अन्य कंपनी- मिंत्रा के हाथों बिक जाना है.


ऑनलाइन कंपनियां और छिनते रोजगार

जबॉन्ग को अपनी स्थापना के कुछ अरसे बाद से ही भारी-भरकम घाटा हो रहा था, इसीलिए यह अधिग्रहण कोई ज्यादा आश्चर्य नहीं जगाता. बल्कि माना जा रहा है कि 70 से 75 हजार करोड़ रु पये के आकार वाले भारतीय ई-बाजार में अभी कुछ और अधिग्रहण व उठापटक वाली घटनाएं होंगी. बाजार में कंपनियों का बिक जाना कारोबारी कायदों से कोई बड़ी बात नहीं है. समस्या उन अनहोनी की है, जो इस कारण युवाओं के छिनते रोजगार के रूप में सामने आ रही है.

पिछले कुछ वर्षों में ई-कॉमर्स के फैलते कारोबार की सबसे ज्यादा चर्चा इस रूप में हुई है कि इस उद्योग ने हजारों युवाओं को डिलीवरी ब्वॉय से लेकर आईटी इंजीनियर और मैनेजर जैसे शानदार रोजगार दिए हैं. इन कंपनियों में युवा प्रतिभाओं की इतनी ज्यादा मांग थी कि आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों के कैंपस प्लेसमेंट में ई-कॉमर्स कंपनियां पहले दिन टैलेंट अपने यहां खींचकर ले जा रही थीं.

लेकिन हाल के कुछ वाकयों को देखने से पता चलता है कि इन्हीं कंपनियों और आईआईटी-आईआईएम जैसे संस्थानों के बीच नौकरियों को ऐसी खींचतान हुई है, जिसने रोजगार के इस चमकदार विकल्प की कलई खोलकर रख दी है और यह विचार करने को मजबूर किया है कि, जिन कंपनियों की बदौलत हमारा देश रोजगार से लेकर अर्थव्यवस्था तक के मोर्चे पर ऊंची उड़ान भरने के ख्वाब देखने लगा था, कहीं उनकी बुनियाद बेहद खोखली तो नहीं है.

उल्लेखनीय है कि कुछ ही दिन पहले इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की प्लेसमेंट कमेटी (एआईपीसी) ने आईआईटी के छात्रों को नौकरी का ऑफर लेटर देकर उन्हें वापस लेने वाली स्टार्टअप समेत करीब डेढ़ दर्जन कंपनियों को काली सूची में डालकर अपनी ओर से एक चेतावनी जारी की है कि भविष्य में वे युवाओं से ऐसा भद्दा मजाक न करें. इनमें ताजा वाकया बेंगलुरु  के ऑनलाइन बजट होटल्स और होमस्टे एग्रीगेटर के रूप में काम करने वाली स्टार्टअप कंपनी-स्टेजिला है, जिसने आईआईटी खड़गपुर के 9 छात्रों को दिए गए नियुक्ति पत्र वापस ले लिए.

इस घटना के बाद एआईपीसी ने इस कंपनी को प्लेसमेंट से बैन करने का संकेत दिया है. कह  सकते हैं कि यह तो अभी इस किस्से की शुरुआत है; क्योंकि जैसे-जैसे स्टार्टअप ऑनलाइन कंपनियों को जमीनी हकीकत का अहसास होगा और बाजार के कायदों और चुनौतियों के चलते उन्हें कड़ी प्रतिस्पर्धा और नाकामियों का सामना करना पड़ेगा, वे मोटे पैकेज देकर नामी संस्थानों की प्रतिभाओं को अपने यहां रखने से परहेज करने लगेंगी. यह मामला अभी कहां तक पहुंचेगा, कहा नहीं जा सकता लेकिन इतना तय है कि ताजा घटनाओं ने इस बारे में एक नजीर सामने रख दी है कि नामी संस्थानों और नई उभरी ई-कॉमर्स व आईटी कंपनियों की वजह से कैसी-कैसी समस्याएं सामने आ सकती हैं.

लगभग हर तरह के इलेक्ट्रॉनिक सामान बेचने वाली कंपनी फ्लिपकार्ट, हेल्थकेयर स्टार्टअप पोर्टयिा और ग्रासरी पोर्टल पेपरटेप के अलावा एलएंडटी इंफोटेक जैसी कई कंपनियों ने नामी संस्थानों से डिग्री हासिल कर चुके युवाओं को कैंपस प्लेसमेंट के जरिये चुना था और जिन्हें बाकायदा ऑफर लेटर दिए थे, उन्हें इन कंपनियों ने टरकाना शुरू कर दिया. कुछ कंपनियों में तो प्लेसमेंट के दो साल बाद भी नौजवान सिर्फ कागज पर नौकरी में थे, क्योंकि कंपनी में उनकी नियुक्ति या तैनाती की तारीख आगे खिसकती जा रही थी. कुछ कंपनियों ने तो कैंपस सलेक्शन में चुने युवाओं को दोबारा सरप्राइज टेस्ट देने को कहा और उसमें फेल घोषित कर उनका जॉब ऑफर ही रद कर दिया.

कुछ ने थोड़ा लिहाज करते हुए कहा कि वे चुने गए युवाओं को छह महीने बाद नौकरी दे पाएंगी, फिलहाल मुआवजे के तौर पर वे युवा डेढ़ लाख रुपये ले लें. तय है कि ऑनलाइन शॉपिंग के उजाले के पीछे कई तस्वीरें गहरे अंधेरे की भी हैं, जो इनके भविष्य को भारी खतरे में दिखा रही हैं. खुले बाजार वाली अर्थव्यवस्था में सरकारों की तरफ से इस कारोबार में कूदने की गुंजाइश जरा कम ही बनती है, पर जब इस तस्वीर में हजारों-लाखों नौकरियों के डूबने का खतरा भी निहित हो, तो यह उम्मीद बेमानी नहीं है कि इनके नियमन के बारे में सरकारों को सोचना शुरू कर देना चाहिए. सरकार को ई-कॉमर्स कंपनियों की न सही, लेकिन युवाओं के रोजगार की चिंता को करनी ही चाहिए.

अभिषेक कुमार
लेखक


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