टू दि प्वाइंट : महाभारत का विवादित बयान
कुछ काम बहुत पहले इसलिए हो गए कि तब टीवी चैनल नहीं थे. पुराने वक्तों में कुछ रिजल्ट इसलिए आ गए कि तब टीवी चैनल नहीं थे.
आलोक पुराणिक |
अब ना हो पाते, वो काम. महाभारत की कथा के अनुसार कौरव पक्ष के महारथी द्रोणाचार्य को मारने के लिए एक खास युक्ति अपनायी गई.
युक्ति यह थी कि अत्थामा नामक हाथी को मारके भीष्म पितामह के सामने धर्मराज युद्धिष्ठर ने बयान दिया कि अत्थामा मारा गया है, इसके बाद बहुत धीमे अंदाज में कहा गया-हाथी मारा गया है.
अत्थामा एक हाथी का नाम था और द्रोणाचार्य के बेटे का भी. द्रोणाचार्य समझे कि उनका बेटा अत्थामा मारा गया और वह दुखी होकर निस्तेज हो गए, फिर उन्हें मारना आसान हो गया. अब कुछ यूं होता-तमाम टीवी चैनलों पर हेडलाइन चलती-युद्धिष्ठिर का विवादित बयान, पैनल डिस्कशन यूं चलता-
कौरव प्रवक्ता-पांडवों ने हमेशा धोखा दिया है, हाथी को मारकर अत्थामा चिल्ला कर द्रोणाचार्य का वध हुआ है. युद्धिष्ठिर धर्मराज पद से इस्तीफा दें.
पांडव प्रवक्ता-झूठ नहीं बोला है, धर्मराज ने. हाथी मरा है, अत्थामा नाम का. यह बात कही गई थी कि हाथी मरा है, कौरव सुन ना पाएं, तो कोई क्या करे?
पशु अधिकार प्रवक्ता-गलत बात है, हाथी को मारकर पांडवों ने पशु-अधिकारों का हनन किया है. हाथी अधिकार समिति इसका कड़ा विरोध करती है.
कौरव प्रवक्ता-पांडव हमेशा ही फाड्र रहे हैं. हाथी का नाम अत्थामा से जोड़ने की जरूरत क्या थी? अ यानी घोड़ा, पांडव हाथी को घोड़े से जोड़ ही क्यों रहे थे? पांडव जवाब दें, और युद्धिष्ठिर इस्तीफा दें.
पांडव प्रवक्ता-कौरव अपनी आसन्न हार देखकर परेशान हो गए हैं. इसलिए अंड बंड बात कर रहे हैं. हमारा हाथी, हमारा घोड़ा, जो चाहे जिसे जैसा नाम दें.
पशु अधिकार प्रवक्ता-नहीं ऐसा नहीं हो सकता है, हाथी हाथी है, घोड़ा घोड़ा है. पशु अधिकार समिति हाथी और घोड़े की मिक्सिंग का कड़ा विरोध करती है. सारे प्रवक्ता एक दूसरे को फाड्र कह रहे हैं. उधर, द्रोणाचार्यजी पूछ रहे हैं-भई तुम लोगों का फाइनल हो गया हो तो मुझे मरा मान लिया जाए क्या. ना द्रोणाचार्यजी ना, कुछ भी फाइनल ना हुआ, ना ही हो पाएगा.
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