महात्मा गांधी: हत्या का सच आए सामने

Last Updated 25 Jul 2016 05:30:31 AM IST

यह साफ हो गया है कि राहुल गांधी को उच्चतम न्यायालय से राहत मिलने की उम्मीद नहीं है.


महात्मा गांधी की हत्या का सच सामने आए

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का आरोप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगाने के मामले में उच्चतम न्यायालय का मंतव्य स्पष्ट है. राहुल गांधी या तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से क्षमा याचना करें या आपराधिक मानहानि मुकदमा का सामना करें.

उच्चतम न्यायालय में राहुल अपने ऊपर कायम मुकदमे को खारिज करने की अपील लेकर पिछले साल मई में ही गए थे. जाहिर है, न्यायालय ने उनके पास विकल्प सीमित कर दिया है. चूंकि कांग्रेस ने कह दिया है कि राहुल क्षमा याचना नहीं करेंगे तो साफ है कि वे मुकदमे में अपना तर्क रखेंगे. हालांकि उच्चतम न्यायालय ने अभी मामला खारिज नहीं किया है, उसकी सुनवाई अभी होनी है, पर इतना स्पष्ट रुख अपनाने के बाद वह आपराधिक मानहानि के मुकदमे को खारिज कर देगा, इसकी कोई संभावना नहीं दिखती. तो साफ है कि राहुल गांधी को महाराष्ट्र के भिंवडी में अपने बयान पर आपराधिक मानहानि का सामना करना पड़ेगा.

दरअसल, राहुल ने महाराष्ट्र के ठाणे जिले में सोनाले की एक चुनावी रैली में 6 मार्च 2015 को कहा था कि आरएसएस के लोगों ने गांधी जी की हत्या की और आज उनके लोग गांधीजी की बात करते हैं. इसके खिलाफ भिवंडी (महाराष्ट्र) में संघ कार्यकर्ता राजेश महादेव कुंटे ने आपराधिक मानहानि का मुकदमा दर्ज किया है. पिछले वर्ष मई से वहां सुनवाई चल रही है.

ध्यान रखिए उच्च्तम न्यायालय ने पहले भी उनके सामने खेद प्रकट करके मुकदमा खत्म करने का विकल्प दिया था. पहले भी उन्होंने स्वीकार नहीं किया. अब भी वे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि राहुल गांधी मुकदमे में अपना पक्ष रखेंगे, लेकिन संघ से क्षमा नहीं मागेंगे. अब राहुल गांधी को या तो साबित करना होगा कि वाकई गांधी जी की हत्या करवाने वाला संगठन संघ ही था या फिर उनको सजा भुगतनी होगी. गांधी जी की हत्या के बाद यह पहली बार होगा जब आरएसएस पर आरोप लगाने के कारण इतने बड़े नेता को मुकदमे का सामना करना होगा. इस नाते पूरे देश का ध्यान इस मुकदमे पर होगा.

 
महात्मा गांधी की हत्या देश के लिए बड़ी त्रासदी थी और उसे याद करके हर विवेकशील भारतीय का सिर शर्म से झुक जाता है. जिस व्यक्ति ने अपना सब कुछ देश के लिए लगा दिया, उसका प्रतिदान उनको हत्या के रूप में मिला. यह कृतघ्नता हमें हमेशा सालता है. गांधी जी कुछ वर्ष और जीवित होते तो देश की दिशा और दशा दूसरी होती. हम यहां इसमें विस्तार से नहीं जा सकते. किंतु उस दुखद घटना का एक दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि संघ परिवार को लांछित करने के लिए इसका लगातार राजनीतिकरण किया जाता रहा है. कोई नेता बिना सोचे बोल देता है कि आरएसएस ने गांधी जी को मारा. ये क्या देश सेवा करेंगे ये तो गांधी के हत्यारे हैं. राहुल गांधी ने भी यही कहा. वे नाथूराम गोडसे को केवल संघ का कार्यकर्ता ही नहीं बताते, यह भी कहते हैं कि इसके पीछे संघ की योजना थी, कुछ कहते हैं कि संघ ने गांधी जी के खिलाफ ऐसा वातावरण बनाया, जिससे नाथूराम गोडसे ने प्रभावित होकर उनकी हत्या कर दी. जो यह नहीं कहते वे भी कहते हैं कि संघ ने उस समय पूरे देश में सांप्रदायिक माहौल कायम किया और उसी का परिणाम था गांधी जी की हत्या. यानी किसी-न-किसी तरह गांधी जी की हत्या में प्रत्यक्ष या परोक्ष संघ का हाथ साबित करने की कोशिश की जाती है.

यह सच नहीं है. गांधी पर हत्या पर गठित आयोगों ने या नाथूराम गोडसे को फांसी की सजा देते समय उच्चतम न्यायालय ने नहीं माना कि इसमें किसी तरह संघ का हाथ है. अगर गांधी जी की हत्या में संघ का हाथ साबित हो गया होता तो उस पर लगा प्रतिबंध नहीं हटता. आरएसएस में सदस्यता नहीं होती, जिससे आप जान सकें कि कौन उसका सदस्य है और कौन नहीं? हो सकता है, नाथूराम गोडसे संघ की शाखा में गया हो. लेकिन संघ के बारे में भी उसकी मान्यता थी कि यह संगठन हिंदुत्व की बात तो करता है. मगर हिंदुत्व पर उसे जितना कट्टर और आक्रामक होना चाहिए नहीं होता. यह तथ्य सार्वजनिक है.

नाथूराम गोडसे हिंदू महासभा का सदस्य था और उसने उस संगठन को भी गांधी जी को शहीद करने के पहले छोड़ दिया था. अपनी कट्टरपंथी सोच के कारण वह हिंदू महासभा से भी नाराज हो गया. वह विनायक दामोदमर सावरकर को पत्र लिखकर उनकी आलोचना करता था. सावरकर के बारे में गोडसे इतनी निंदात्मक टिप्पणियां करता था, जितने उनके विरोधी भी नहीं करते थे. वास्तव में गांधी जी को मारने के पहले उसने हिंदू महासभा भी छोड़ दी थी. इसी तथ्य के आधार पर हिंदू महासभा के नेता सावरकर को जेल से मुक्ति मिली.

तो एक ओर ये तथ्य हैं. किंतु दूसरी ओर नेताओं का बयान हैं, जिससे हमेशा गलतफहमी पैदा होती है. संघ से वैचारिक मतभेद रखना, उसका विरोध करना, उसके खिलाफ बोलना एक लोकतांत्रिक समाज में स्वाभाविक प्रक्रिया माना जाएगा. किंतु इस तरह के आरोप लगाना जिसके पक्ष में कोई तथ्य है ही नहीं उस संगठन को बदनाम करने या दूसरे शब्दों में कहें तो उसकी छवि खराब करने की श्रेणी में आता है.

कई बार बातचीत में आम लोग भी बोल देते हैं कि अरे संघ ने ही तो गांधी जी को मारा. जाहिर है, अब मुकदमा चलता है तो उस समय की समितियों की जांच रिपोर्ट, पुलिस की छानबीन, आरोप पत्र, न्यायालय की टिप्पणियां, नाथूराम गोडसे के बयान, गवाहों के बयान..एक बार फिर से खंगाले जाएंगे और लोगों के सामने पूरा सच आ सकता है. राहुल गांधी के साथ न्यायालय क्या व्यवहार करेगा, यह अलग बात है. लेकिन यह अच्छा ही है कि एक बार मुकदमे के माध्यम से पूरा सच फिर देश के सामने आ जाए और दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए. उच्चतम न्यायालय ने अपनी टिप्पणियों में कई बातें कही है, जिससे पता चलता है कि उसने भी गांधी जी की हत्या के तथ्यों पर गौर किया है. जो भी हो हम उम्मीद करेंगे कि मुकदमे के माध्यम से गांधी हत्या का पूरा सच हमारे सामने होगा और आरोपों का सिलसिला स्थायी रूप से रुक सकेगा.

 

 

अवधेश कुमार
पत्रकार एवं लेखक


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