समाज : गोरक्षकों को सौंपिए समूचा दायित्व

Last Updated 24 Jul 2016 06:53:09 AM IST

गुजरात में चार दलित युवकों की बर्बर पिटाई के वीडियो दृश्य जिसने भी देखे होंगे अपने दिमाग से निकाल नहीं पा रहा होगा.


समाज : गोरक्षकों को सौंपिए समूचा दायित्व

मैं तो नहीं निकाल पा रहा हूं. मुझे बरबस इस्लामिक इस्टेट की बर्बरता याद आ गई. ये चार अधनंगे युवक गाड़ी पर हाथ टिकाए झुके हुए थे और कथित गौरक्षा दल के गुंडे इनकी नंगी पीठ, इनके पैरों और नितंबों पर बेरहमी से डंडे बरसा रहे थे. इन गुंडों के अनुसार इन्होंने पवित्र गोवंश के किसी पवित्र प्राणी की हत्या करने का अक्षम्य, जघन्य अपराध किया था, जिसकी सजा इन्हें कोई कानून नहीं बल्कि हर कानून को अपने हाथ में ले लेने वाली गुंडई ही दे सकती थी.

सच्चाई यह थी कि इन युवकों को मृत पशु की खाल उतारने के लिए बाकायदा बुलाया गया था और यह काम उन्होंने अपने पेशे के अनुसार किया था, लेकिन गुंडों ने उनकी कोई दलील नहीं सुनी और उन्हें तब तक पीटते रहे जब तक वे अधमरे न हो गए. बाद में विरोधस्वरूप कई दलित युवकों द्वारा आत्महत्या करने की कोशिश और दलित समूहों की व्यापक आक्रोशभरी प्रतिक्रिया के चलते जब यह मामला सड़क से संसद तक गूंजा तो गुंडों को भले गिरफ्तार कर लिया गया हो और भले ही पीड़ित युवकों के लिए सरकारी मुआवजा घोषित कर दिया गया हो लेकिन इससे वह जमीनी हकीकत नहीं बदलती जो इस समूची घटना में दिखाई देती है.

गोवंश का मसला हिंदू आस्था का मसला है और  आस्था की दीवार इतनी मजबूत होती है कि न तो इसे कोई वैज्ञानिक विवेक भेद सकता है और न कोई अनुभवगत समझदारी. फिर यह आस्था चाहे किसी की भी और कितनी भी विरूप या विनाशक हो. आस्था और गोवंश के रिश्ते के दो व्यापक तौर पर दर्शनीय पहलू हैं. एक तो यह कि आस्था का सुरक्षा कवच पहने यह गोवंश हाट-बाजार, गली-मुहल्ले, सड़क-चौराहे हर जगह स्वच्छंद विचरता है. जहां उसे अपने मुंह के मतलब की कोई चीज दिखाई देती है वहां वह मुंह मारने की सफल-असफल कोशिश करता है. प्राय:लोगों की दुत्कार और डंडे खाकर इधर से उधर चल देता है और जब उधर से दुत्कार और डंडे मिलते हैं तो पुन: इधर का रुख कर लेता है.

गोवंश की मातृ सत्ता के बावजूद इनकी मार्मिक और दयनीय दशा के विचलित करने वाले दृश्य हर कहीं देखे जा सकते हैं. एक ललछोहीं आंखों वाली धवल सुंदर छोटी सी बछिया तुलसी पौधाधारी एक गृहणी के सब्जी के झोले पर मुंह मारने पर डंडों की बौछार सहती है. एक मुख्य मार्ग पर चहल-कदमी करती गऊ माता ट्रक से घायल होकर कई दिन तक वैसे ही पड़े-पड़े दम तोड़ देती है. आवारा सांडों द्वारा लोगों को घायल कर डालने की घटनाएं प्राय: दिखाई-सुनाई देती हैं. हाल मैंने उत्तर प्रदेश के खीरी शहर की एक घटना अखबार में पढ़ी थी. एक सांड के हमले में एक पुजारी की मौत हो गई थी. पुजारी के भक्तों ने सांड को दंड देने के लिए इसके चारों पैर बांधकर और इसके सींग तोड़कर घटना स्थल पर छोड़ दिया था. सींग के घाव से अधिक खून निकल जाने के कारण अगली सुबह सांड की मौत हो गई. लोगों ने चुपचाप इसका अंतिम संस्कार कर दिया. कल्पना करिए कि यह कांड किसी दंलित या मुसलमान के हाथों हुआ होता तो कैसा बवाल पैदा हुआ होता.

क्षुद्र राजनीति ने गाय-बैल के मसले को इतना संवेदनशील बना दिया है कि गोकुशी के नाम पर कहीं भी, कभी भी, कुछ भी हो सकता है. सांप्रदायिक दंगा भड़क सकता है, जातीय दंगा हो सकता है, दलित विक्षोभ पैदा हो सकता है, जैसा कि गुजरात में हुआ है, कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी हो सकती है, लोगों की जानें जा सकती हैं, जानें संकट में पड़ सकती हैं. ऐसी सूरत में मेरा सुझाव होगा कि सरकार को गोरक्षा कानून में तब्दीलियां करके इसे अत्यधिक कठोर बना देना चाहिए. गोवंश की रक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह गोरक्षकों को दे दी जानी चाहिए, स्वयंसेवकीय ढंग से नहीं बल्कि विधिवत. पंचायत से लेकर जिला स्तर तक गोवंश की गणना करके हर गाय-बैल को उसी तरह से चिह्नित कर दिया जाना चाहिए जैसे कि देश के लोगों को आधार कार्ड बनाकर किया जा रहा है. हर गाय-बछड़े का भी आधार कार्ड होना चाहिए. उस आधार कार्ड पर स्पष्ट उल्लिखित होना चाहिए कि इस गाय-बछड़े या बैल का रखवाला कौन-सा गोरक्षक व्यक्ति, समूह या संस्था है.

गोवंश के जन्म से लेकर उनकी मृत्यु तक के सारे दायित्व इन्हें सौंप दिए जाने चाहिए. फिर उनका दायित्व होगा कि गोवंश का कोई भी प्राणी उनकी सुरक्षा निगरानी से बाहर न हो पाए. उनकी देखभाल और खिलाने-पिलाने से लेकर उनकी मृत्यु पर उनके अंतिम संस्कार तक की जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ इन्हीं गोरक्षकों की होनी चाहिए. गोरक्षकों के अलावा कोई भी अन्य व्यक्ति न तो गोवंश के प्राणियों का उनके जीवित रहते स्पर्श करे न उनकी मृत्यु के पश्चात. वे ही मृत गाय-बैल को उठाकर उसके समाधि स्थल तक ले जाएं.

विधि विधान से अंतिम संस्कार करें. दलितों को मेरी सलाह होगी कि कुछ भी करें, लेकिन गोवंश के किसी भी मृत प्राणी का स्पर्श कदापि न करें, चाहे इसके लिए उन्हें  आर्थिक हानि उठानी पड़े या अपना पेशा बदलना पड़े.
 इस व्यवस्था के साथ कड़े दंड की व्यवस्था भी जुड़ी होनी चाहिए. जिस तरह से गोवंश की हत्या करने पर किसी भी व्यक्ति को सजा का प्रावधान है, उसी तरह से सजा का प्रावधान उन लोगों के लिए भी होना चाहिए जिन पर गोरक्षा की जिम्मेदारी हो मगर वे अपनी इस जिम्मेदारी से बचने की कोशिश करते हों. इधर-उधर मुंह मारते वक्त लोगों की दुत्कार या डंडे खाता हुआ देखा जाए या किसी दुर्घटना का कारण बनते या खुद दुर्घटना का शिकार होते हुए देखा जाए तो ऐसी बातों के लिए तत्काल उस व्यक्ति, संस्था या दल के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए, जिसका दायित्व संबंधित गाय-बैल की रक्षा का हो.

 यह दोहरा खेल नहीं चल सकता कि आप अपने पूज्य गाय-बैलों के रख-रखाव की समुचित व्यवस्था भी न करें और अगर उनके साथ कोई दुर्घटना घट जाए या कोई उन्हें शिकार बना ले तो आप लट्ठ-भाले लेकर मैदान में उतर आएं. अगर कानूनन गोरक्षकों की समुचित जिम्मेदारी तय कर दी जाती है,  तो गोवंश का भी भला होगा और गोवंश के कारण होने वाले उपद्रवों से भी निजात मिलेगी. इसकी फौरी जरूरत लगभग हर पखवाड़े होने वाली घटनाएं बता रही हैं. उम्मीद है कि सरकार भी इसकी जरूरत शिद्दत से समझ रही होगी.

विभांशु दिव्याल
लेखक


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