परत-दर-परत : आनंद भी शासन के जिम्मे

Last Updated 24 Jul 2016 06:23:58 AM IST

यह स्पष्ट नहीं है कि यह विभाग किस मंत्रालय के अंतर्गत काम देगा. यह तय करना कठिन भी होगा, क्योंकि आनंद कोई ऐसी चीज नहीं, जिसे वित्त, शिक्षा या जन संपर्क विभाग के अधीन रखा जा सके.


राजकिशोर

सब को मिला कर आनंद का वातावरण बनता है न कि किसी एक की श्री-वृद्धि से. शायद इसीलिए मुख्यमंत्री ने यह विभाग अपने पास रखा है. जाहिर है, राज्य का मुख्यमंत्री राज्य के लोगों के लिए जितने आनंद का प्रबंध कर सकता है, वह कोई अन्य मंत्री सोच भी नहीं सकता.

कोई प्रस्ताव कर सकता है कि बेहतर होता यदि आनंद विभाग संस्कृति मंत्रालय को सौंप दिया जाता, जिसके अंतर्गत भारत भवन, साहित्य कला परिषद, आदिवासी कला केंद्र आदि चलते हैं. इन सभी संस्थाओं का लक्ष्य साहित्य, नाटक, संगीत, कला इत्यादि के माध्यम से गुणी जनों को आनंद देना है. ये वे जगहें जहां आ कर लोग स्वत: आनंदित होते हैं, जो आनंदित नहीं हो पाते, यह उनकी विफलता है, क्योंकि राज्य ने तो अपनी ओर से भरपूर कोशिश की थी.

लेकिन मुख्यमंत्री जिस आनंद विभाग की सदारत करेंगे, वह दूसरी किस्म का आनंद है. यह किस चीज से पैदा होता है, यह नहीं बताया जा सकेगा. वास्तव में, यह पूरी परिस्थिति से उपजता है. जैसे कहा जा सकता है कि पंजाब के लोग बिहार के लोगों से ज्यादा खुशहाल हैं. पंजाब की यह खुशहाली वहां के लोगों की संपन्नता, सामाजिक उदारवाद, मस्ती और चिंताहीनता उत्पन्न हुई है. आप ठीक समझे, यह विभाग आनंद का नहीं, खुशहाली का है. अंतरराष्ट्रीय शब्दावली में यह ‘हैप्पीनेस’ है, जिसका दरिद्र अनुवाद आनंद किया गया है. संस्कृत से हिन्दी में आया हुआ आनंद शब्द किस मन:स्थिति को व्यक्त करता है, इसकी ओर संकेत करने के लिए दो शब्द काफी हैं, ब्रह्मानंद और काव्यानंद.

भारतीय दशर्न में जिसे आनंद कहा गया है, उसके लिए संसाधन नहीं, साधना चाहिए-कोई साधक ही इस ऊंचाई पर पहुंच सकता है, ले. इसके लिए मध्य प्रदेश के कैबिनेट ने उदारतापूर्वक व्यवस्था की है. प्रस्तावित तंत्र के लिए कुल 3 करोड़ 60 लाख और अस्सी हजार रु पये का बजट प्रस्तावित है.  मध्य प्रदेश सरकार की इस खब्त का संबंध विश्व हैप्पीनेस रिपोर्ट से है, तो कुछ वर्षो से प्रकाशित की जा रही है. रिपोर्ट यह बताती है कि किस देश के लोग कितने हैप्पी हैं. कुल मानदंड दस का रखा गया है, जिसमें 2016 में पूरे विश्व का औसत 5.1 प्रतिशत है. यानी दुनिया के लगभग आधे लोग ही खुश या खुशहाल हैं. ये लोग कहां रहते हैं? 2016 की विश्व हैप्पीनेस रिपोर्ट के अनुसार, डेनमार्क के लोग सब से ज्यादा हैप्पी  हैं. उन्हें 7.526 अंक मिले हैं. ग्यारहवां देश संयुक्त राज्य अमेरिका है और हंसिएगा मत, जापान, जिसे आजकल हम अपने लिए एक आदर्श देश मान रहे हैं, का स्थान 53 वां है.

आप अधीर हो रहे होंगे कि मैं यह क्यों नहीं बता रहा हूं कि इस इनडेक्स में भारत कहां पर है, यानी यहां के लोग कितने खुशहाल हैं. तो सुनिए, भारत का दर्जा 118वां है-सोमालिया (76वां), चीन (83वां), पाकिस्तान (92वां), ईरान (105वां), फिलीस्तीन (108वां) और बांग्लादेश (110वां) से नीचे. जिस सोमालिया में कुछ वर्ष पहले हर साल अकाल पड़ा करता था और लाखों लोगों की अकालमृत्यु हो जाती थी, वहां के लोग भी हम से ज्यादा सुखी हैं. पिछले साल के मुकाबले भारत एक दर्जा नीचे खिसक आया है. वास्तव में, भारत उन दस देशों में है, जहां हैप्पीनेस का स्तर लगातार गिर रहा है. इन दस देशों में  वेनेजुएला, सऊदी अरबिया, इजिप्ट, यमन और बोत्सवाना शामिल हैं.

इस समाचार से प्रसन्न होने की सोच रहे लोगों के लिए विश्व हैप्पीनेस रिपोर्ट में हर साल सब से ऊपर रहते हैं, उनमें से कहीं भी हैप्पीनेस मंत्रालय या विभाग नहीं है. यह मंत्रालय दुनिया के सिर्फ  तीन देशों में है-भूटान, दुबई और यूएई. खबर है कि भारत सरकार भी आनंद मंत्रालय खोलने की सोच रही है. मध्य प्रदेश की तरह, शायद वह भी आध्यात्मिक आनंद, सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा आदि की बात करे.

हमारे मनीषियों ने बताया है कि आनंद खोजे से नहीं मिलता  वह तो हमारे भीतर छिपा हुआ है. मन चंगा तो कठौती में गंगा. यह बात गलत नहीं है, लेकिन जो लोग हैप्पीनेस आंदोलन चला रहे हैं, उनकी नजर दूसरी चीजों पर है जो सांसारिक परिस्थितियों से उपजती हैं, जैसे सकल राष्ट्रीय उत्पाद (कोई देश साल भर में कितना पैदा करता है, नागरिक स्वाधीनता, मानव अधिकार, वहां विषमता कितनी कम है, सामाजिक सपोर्ट कितना है, राज्य द्वारा कितनी कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं, अल्पसंख्यकों के प्रति राज्य और समाज का नजरिया कैसा है. कहना न होगा, ये चीजें अकेले आनंद विभाग पैदा नहीं कर सकता, यह तो पूरी सरकार के परफार्मेंस पर निर्भर है.



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