विलय पर भारी छवि

Last Updated 01 Jul 2016 04:25:20 AM IST

अमूमन राजनेता अपने सकारात्मक पक्षों को लेकर बहुत कम खबरों में रहते हैं. मीडिया भी इस मामले में थोड़ी कंजूसी बरतता है.


उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (फाइल फोटो)

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने साफगोई और दृढ़ता के साथ अंसारी बंधुओं को सपा से रुखसत कर दिया. हालांकि इसके एक-दो दिन पहले ही गाजे-बाजे के साथ सपा में शामिल हुए थे. अंसारी बंधुओं की पार्टी कौमी एकता दल (कौएद) का सपा में विलय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को रास नहीं आया और उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कहा, \'मुख्तार अंसारी का पार्टी में स्वागत नहीं किया जाएगा, \'हम ऐसे लोगों को पार्टी में नहीं चाहते\'.

यहां तक कि नाराज अखिलेश ने एक मंत्री को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया. संदेश साफ था, वह अपने विकासवादी छवि पर कोई आंच नहीं आने देना चाहते थे. यह जानते हुए कि उनके इस कदम से समाजवादी कुनबे में दरार और चौड़ी होगी, उन्होंने यह साहसिक कदम उठाया.

 सभी छोटे-बड़े दल अपने नफा-नुकसान का आकलन करते हुए, अपने समीकरण तलाशने में जुट गए हैं. इसी हलचल के बीच पूर्वाचल में बाहुबली हैसियत वाले मुख्तार अंसारी अपने भाई के साथ सपा में किसी तरह प्रवेश कर गए.

बकायदा अपनी पार्टी का विलय भी करा दिया. मगर पिक्चर तो बाकी थी. असल खेल विलय के बाद शुरू हुआ जब इस पर सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू हुआ. कौएद का पूर्वाचल के कुछ जिलों में अल्पसंख्यक समुदाय में अच्छा प्रभाव है. ये स्थिति उन्हें मोलभाव करने का मौका देती है. वैसे, विलय रद्द करने से जहां सियासी गलियारे में अखिलेश की छवि निखरी, वहीं इसने सपा कुनबे में चल रही कुलबुलाहट को भी सतह पर ला दिया.

मायावती सपा के शासनकाल को जोरदार ढंग से \'समाजवादी गुंडा राज\' कह कर उठाती रही हैं. लेकिन, राजनीतिक रूप से \'उत्तर के तमिलनाडु\' हो चुके, उप्र में आसान वापसी की उम्मीद कर रहीं बहनजी के लिए रास्ते इतने आसान भी नहीं होंगे. खुद को विकास पुरुष के तौर पर रखने की कोशिश में जुटे अखिलेश का यह रुख पार्टी के साथ प्रदेश के हित में भी है. सिर्फ एक चुनाव का नफा-नुकसान तौलकर अगर दल अपराधियों का राजनीतिक बहिष्कार शुरू कर दें, तो सच में उत्तर प्रदेश \'उत्तम प्रदेश\' बन जाएगा.

 

विशाल तिवारी
लेखक


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