असर सिर्फ सरकारी खर्च पर नहीं

Last Updated 30 Jun 2016 04:49:45 AM IST

सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें मंजूर हो गई हैं. यानी केंद्र सरकार से जुड़े करीब एक करोड़ कर्मचारियों और पेंशनरों की कमाई में औसतन 23.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो जाएगी.


असर सिर्फ सरकारी खर्च पर नहीं

न्यूनतम बढ़ोतरी 20 प्रतिशत और अधिकतम 25 प्रतिशत की होगी. 1 जनवरी, 2016 से वेतन वृद्धि लागू मानी जाएगी यानी एरियर भी देना होगा. कुल मिलाकर 2016-17 में करीब एक लाख आठ हजार करोड़ रुपये खर्च करनी पड़ेगी, इस वेतन बढोत्तरी की मद में. उद्योगों को बहुत उम्मीदें थी और हैं इस सातवें वेतन आयोग से. ऐसा माना जाता है कि एरियर का इस्तेमाल कर्मचारी कार, बाइक खरीदने करेंगे या उन इच्छाओं की पूर्ति के लिए, जो बरसों से एक मोटी रकम के अभाव में आगे सरका दी जाती थीं.

शेयर बाजार के रुख को देखें, तो साफ होता है कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों की तरह शेयर बाजार ने भी सातवें वेतन आयोग की मंजूरी का स्वागत किया है. 29 जून, 2016 को शेयर बाजार बंद होते वक्त ऊंचे ही बंद हुए. 29 जून, 2016 को मुंबई शेयर बाजार का सूचकांक-सेंसेक्स दशमलव 81 बिंदु उछलकर बंद हुआ यानी यह 26,740.39 बिंदुओं पर बंद हुआ 215.84 बिंदुओं की तेजी के साथ. उधर, नेशनल स्टाक एक्सचेंज का सूचकांक भी दशमलव 94 प्रतिशत उछला और 8204 पर बंद हुआ 76.15 बिंदु उछलकर. शेयर बाजार की तेजी का संकेत ये है कि भविष्य में सामान बना रही तमाम कंपनियों की सेल और मुनाफे में बढ़ोतरी होगी. उस उम्मीद को शेयर  बाजार अभी से सलाम कर रहा है. साफ है कि सिस्टम में जो एक लाख आठ हजार करोड़ रुपये आएंगे, उसका बड़ा हिस्सा कार, एयरकंडीशनर, बाइक की सेल में दिखेगा.

शेयर बाजार में एयरकंडीशनर कंपनी \'ब्लू स्टार\' का शेयर 29 जून को 3.73 प्रतिशत उछलकर 434.20 रुपये पर बंद हुआ. एक और एयरकंडीशनर कंपनी \'वोल्टास\' का शेयर 1.83 प्रतिशत बढ़कर बंद हुआ. देश की प्रमुख कार कंपनी \'मारुति सुजुकी\' का शेयर 1.29 प्रतिशत की बढोतरी के साथ बंद हुआ. महत्त्वपूर्ण बाइक कंपनी-हीरो मोटो कार्प का शेयर 29 जून को 4.51 प्रतिशत उछलकर बंद हुआ. यानी इन कंपनियों के उत्पादों एयरकंडीशनरों, कारों और बाइकों की बढ़ती मांग दिखाई दे रही है. कुल मिलाकर यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है. मांग आए, कहीं से भी आए.

सरकारी कर्मचारियों की जेब भरेगी, तो तमाम कारोबारियों की तिजोरियां भरने के इंतजाम होंगे. आइटमों की मांग बढ़ेगी, तो तमाम फैक्टरियों, संयंत्रों में ज्यादा निवेश, ज्यादा भर्तियां हो सकती हैं. रोजगार की वृद्धि से सत्तारूढ़ दल को राजनीतिक राहत मिल सकती है. बढ़ता हुआ वेतन अगर राजकोषीय घाटे पर लगातार बोझ बना, तो दिक्कत हो सकती है. हालांकि केंद्रीय वित्त मंत्री अरु ण जेटली आस्त कर चुके हैं कि संसाधनों की कोई कमी नहीं है. सातवें वेतन आयोग की जिम्मेदारी उठाने को सरकार तैयार है. पर रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन की चिंताएं कम ना हुई होंगी महंगाई को लेकर. एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम वर्तमान और भूतपूर्व सरकारी कर्मिंयों के पास आएगी, तो उसे लेकर ये लोग बाजार में जाएंगे. यानी बाजार में क्रय-क्षमता में इजाफा हो जाएगा. बाजार में क्रय क्षमता में इजाफे का परिणाम महंगाई होता है.



लोग ज्यादा आइटम मांग रहे हैं, ज्यादा आइटम हैं नहीं, या ज्यादा आइटम उस अनुपात में नहीं बढ़े, जिस अनुपात में क्रय-क्षमता बढ़ गई. तो स्वाभाविक परिणाम होगा महंगाई. महंगाई बढ़े, तो फिर रिजर्व बैंक के लिए ब्याज दरों में कमी के संकेत दे पाना मुश्किल हो जाता है. अगर आगामी दिनों में महंगाई बढ़ती दिखाई दी, तो फिर उद्योग जगत की इस मांग पर गौर किया जाना मुश्किल हो जाएगा कि ब्याज दरों में कटौती की जाए. कम-से-कम बीस परसेंट की बढ़ोतरी के साथ केंद्र सरकार की नौकरी बहुत ही आकषर्क होने की उम्मीद है. यह बड़ा मुद्दा हो जाता है कि सातवें वेतन आयोग की मंजूरी के बाद केंद्र सरकार में चपरासी पद के लिए भी वेतन 18000 रुपये का होगा. 18000 रुपये पर कई निजी स्कूल दिल्ली में अध्यापक रखते हैं. दिल्ली से बाहर तो इससे भी कम में अध्यापक रखे जाने के समाचार हैं. यानी चपरासी की सैलरी भी अगर मानक बनी, तो निजी क्षेत्र को देर-सबेर अपना स्तर बढ़ाने की सोचनी पड़ेगी. यह काम उनके लिए हमेशा कष्टकारी रहा है.

अध्ययनों से साफ होता रहता है कि निजी कारपोरेट सेक्टर के बढ़े मुनाफे हमेशा कर्मचारियों की बढ़ी सैलरी में नहीं दिखते. निजी क्षेत्र में सबकी सैलरी नहीं बढ़ती, चुनिंदा की बढ़ती है. सरकार इस मामले में समतावादी होती है, सबकी सैलरी बढ़ जाती है. काम करनेवाले चपरासी की और ना करनेवाले चपरासी भी भी. केंद्र सरकार की सैलरी बढ़ने के बाद राज्य सरकारों पर दबाव  पड़ता है कि वहां के कर्मिंयों की सेलरी भी बढ़ाई जाए. गरीब राज्यों की सरकारों को इसमें बहुत आफत आती है. केंद्र सरकार से इस मसले पर कई राज्य सरकारें सवाल-जवाब बवाल करती हैं.

पचास रुपये के कर्ज से डरकर जहां किसान आत्महत्या कर रहे हों, वहां चपरासी की 2 लाख 16000 रुपये की सैलरी का विरोध न भी हो, तो भी भारत की राजनीति और अर्थव्यवस्था के कई पेच खुलते हैं. खेतिहर की बात दूर की है, निजी उद्योग क्षेत्र में ही 18000 रुपये महीने कमाने के लिए किसी को भी सरकारी नौकरी के श्रम के मुकाबले बहुत ज्यादा श्रम करना होता है. पर सरकारी नौकरी सब को मिलती नहीं है, इसलिए यह अनायास नहीं है कि उत्तर भारत के कुछ इलाकों में सरकारी नौकरी मिलना यानी मोक्ष माना जाता है. अब तो इसे परम मुक्ति माना जाएगा. कुल मिलाकर सातवें वेतन आयोग ने सरकारी नौकरी को और अधिक आकर्षक बना दिया है पर साथ में यह भी जरूरी लगने लगा है कि इस तरह की आकर्षक नौकरियां अब सरकार के बाहर भी मिलें और बहुत ज्यादा तादाद में मिलें.

 

 

आलोक पुराणिक
लेखक


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