पारदर्शी दिशानिर्देश तो बना ही लीजिए

Last Updated 28 Jun 2016 05:34:50 AM IST

कुछ दिनों पूर्व सरकार ने देश की प्रत्यक्ष विदेशी नीति (एफडीआई) संबंधी नीति में आमूल-चूल परिवर्तन करने की घोषणा की है.


पारदर्शी दिशानिर्देश तो बना ही लीजिए

इसके तहत उड्डयन, हवाई पत्तन, प्रसारण कैरिज, रक्षा, निजी सुरक्षा एजेंसियों, भारत में पैदा एवं निर्मित खाद्य पदाथरे और सिंगल ब्रांड रिटेल क्षेत्र को एफडीआई की खुराक मिलना तय है. हाल में हुए विधानसभायी चुनावों के पश्चात सुधार प्रक्रियाओं में आई तेजी के तहत सिंगल ब्रांड खुदरा क्षेत्र के लिए खासी चर्चित आउटसोर्सिग नार्म्स में छूट देकर स्वत:अनुमति के जरिए अधिकांश क्षेत्रों को शत-प्रतिशत विदेशी निवेश के लिए खोलकर सरकार ने बड़ा फैसला किया है. माना जा सकता है कि टिम कुक का दौरा बेहद सफल रहा और जल्द ही हमें देश में पहला एप्पल स्टोर देखने को मिल सकता है.

दरअसल, भारत आज उस मुकाम पर खड़ा है, जहां उसे ढांचागत एवं सार्वजनिक हित के सुधार कार्यों के लिए खासे धन की दरकार है. तमाम सम स्थितियों के बावजूद हम आज भी सामाजिक एवं ढांचागत के साथ ही शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी सार्वजनिक सेवाओं में सुधार के लिहाज से काफी पीछे हैं. हमारी स्थिति इस मामले में विकासशील देशों से भी पिछड़ी हुई है. इस दृष्टि से हमें अर्थव्यव्था में बड़ा निवेश किए जाने की जरूरत है. इस प्रकार कहा जा सकता है कि यह सरकार का सराहनीय कदम है, जिसे अपरिहार्य और अनिवार्य करार दिया जा सकता है.

लेकिन इस घोषणा और इसके समय ने हममें से बहुतों को हैरत में भी डाल दिया है. आम तौर पर इस प्रकार के नीतिगत परिवर्तनों के साथ नियामक पर्वितन भी किए जाते हैं. न केवल इतना बल्कि पुराने नियमों में बदलावों के साथ ही आवश्यक दिशानिर्देश भी तैयार किए जाते हैं. लेकिन सरकार ने अपने इस बड़े फैसले से पूर्व आरबीआई गवर्नर को हटाए जाने के संकेत देकर पूंजी बाजार के प्रभावों को निष्क्रिय किया. साथ ही, घरेलू तथा वैश्विक अर्थव्यस्था को स्पष्ट संकेत दिया कि सरकार सुधार कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने को लेकर अपने वादों पर वास्तव में गंभीर है.

सरकार ने दे दिया था संकेत
सुषमा स्वराज ने जब प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर घोषणा की कि भारत ने करीब 56 बिलियन अमेरिकी डॉलर, जो वर्ष 2014 में हासिल एफडीआई से 43 प्रतिशत अधिक है, का एफडीआई हासिल किया तो तभी संकेत मिल गया था कि सरकार इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ने वाली है. अलबत्ता, इस नीतिगत परिवर्तन के वृहद् आर्थिक गतिविधियों के साथ ही मानवशक्ति मोच्रे पर पड़ने वाले प्रभावों पर भी गौर करना हमारे लिए आवश्यक है. सरकार का कहना है कि फैसले से ‘भारत में रोजगार सृजन के सिलसिले को गति मिलेगी’. लेकिन मुझे लगता है कि क्षेत्रवार खट्टा-मीठा अनुभव हमें होने जा रहा है.

रोजगार सृजन की बात के इतर परिदृश्य यह भी उभरता है कि रोजगार-रहित विकास का मौजूदा रुझान बना रह सकता है, जिससे असमानता बढ़ेगी. व्यावसायिक कंपनियों में शत-प्रतिशत एफडीआई के कारण निवेश पर प्रतिफल का खासा बड़ा हिस्सा भारत से बाहर पहुंचेगा. और यह विदेशी निवेशकों के कारोबारी रवैये पर निर्भर करेगा. इस करके अर्थव्यवस्था पर वित्तीय प्रतिफल के गुणक प्रभाव और रोजगार के अवसर सीमित ही होंगे. स्थानीय सोर्सिग प्रतिबंधों में छूट के चलते गुणक प्रभावों में शिथिलता आएगी. इस फैसले से उड्डयन, ढांचागत और खाद्य उद्योग जैसे कुछेक क्षेत्र प्रमुखत: लाभान्वित होते दिख रहे हैं. इन क्षेत्रों में क्षमता के साथ ही गुणवत्ता में सुधार के लिए खासी निपुणता-विकास और पूंजी लगाने की जरूरत पड़ती है.

लेकिन हमें सतर्क रहना होगा कि भारतीय कंपनियां होड़ से बाहर न हो जाएं. इस बात को लेकर भी सतर्क रहना होगा कि कृषि उपज और अन्य कृषि संसाधन बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों के हत्थे न चढ़ जाएं. सेवा और रक्षा क्षेत्र को भी उन क्षेत्रों में शामिल किया जा सकता है, जिनके इस फैसले से लाभान्वित होने की संभावना है. जिस रक्षा खरीद, भारी और छोटे उपकरण आदि, की देश को जरूरत है, उससे रोजगार सृजन को अच्छा प्रोत्साहन मिलेगा. हरित हवाईअड्डों की जरूरत और प्रबंधनगत अन्य गतिविधियों की जरूरत के मद्देनजर उड्डयन क्षेत्र में विर्निर्माण गतिविधियों में बढ़ोतरी होगी.

..लेकिन एक शंका है
इस सबके  बावजूद तमाम अन्य शंकालू लोगों की भांति मुझे भी लगता है कि फार्मा क्षेत्र पर शायद ही कोई प्रभाव (सकारात्मक) पड़े. हालांकि इस क्षेत्र में शत-प्रतिशत एफडीआई की अनुमति होगी लेकिन रोजगार सृजन के लिहाज से शायद ही कुछ हासिल हो. भारतीय कंपनियां काफी सक्षम हैं, और विस्तरीय दवाओं का निर्माण कर रही हैं. इस फैसले से चीन की कंपनियां भारतीय बाजार में सस्ती और  कम गुणवत्ता की दवाओं का अंबार लगा सकती हैं. इससे न केवल हमारी दवा कंपनियों को झटका लगेगा बल्कि हमारी मानवशक्ति को रोजगार की दृष्टि से भी तंग हालात का सामना करना पड़ सकता है.

इसलिए मेरा सोचना है कि सरकार को इस प्रकार के हालात टालने की गरज से  न केवल दिशानिर्देश बल्कि घरेलू रोजगार बनाए रखने के लिए सुरक्षा कवच भी तैयार करना चाहिए. मैं बाजार की प्रतिस्पर्धा के विचार में कोई अड़चन नहीं लगा रहा हूं. सच तो यह है कि इससे प्रतिस्पर्धा का स्तर और गुणवत्ता में इजाफा होगा लेकिन इस मामले में पूरे जतन से एक नीति का मसौदा तो तैयार कर ही लिया जाना चाहिए. मुझे उम्मीद है कि सरकार इस दिशा में जरूरी उपाय करेगी. जहां तक दिशानिर्देशों का प्रश्न है, तो उम्मीद करता हूं कि संसद के मानसून सत्र से पूर्व ही सरकार स्पष्ट और पारदर्शी दिशानिर्देश लाएगी.

पाणिनी तिवारी
कॉरपोरेट जगत से संबंध


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