मोदी सरकार की रक्षा नीति कितनी रही कारगर

Last Updated 31 May 2016 02:36:45 AM IST

सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार ने बीते दो वर्षो के दौरान रक्षा क्षेत्र के लिए कोई नई पहल की है?


मोदी सरकार की रक्षा नीति कितनी रही कारगर

मई 2014 में जब नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए तो भारत ही नहीं वरन समूचे विश्व में उनकी सरकार और उसकी नीतियों को लेकर खासी  अपेक्षाएं थीं. उम्मीद थी कि मोदी सरकार सख्त रुख दिखाते हुए विश्व को संदेश देगी कि भारत के रक्षा क्षेत्र को चाक-चौबंद करना उसकी गंभीर प्राथमिकता होगी. गुजरात में मोदी की सरकार के शासन के जैसे तौर-तरीके और मॉडल था, उसे देखते हुए ऐसी अपेक्षा करना स्वाभाविक भी था. खासकर केंद्र में पहले रही राजग सरकार के अनुभव के मद्देनजर ऐसी अपेक्षा ही की जा सकती थी. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजग सरकार ने परमाणु हथियारों का परीक्षण और अग्नि श्रृंखला की मिसाइलों के परीक्षण की प्रक्रिया को फिर से आरंभ किया था.

सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार ने बीते दो वर्षो के दौरान रक्षा क्षेत्र के लिए कोई नई पहल की है? गहराई से देखें तो पाएंगे कि सरकार ने बीते दो वर्षो के दौरान मिला-जुला बदलाव किया है, जिसमें सततता बनी रही है. कुछ क्षेत्रों में  इसने बदलाव को प्राथमिकता दी तो कुछ क्षेत्रों में पूववर्ती सरकारों द्वारा अपनाई गई नीतियों के अनुरूप ही चली. हालांकि पूर्व की सरकारों ने भी रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की नीति पर बल दिया था, तो भी देश को विदेशी हथियारों और उपकरणों पर खासा निर्भर रहना पड़ रहा है.

खासकर रूस और इसके पूर्ववर्ती सोवियत संघ से आयातित उपकरणों पर हमारी निर्भरता बनी रही है. मोदी सरकार ने विदेशी हथियारों के नये स्रोत तलाशने और सहयोग की प्रक्रिया को थामा नहीं है, फिर भी उसका बल देसीकरण पर रहा है. सरकार राफेल पर बातचीत चलाए हुए है. इसी प्रकार मोदी सरकार डिफेंस टेक्नोल्ॉजी एंड थ्रेट इनिशिएटिव (डीटीटीआई) को जारी रखे हुए है. रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीति को जारी रखा गया है, बल्कि इसके स्तर तक को बढ़ा दिया है, लेकिन बाद में इसका स्तर 49 प्रतिशत पर नियत कर दिया. गौरतलब है कि पहले की सरकारों की भांति इसने भी उच्च तकनीक के मामले में निवेश सीमा 100 प्रतिशत करने को मंजूरी प्रदान कर दी.

रक्षा सेनाओं का बदला नजरिया
लेकिन रक्षा क्षेत्र में देसीकरण को बढ़ावा देने संबंधी सरकार की नीति से रक्षा सेनाओं और कारोबारी संगठनों के नजरिए ही बदल गए. पहले रक्षा सेनाएं देश में निर्मित हथियारों को लेकर शंकित रहती थीं, लेकिन सरकार के देसीकरण पर बल दिए जाने से रक्षा सेनाएं भारतीय उद्योग के साथ मिलकर कार्य करने को प्रेरित हुई हैं. यहां तक कि कारोबारी संगठनों, जो विदेशी कंपनियों के हितों को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते थे, ने भी रक्षा क्षेत्र में स्वदेशी को सक्रियता से प्रोत्साहन देना शुरू कर दिया है. बीते दो वर्षो के दौरान रक्षा उद्योग में स्वदेशीकरण को लेकर अनेक कार्यशालाएं आयोजित की जा चुकी हैं.

मोदी सरकार ने रक्षा प्रापण प्रक्रिया (डीपीपी) को भी बदला है, और अनेक परिवर्तनों के साथ डीपीपी-16 अपना ली है. नई डीपीपी को इस तरह से तैयार किया गया है कि प्रापण प्रक्रियाओं में विद्यमान खामियों को दूर किया जा सके ताकि डीपीपी का उद्देश्य पूरा हो सके. उद्देश्य यह कि रक्षा सेनाओं को उच्च गुणवत्ता के हथियार-उपकरण वाजिब दाम पर नियत समय-सीमा में मुहैया करा दिए जाएं. इससे भी बढ़कर यह कि स्वीकृत सिद्धांतों के अनुसार कार्य करते हुए भी : ‘उच्च सत्यनिष्ठा और सार्वजनिक जवाबदेही, परिचालनात्मक पारदर्शिता, निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा और भेदभावरहित कार्यकलाप’ के मामले में  कोई समझौता नहीं किया गया. पूर्व की डीपीपी की भांति ही डीपीपी-16 में भी अधिमान्य क्रम होता है. यह क्रम निम्नानुसार है :-

-खरीदें (भारत में डिजाइनशुदा, विकसित और विनिर्मित-आईडीडीएम)
-खरीदें (भारतीय)
-खरीदें और बनाएं (भारतीय)
-खरीदें और बनाएं
-खरीदें (वैश्विक)

भारत सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को ताकत देने के लिए नई डीपीपी में स्वदेशी डिजाइन को प्रोत्साहन देने, विकसित करने और रक्षा क्षेत्र की विनिर्माण क्षमताओं में इजाफा करने पर बल दिया गया है. यह बात डीडीपी-16 में प्रस्तुत की गई नई प्रापण श्रेणी-खरीदें (आईडीडीएम) से स्पष्ट हो जाती है, जिसमें प्रापण श्रेणियों को प्राथमिकता के क्रम में अधिमान दिया गया है. इस श्रेणी में पहली प्राथमिकता उन उत्पादों को दी जाएगी, जिन्हें भारतीय वेंडरों ने आपूर्ति किया है. अलबत्ता, इसके साथ कुछ शत्रे नत्थी की गई हैं. इस श्रेणी को लागू किया गया है ताकि स्वदेशी डिजाइन और शोध एवं विकास को बढ़ावा दिया जा सके. यही ‘मेक इन इंडिया’ का बुनियादी तत्व भी है.

जमीनी स्तर पर बदलाव जरूरी
आने वाले वर्षो में मोदी सरकार के समक्ष असल चुनौती होगी कि स्वदेशीकरण संबंधी नीति में बुनियादी बदलाव नहीं बल्कि जमीनी स्तर पर स्थिति में बुनियादी बदलाव लाया जाए. दरअसल, हमारी रक्षा सेनाओं का आधुनिकीकरण किया जाना आवश्यक है. इसी के साथ रक्षा सेनाओं से अपेक्षा है कि संसद द्वारा पारित प्रस्ताव के मुताबिक, अन्य देशों के कब्जे में जा चुके क्षेत्रों को जीत कर वापस लाएं. करदाताओं के पैसे का हाथ से निकल चुके क्षेत्रों को वापस लाने और देश की सुरक्षा पर व्यय किया जाना जरूरी है. कहा जा सकता है कि देश की रक्षा और विदेश नीति को निर्देशित करने वाली अफसरशाही नाकाम साबित हुई है. खासकर चीन और पाकिस्तान के मामले में. राजनेताओं को उच्च अफसरशाही के कार्यकलाप की समीक्षा करनी चाहिए. जरूरी लगे तो उसे बदला जाना चाहिए. सरकार ने नीतिगत मसलों पर थिंक टैंक की मदद लेनी शुरू कर दी है. आने वाले दिनों में सरकार को इन थिंक टैंक द्वारा मुहैया कराई गई जानकारियों और विचारों को ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए. दुर्भाग्यवश मोदी सरकार इन थिंक टैंक को सेवानिवृत्त माफिया के हाथों से मुक्त नहीं करा पाई है. ये सेवानिवृत्त लोग नीतिगत शोध या तो करते नहीं और अगर करते भी हैं, तो बहुत कम.

आने वाले तीन वर्षो में सरकार को रक्षा रणनीति के बजाय वन रैंक, वन पेंशन जैसे हल्के मुद्दों को समाधान निकालना है. सैन्य योजना के बिना सैन्य आधुनिकीकरण किए जाने से केवल सैन्य औद्योगिक परिसर ही बन पाएंगे. लोगों का रक्षा संस्थानों से विश्वास उठ जाएगा. रक्षा मंत्रालय को सैन्य योजना और रणनीति बनाने के कार्य में विभिन्न समूहों को भी जोड़ना चाहिए. वित्तीय संकट के चलते अमेरिका सुस्त पड़  सकता है, और चीन अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के पंख फैला सकता है. भारत को समय रहते चेत जाना होगा. एशिया सदी का बंदोबस्त आने वाले समय में खासा अस्त-व्यस्त हो जाने वाला है, और हमें इस सबके लिए तैयार रहना होगा.

राजीव नयन
सीनियर रिसर्च फैलो, आईडीएसए


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