कश्मीर : पाक-पिट्ठू यही तो करेंगे

Last Updated 31 May 2016 01:54:34 AM IST

यासिन मलिक ने फिर एक बार कश्मीर में खून का कतरा बहाने की धमकी दी है. आतंकवाद को छोड़कर अहिंसक हो जाने का दावा करने वाला व्यक्ति आखिर इतना आग बबूला क्यों है?


पाक-पिट्ठू यही तो करेंगे

ये कश्मीरी पंडितों के लिए अलग कॉलोनी का विरोध कर रहे हैं. हालांकि नाम कॉलोनी का है, असल में उनकी वापसी का ही छद्म रूप में विरोध कर रहे हैं.

यासिन मलिक एवं दूसरे भारत विरोधी पाकिस्तानपरस्त नेताओं से जब भी पूछा गया कि वह कश्मीर घाटी से ढाई दशक पूर्व पलायन कर गए पंडितों की वापसी चाहते हैं या नहीं तो ये कहते रहे कि पंडितों का स्वागत है. हम चाहते हैं कि पंडित वापस आएं और यहां बसें कश्मीर उनका भी है. वे तो हमारे भाई-बहन हैं. दिन-रात पाकिस्तान के पक्ष में बात करने वाले सैयद अली शाह गिलानी तक भी ऐसे ही वक्तव्य देते रहे हैं. आप कहेंगे कि वाह! कितना सुन्दर विचार है!

सुनने से हर बार लगता था कि इनके दिल में कश्मीरी पंडितों के लिए कितना प्यार और अपनापन है. जैसे ही केन्द्र सरकार ने पंडितों के लिए कॉलोनी बनाने की बात की इनका तेवर बदल गया. ये कहने लगे कि हम कश्मीर में अलग कॉलोनी नहीं बनने देंगे. यासिन मलिक की धमकी इसमें सबसे उग्र है. वह अकेले नहीं हैं. हुर्रियत के सारे नेताओं के जुबान बदल गए हैं. वे इस तरह बयान दे रहे हैं कि अगर कश्मीरी पंडितों के लिए अलग कॉलोनी बनी तो फिर वहां खून-खराबा होगा पूरे राज्य में आग लग जाएगी. सवाल है कि इनकी इस धमकी या चेतावनी या गीदड़भभकी जो भी कहिए का जवाब किस तरह दिया जाए? सरकार कैसे दे?

भारत की शेष जनता कैसे दे? चिंता का विषय यह है कि एक ओर ये धमकी दे रहे हैं, संभावित कॉलोनी के विरोध में घाटी में बंद आयोजित कर रहे हैं और भारत विरोधी नारे लग रहे हैं. इनके समर्थक हर शुक्रवार को आईएसआईएस के झंडे लहरा रहे हैं. दूसरी ओर पिछले 10 दिनों में आतंकवादी हमले बढ़ गये हैं, लेकिन लगता है जैसे देश को इनसे कोई सरोकार ही नहीं. देश बिल्कुल खामोश है. कहीं से कोई प्रतिक्रिया नहीं. यही नहीं, केन्द्र सरकार इस तरह चुप है जैसे इन घटनाओं से वह बिल्कुल अप्रभावित है. यह सबसे अखरने वाली स्थिति है.

केन्द्र में भाजपा की सरकार आने के बाद ऐसा लगा था कि कश्मीर के संदर्भ में कुछ कड़े कदम उठाए जाएंगे. पाकिस्तान के पैसे पर पलने वाले उनके एजेंट हुर्रियत तथा दूसरे छद्मवेशधारी नेताओं पर शिंकजा कसेगा, पर हो इसके विपरीत रहा है. भाजपा पीडीपी सरकार में ऐसा लगता है, इनको भारत विरोध करने की पहले से भी ज्यादा छूट मिल गई है. इस सरकार के आने के पहले भी पाकिस्तान के झंडे लहराए जाते थे, भारत विरोधी नारे लगते थे, लेकिन जनता ने इसीलिए तो कांग्रेस को नकारा और भाजपा को स्वीकारा. यह नहीं भूलना चाहिए कि आईएसआईएस का झंडा केन्द्र में भाजपा नेतृत्व वाले सरकार के आने के बाद ही लहराना आरंभ हुआ है.

कहां तो पंडितों को बसाने की बात और कहां स्थिति इतनी खराब हो रही है. दोनों में कोई साम्य ही नहीं है. बसाने के लिए पहले अनुकूल वातावरण तो बने और यह काम सरकार का ही है. दुख्तराने मिल्लत की नेता आसिया अंन्द्राबी बाजाब्ता पाकिस्तान दिवस पर पाकिस्तान को घाटी से ही संबोधित करती है. वह पाकिस्तान का झंडा लहराती है और भारत से कश्मीर की आजादी के नारे लगाती है, लेकिन वह बिल्कुल आजाद घूम रही है. सुना गया कि उसके खिलाफ मुकदमा कायम हुआ. क्या किसी को पता है कि उन मुकदमों का क्या हुआ? अब ये सारे मिलकर कश्मीरी पंडितों की वापसी को हर हाल में बाधित करना चाहते हैं.

आखिर ये कौन होते हैं तय करने वाले कि कश्मीरी पंडित या हिन्दू कहां बसेंगे, कैसे बसेंगे? यह तय करना सरकार का काम है. कश्मीरी पंडित तय करेंगे कि उन्हें कैसे बसना है. जो पाकिस्तानी एजेंट पाकिस्तान की योजना से इनको वहां से बाहर करवाने के अपराधी हैं; वे अब इनके बसने का रास्ता बता रहे हैं. आखिर हिजबुल मुजाहिद्दीन ने जब पंडितों की हत्याएं शुरू कीं, मंदिरों को जलाना शुरू किया, पंडितों के घर ध्वस्त करने लगे तो ये हुर्रियत वाले क्या कर रहे थे? यासिन मलिक उस समय क्या था? वह  आतंकवादी ही तो था. यह कैसे नहीं माना जाए कि पंडितों को घाटी छोड़ने के लिए मजबूर करने वालों में वह शामिल नहीं था? यही सच भी है कि बिट्टा कराटे से लेकर यासिन जैसे आतंकवादी पंडितों को घाटी से बाहर करने में लगे थे.

आज ये कह रहे हैं कि पंडित वहीं आकर बसें, जहां वे थे. इनको मालूम है कि पंडितों की न जमीनें बची हैं, न घर और भय इतना कि कोई वहां आकर शायद ही बसना चाहे. लेकिन सरकार क्यों खामोश है? दो वर्ष पूरे हो गए. उसने अभी तक पंडितों को बसाने के लिए क्या किया? गृहमंत्री राजनाथ सिंह अब कहते हैं कि अपने पिता मुफ्ती सईद की तरह महबूबा भी पंडितों की वापसी के पक्ष में हैं.

तो फिर इस पर काम क्यों नहीं हो रहा है? सच तो यही है कि जो आवाज हुर्रियत की है, लगभग वही मंशा पीडीपी की भी दिखती है. उसको लगता है कि यदि अलग कॉलोनी बनाने के लिए जमीन आवंटित किया तो फिर उसका जनाधार खिसक सकता है. केन्द्र दबाव डाले तो शायद कुछ हो सकता है. वस्तुत: मूल सवाल तो केन्द्र की भूमिका का ही है. हर आदमी अपने आपसे पूछ रहा है कि आखिर केन्द्र इन पाकिस्तानपरस्तों, भारत विरोधियों के खिलाफ सख्त क्यों नहीं हो रहा? ये तो ऐसे ही थे पर उनके विरुद्ध कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है? यह प्रश्न कोई महबूबा मुफ्ती और पीडीपी से नहीं पूछेगा? कोई पूछे भी तो उनके लिए फर्क नहीं पड़ता. यह प्रश्न भाजपा से ही पूछा जाएगा और उसके लिए फर्क पड़ता है.

अवधेश कुमार
लेखक


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