मीडिया : सफेदी की चमकार

Last Updated 29 May 2016 04:53:14 AM IST

सरकारें भी करें तो क्या करें ? वे अपनी ‘जनताओं’ का कुछ इतना ज्यादा भला करती रहती हैं कि जनताएं भी अक्सर भूल जाती हैं कि उनके लिए उनकी प्यारी-प्यारी सरकारों ने क्या-क्या भला किया है.


सुधीश पचौरी

अगर हम अपने आप से ही पूछें कि हमारी सरकारों ने अब तक हमारे लिए क्या-क्या किया है? क्या-क्या दिया है? तो क्या हम ठीक-ठीक गिन कर बता सकते हैं, जिन योजनाओं से फायदा हुआ बताया जा रहा है  उनके नाम क्या-क्या हैं? हम तो क्या, योजना बनाने वाले मंत्री लोग तक नहीं बता सकते कि अब तक क्या-क्या कर डाले हैं? ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’ के भाव से करने वाला करता रहता है, उसे कहां याद रहता है कि क्या-क्या कब-कब कैसे-कैसे किया है?

अब दिल्ली को ही ले लीजिए : एक सरकार ने अपना एक साल पूरा करने के उपलक्ष्य में दैनिकों के पूरे-पूरे पेजों पर छाप-छाप कर बताया कि एक साल में उसने इतना इतना किया है कि जनता तक निहाल हो चुकी है, और उसके विपक्षी बेहाल हैं और अगले साल में हम फिर ये-ये करने वाले हैं? यूपी की सरकार ने चार साल पूरे करने उपलक्ष्य में दो-दो पेज के विज्ञापन दे डाले और बताया कि किस तरह उत्तर प्रदेश एक बार फिर ‘उत्तमोत्तम प्रदेश’ बन गया है. इसी तरह, अब केंद्र सरकार के दो साल पूरे हुए तो उसने ताबड़तोड़ स्पीड से मीडिया के जरिए जनता को बताना शुरू किया कि दो साल में जनता के उद्धार के लिए क्या-क्या किया है? अखबारों के पूरे-पूरे मुखपृष्ठ रंगीन चित्रों के साथ बताते हैं कि सरकार ने जनता का काफी उद्धार कर दिया है.

विज्ञापन विज्ञापन नहीं वह एक सचित्र कविता है, जिसमें ‘अबकी बार मोदी सरकार’ वाली टेक है. जो कई बरस पहले एक वॉशिंग पाउडर की टिकिया के लांच के विज्ञापन में ‘बिजली की कड़क’ के साथ कहा करता था : सफेदी की चमकार! बार-बार लगातार!! विज्ञापन इतना जबर्दस्त रहा कि देखते ही देखते छा गया. टिकिया हिट हो गई! अब यही अपनी सरकार कर रही है, तो विपक्ष के पेट में दर्द हो रहा है कि बताइए इतना पैसा खर्च करके अपने किए-धरे को विज्ञापन और मेगा इवंट के जरिए चमकाया जा रहा है! सब मीडिया की माया है! जब से वह जनता और सरकार के बीच र्थड पार्टी की तरह दखलअंदाजी करता आया है, तब से सरकारें जनता से पहले मीडिया को दंडौत /विद पमेंट/किया करती हैं. सब जानते हैं कि सरकार-ए-आला ने दो साल में एक दिन आराम नहीं किया है. दिन-रात काम करती रही है. लेकिन इस पर भी मीडिया रिपोर्ट कार्ड मांगता रहता है? और कहीं कुछ ऐसा वैसा हो गया तो उसे ले उड़ता है, और सारे किए-धरे पर पानी फेर देता है! इसलिए उसे विज्ञापन देकर समझाना पड़ता है कि हमने ये-ये किया, ये-ये करने वाले हैं,  और ये-ये करके रहेंगे.

फायदा हो न हो उसे मीडिया के जरिए ‘होता हुआ’ बताना पड़ता है, अगर ऐसा न किया जाए तो खुद सरकारों को यकीन नहीं होता कि उन्होंने कुछ किया है. अब तक मीडिया में विज्ञापनबाजी के लिए बुजरुआ पार्टियां, उनकी सरकारें मरी जाती थीं, लेकिन इस बार तो हद हो गई. जिस केरल में एक फिदेल कास्त्रो हो और उसका भाई नया सीएम बना हो उसी जूनियर कास्त्रो ने अपनी तस्वीर के साथ दिल्ली के दैनिकों तक में पूरे-पूरे पेज का विज्ञापन देकर बताया कि वह क्या-क्या करने जा रहा है. इस मामले में अब तक मोदी जी नम्बर वन पर होते थे, अब भी हैं और नम्बर दो पर केजरीवाल जी होते थे. वही मीडिया की मार बार-बार लगातार न हो, वो आपकी सफेदी की चमकार को कड़के के साथ न बताए दिखाए तो कौन जानेगा कि आप क्या-क्या कर रहे हैं. सरकार-जनता के बीच मीडिया की दलाली की भूमिका ने राजनीति और कामकाज के तरीके को संदिग्ध कर दिया है. हर नेता, हर सरकार, हर मंत्री यहां तक कि पीएम तक बार-बार कहते रहते हैं कि जो किया है, उसे जनता को जा जाकर बताओ नहीं तो, जनता कैसे जान पाएगी कि क्या-क्या किया है?

अब तक सरकारें अपने किए-धरे पर यकीन करके चलती थीं. अगर जनता तक फायदा पहुंचा है,  तो पहुंचा है, उसे गाना-बजाना क्या? लेकिन लगता है कि इस मल्टी मीडिया युग में खुद सरकारों को भी यकीन नहीं होता कि उनने जो किया है, क्या वाकई किया है. इसीलिए कहा जाता है कि किया हो न किया हो बताते रहिए कि किया है, और इतनी बार और इतने तरीके से बताओ कि फायदा हो न हो जनता मानने पर मजबूर हो जाए कि यार, जब इतनी बार कह रहे हैं कि किया है तो किया ही होगा. सरकारी ‘सफेदी की चमकार’ सही, ‘बार बार लगातार’ सही!



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