विफल रहा प्रतिपक्ष

Last Updated 29 May 2016 04:44:47 AM IST

प्रतिपक्ष जरूरी है. वैचारिक विकल्प दे सके तो उसकी विशेष महत्ता है. कार्ल मार्क्‍स ने अर्थशास्त्र और राजनीति में एक वैकल्पिक विचार दिया था.


हृदयनारायण दीक्षित

इतिहास का उनका मूल्यांकन गलत निकला. भारत में गांधी जी ने इतिहास की धारा में हस्तक्षेप किया. गांधी का राष्ट्रवाद परम्परा का विस्तार था. उन्होंने आर्थिक क्षेत्र में वैकल्पिक विचार रखे. डॉ.  राममनोहर लोहिया ने सामाजिक-आर्थिक नीति का वैकल्पिक विचार रखा. पं. दीनदयाल उपाध्याय ने देश को समग्रता में देखा. उन्होंने एकात्म मानवदर्शन का विकास किया. लोहिया, उपाध्याय और वामदल अल्पमत होकर भी सत्तारूढ़ कांग्रेस की नाक में दम कर रहे थे. प्रतिपक्ष की जिम्मेदार भूमिका की प्रेरणा के लिए भारत को अन्य देशों से सीखने की कोई आवश्यकता नहीं. मोदी सरकार के दो साल के कामकाज की विवेचना हो रही है. विपक्ष के भी दो साल के काम पर विचार किया जाना चाहिए.

संवैधानिक लोकतंत्र में जनादेश की भूमिका है. जनता में ही वास्तविक संप्रभुता है. जनादेश से ही बहुमत मिलता है और सरकार चलाने का संवैधानिक अधिकार. विपक्ष का कर्त्तव्य बड़ा है. विपक्ष का आचरण जनतंत्र को स्वस्थ व तरल बनाता है लेकिन कांग्रेसी विपक्ष ने अपनी कारगर जिम्मेदारी नहीं निभाई. राष्ट्र राज्य की चिन्ता से जुड़े मूलभूत प्रश्नों को विपक्ष अपनी कार्यसूची का भाग नहीं बना सका. राबर्ट ए. दाहल ने पॉलिटिकल अपोजीशन इन न्यू हैवेन में विपक्ष की तीन किस्में गिनाई हैं. पहली, सामाजिक-राजनैतिक परिवर्तन से प्रतिबद्ध संगठित विपक्ष. दूसरी, नीतिविहीन सुधारवादी. उन्होंने दबाव की राजनीति वाले पदलोलुप असंगठित विपक्ष को तीसरा बताया गया है. यहां कांग्रेस तीसरे किस्म का विपक्ष है.

उसने जनादेश को नहीं स्वीकारा. परंपरागत जिम्मेदार विपक्ष से प्रेरणा भी नहीं ली. पूरे दो साल गैरजिम्मेदार रही. जीएसटी जैसे विधेयक उसकी अपनी नीति का हिस्सा थे, लेकिन कांग्रेस ने जीएसटी सहित तमाम विधेयकों का लगातार विरोध किया. राज्य सभा में संख्या बल का दुरुपयोग हुआ. नेशनल हेराल्ड का मसला न्यायालय के आदेश का भाग है. कांग्रेस ने इसे सरकारी षड़यंत्र बताया. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज व राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के त्यागपत्र मांगने के मुद्दे पर संसदीय कामकाज में अड़ंगा डाला गया. सत्ता पक्ष ने संविधान सृजन व प्रवर्तन पर राष्ट्रीय उत्सव जैसी घोषणा की. इस विशेष अवसर पर संसद का सत्र हुआ. तब कांग्रेस और वामदल कथित असहिष्णुता पर अनावयक आलाप विलाप में संलग्न थे. जेएनयू में आतंकी अफजल गुरू की फांसी पर विलाप थे-अफजल हम शर्मिदा हैं, तेरे कातिल जिन्दा हैं. तब राष्ट्र सन्न था और कांगेस प्रसन्न.

कांग्रेस के खेवनहार राहुल गांधी ने ऐसे समूहों की हौसला अफजाई की. रोहित वेमुला के मसले को कांग्रेस सहित अधिकांश विपक्ष ने तिल का ताड़ बनाया. संसदीय जनतंत्र की सफलता में वाद-विवाद के साथ संवाद की महत्ता है. वाद-विवाद-संवाद में प्रतिपक्ष जरूरी है. पं. जवाहर लाल नेहरू ने लिखा है कि संसदीय प्रणाली में न केवल सशक्त विरोधी पक्ष की आवश्यकता है, बल्कि सरकार और विरोधी पक्ष के बीच सहयोग भी आवश्यक होता है..जहां तक हम ऐसा करने में सफल होंगे, वहां तक हम संसदीय जनतंत्र की ठोस नींव रखने में सफल होंगे. विपक्ष को रचनात्मक आक्रामक होना चाहिए. उसे सरकारी नीति और कार्यक्रमों का विकल्प देना चाहिए.’



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