हिचकोले खाता हिन्दुत्व

Last Updated 29 May 2016 04:33:52 AM IST

केंद्र की सत्ता पर नरेन्द्र मोदी के काबिज होने के पीछे गुजरात में उनकी उपलब्धियों या संघ परिवार का उतना योगदान नहीं था.




हिचकोले खाता हिन्दुत्व

जितना मनमोहन सरकार की नीतियों का. 2014 के लोक सभा चुनाव तक जनता में यह धारणा मजबूत हो गई थी कि मनमोहन सरकार दलाल पूंजीवाद और अल्पसंख्यक सांप्रदायिकता की पोषक है. ऐसे में अपेक्षा की जा रही थी कि उनका स्थान लेने वाली मोदी सरकार उसे पलट देगी, पर वैसा होता दिख नहीं रहा है. विकास का पूंजीवाद मॉडल यथावत बरकरार है, जिसमें आम आदमी की बुनियादी स्थिति में बदलाव की ज्यादा उम्मीद नहीं है. हां, उन्हें कुछ रियायतें मिल सकती हैं. इसके लिए कोशिश जारी हैं. मीडिया की धारणा के विपरीत गांवों में अब भी मोदी सरकार से उम्मीद बरकरार है. लेकिन राज्य की संस्थाओं में अल्पसंख्यक सांप्रदायिकता के तत्व बरकरार हैं, जिन्हें हटाने का साहस मोदी सरकार में नहीं दिखता. इसके उलट हिन्दू परंपरा और संस्कृति को प्रतिष्ठित करने के सांकेतिक प्रयास के दर्शन जरूर हो रहे हैं. कथित धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवी भले ही इनका विरोध कर रहे हों, पर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दू पहचान की अभिव्यक्ति होने से हिन्दू समाज में प्रधानमंत्री मोदी के प्रति नकार भाव नहीं है. कथित हिन्दू आतंकवाद को प्रतिष्ठित करने वाली ताकतों के बेनकाब होने से भी हिन्दू समाज राहत महसूस कर रहा है. पर मोदी सरकार के कार्यकाल में ऐसे कई मसले भी आए, जिससे हिन्दुत्ववादियों में हताशा-निराशा है.

बेलगाम हुए हिन्दू संगठन
कुछ हिन्दू संगठनों या नेताओं की हरकत या बयानबाजी से पहली नजर में यही दिखता है कि मोदी सरकार के आते ही वे बेलगाम हो गए हैं, पर यह सब पहले से होता रहा है. दरअसल, मोदी सरकार के आने पर ये मीडिया के राडार पर आ गए हैं. उदाहरण के लिए दिसम्बर, 2014 में आगरा में जिस ‘घर वापसी’ के मसले पर हंगामा हुआ था, संघ परिवार द्वारा वैसा पिछले करीब दो दशकों से चलाया जा रहा था. ऐसा भी नहीं है कि उस हंगामे के बाद घर वापसी का कार्यक्रम रोक दिया गया, पर ये हिन्दू संगठन जितने लोगों की ‘घर वापसी’ कराते हैं, उससे ज्यादा पैमाने पर हिन्दू अपना धर्म बदल कर ईसाई बन रहे हैं. आगरा प्रकरण के बाद हिन्दू संगठन इनके तौर-तरीकों पर सवाल उठाने की स्थिति में भी नहीं रह गए. यह आकस्मिक नहीं लगता कि आगरा की घटना के बाद भारत यात्रा पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने तमाम राजनयिक शिष्टाचार का उल्लंघन करते हुए भारत में धार्मिक आजादी के खतरे का राग अलाप दिया. ऐसे में ईसाई बहुल पश्चिमी देशों से आर्थिक निवेश और राजनयिक समर्थन की उम्मीद लगाए बैठी मोदी सरकार के लिए यह आसान नहीं है कि वह धर्मातरण विरोधी कानून लाती, जिसका ईसाई मिशनरियां विरोध कर रही हैं. दबाव इतना बताया जाता है कि संघ ने इस कार्यक्रम से जुड़े अपने दो महत्त्वपूर्ण कार्यकर्ताओं को हाशिये पर धकेल दिया.

जिस तरह ‘घर वापसी’ का मुद्दा संघ परिवार के लिए उल्टा पड़ा, उसी तरह ‘लव जेहाद’ का मामला भी उनके गले की हड्डी बन गया. जब कुछ राज्यों में इस मुद्दे के उठने पर जांच की जरूरत थी, तब केंद्र सरकार ने इससे पल्ला झाड़ लिया. इससे इस मुहिम की हवा तो निकल गई, लेकिन मुद्दा खत्म नहीं हो सका. अब उत्तर प्रदेश में ‘बहू लाओ, बेटी बचाओ’ का अभियान चलाया जा रहा है. गौरतलब है कि केरल के पूर्व मुख्यमंत्री और वामपंथी नेता वीएस अच्युतानंदन ने भी एक बार कहा था कि ‘लव जेहाद’ है. गोवध पर रोक लगाने की मांग का तो इससे भी बुरा हाल हुआ. इससे संबंधित केंद्रीय कानून नहीं बनाया गया. यहां एक बार फिर सत्ताधारी दल के नेताओं की कथनी-करनी में अंतर उजागर हो गया. इनके दोहरे रवैये के कारण हिन्दुत्ववादियों में भाजपा के प्रति नाराजगी बढ़ी है. दादरी कांड के बहाने सरकार और समाज की सोच में यह अंतर सामने आ गया. इखलाक की हत्या को किसी भी आधार पर सही नहीं ठहराया जा सकता था, लेकिन इस प्रकरण के बहाने जब गोवध की बात उठी, तो भाजपा को दृढ़ रुख अख्तियार करना चाहिए था, जो उसने नहीं किया. अब तो मोदी सरकार के रवैये से हिन्दू महासभा जैसे हिन्दू संगठन गोवध पर रोक लगाने की मांग करने से भी डरने लगे हैं. ऐसे में जब संघ परिवार द्वारा राम मंदिर बनाने की चर्चा होती है, तो इससे ऐसा नहीं लगता कि जनमानस उद्वेलित होगा, लोग इसे वोट की राजनीति से जोड़कर देख सकते हैं.

पार्टी की विश्वसनीयता गिरी 
दरअसल, सामाजिक-धार्मिक मसलों पर कथित हिन्दुत्ववादी भाजपा की विश्वसनीयता हिन्दुओं के बीच गिरती जा रही है. उन्हें ऐसा लगने लगा है कि भाजपा हिन्दुत्व के नाम पर उनकी भावनाओं के साथ खेल रही है, वह हिन्दुत्व के प्रति ईमानदार नहीं है. अगर उसने माहौल बनाए रखने के खातिर इन मुद्दों को उठाया है, तो इससे उसे फिलहाल लाभ होता नहीं दिख रहा है, क्योंकि वह हिन्दुत्ववादियों के साथ खड़ी नहीं हो सकी है. फिर हिन्दू संगठनों की रणनीतिक खामी के कारण हिन्दू समाज की नकारात्मक छवि बनी या बनाई जा रही है. फिर भी अगर कथित धर्मनिरपेक्ष दल या व्यक्ति हिन्दू-मुसलमान का ज्यादा शोर मचाएंगे, तो उसकी प्रतिक्रियास्वरूप हिन्दू भाजपा की ओर आकषिर्त हो सकते हैं.

सत्येन्द्र सिंह
वरिष्ठ पत्रकार


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